बांद्रा और सूरत स्टेशन पर उमड़े जनसैलाब का दोषी कौन?

स्थानीय प्रशासन और रेलवे की लापरवाही से मची अफरा-तफरी

Thousands of people gethered at Bandra Station on Tue, 14th April’20

कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए देश भर में 3 मई तक के लिए लॉकडाउन पुनः लागू हो गया है। इसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने मंगलवार, 14 अप्रैल को सुबह 10 बजे राष्ट्र को अपने संबोधन में की। इसके पहले उड़ीसा में लॉकडाउन को 30 अप्रैल तक बढ़ाने की घोषणा हो चुकी थी। 11 अप्रैल को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सहित कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी लॉकडाउन बढ़ाने की जरूरत बता दी थी। इसके बाद पश्चिम बंगाल ने भी 30 अप्रैल तक के लिए लॉकडाउन बढ़ा दिया था। जाहिर है कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होने की कोई संभावना नहीं थी।

इस सबके बावजूद 14 अप्रैल को पश्चिम रेलवे के बांद्रा टर्मिनस और सूरत स्टेशन पर हजारों की संख्या में लोग सड़क पर कैसे उतर आए और रेलवे स्टेशन तक कैसे पहुंच गए! इतने सारे लोगों के एकसाथ भीड़ के रूप में सड़क पर आने से न केवल लॉकडाउन के नियम का घोर उल्लंघन हुआ, बल्कि कोरोना के फैलने का खतरा भी काफी बढ़ गया है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार छोटे-मोटे कारखानों में काम करने वाले लोग और बिल्डिंग निर्माण से जुड़े दूसरे राज्यों से आए मजदूर हैं। ये अपने रहने-खाने की समस्या से जूझ रहे हैं और अपने गांव-घर जाने की जिद कर रहे हैं। कोरोना से बुरी तरह प्रभावित मुंबई में इस कदर भीड़ का उमड़ना काफी भयावह है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि सरकार के स्तर पर ऐसे लोगों के लिए जो व्यवस्था की गई है, वह जमीन पर उस रूप में नहीं पहुंच पा रही है।

झूठी खबरों का आधार बने इस पत्र के आधार पर सीसीएम/पीएम/द.म.रे. सहित आईआरसीटीसी के सीएमडी, जिन्होंने ऑनलाइन टिकट बुकिंग जारी रखी, को भी उसी तरह गिरफ्तार किया जाना चाहिए, जिस तरह मुंबई में विनय दुबे को गिरफ्तार किया गया है!

जो लोग बांद्रा स्टेशन के आसपास इकट्ठा हुए उन्हें पुलिस भी काबू करने में नाकामयाब रही है। सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर कर बांद्रा स्टेशन तक कैसे पहुंच गए! स्थानीय प्रशासन और पुलिस क्या कर रही थी?

जबकि पिछले 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान देखा यह गया था कि यदि एकाध आदमी भी सड़क पर दिख जा रहा था, तो पुलिस वाले मार-मारकर उसकी पीठ स्याह कर दे रहे थे। परंतु इतने सारे लोग एक साथ सड़क पर एकदम से तो नहीं आ गए होंगे, जब यह अपने-अपने मोहल्लों से निकल रहे थे, तब इन्हें वहीं क्यों नहीं रोक दिया गया?

ताजुब यह है कि एक-एक आदमी को जो बात मालूम है कि ट्रेनें नहीं चलेंगी, तब यह बात रेल प्रशासन, स्थानीय पुलिस और प्रशासन तथा न्यूज चैनलों को कैसे पता नहीं थी? या फिर हमेशा की तरह नाटकीय अंदाज में दोषियों को बचाने का कोई खास कारण था?

रेलवे में जरूरत से ज्यादा भर गए अधिकारियों का एक ही काम रह गया है, चेंबर में बैठकर प्लानिंग करना। जब प्रत्यक्ष रूप से वह किसी बात को भापेंगे ही नहीं, चेंबर में अथवा मीटिंग रूम में बैठकर सिर्फ आकाशीय डिस्कशन करेंगे या अपनी पीठ थपथपाने के लिए अनर्गल प्लानिंग करते रहेंगे, तो जो अव्यवस्था अभी फैली है, वैसी ही आगे भी फैल सकती है।

अभी तक तो यह लोग बेसिर-पैर की योजनाएं बनाकर रेलकर्मियों तथा रेलवे को ही मुसीबत में डालते और केंद्र को गुमराह करते रहे हैं। परंतु जीवन में पहली बार मौका मिला था कि सच में अक्ल का प्रयोग कर अपनी चतुराई साबित करते, पूरे देश एवं सरकार के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करते, रेलवे की छवि में सुधार करते, मगर अपनी आदतन बेअकली के चलते इन्होंने आम आदमी को ही मुसीबत में डालकर गुमराह कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य और केंद्र सरकार सांसत में पड़ गई।

इससे देश और दुनिया में सामान्य आदमी के असंतोष और उसके दिग्भ्रमित होने का जो संदेश पहुंचा है, आज की विषम परिस्थिति में यह कतई अच्छी बात नहीं कही जा सकती। अभी आवश्यक है कि सामान्य आदमी को धैर्य धारण कराया जाए, इस विषम परिस्थिति का डटकर मुकाबला किया जाए, सूझबूझ और आपसी सहयोग से इसका सामना किया जाना चाहिए।

इस समय उठाया गया हर एक कदम बेहद संतुलित होना अति आवश्यक है। गलती से भी कोई ऐसा मौखिक या लिखित बयान आम आदमी में सरकार या मीडिया द्वारा न जाने पाए जिससे नागरिक गुमराह हों, क्योंकि कहीं न कहीं यह गलती रेलवे और स्थानीय प्रशासन ने अपनी ज्यादा होशियारी दिखाने के चक्कर में कर दी है।

सोशल मीडिया द्वारा भरपूर रूप से फैलाया गया कि 14 अप्रैल 2020 की रात 12:00 बजे के बाद से यात्री गाड़ियां शुरू की जाएंगी। आईआरसीटीसी ऑनलाइन बुकिंग की मीटिंग के मिनिट्स मीडिया में प्रसारित किए गए। रेलवे बोर्ड द्वारा पत्र जारी करके कहा गया था कि ई-टिकट की सुविधा रिजर्व टिकट के लिए 14 अप्रैल की रात से उपलब्ध रहेगी। इस पत्र में यात्रियों को रिफंड देने का भी संदेश है।

यदि टिकट बुकिंग की जाएगी, तब यात्री तो आएंगे ही! बिना किसी तैयारी के टिकटें ही क्यों बुक की गईं। बोर्ड की मीटिंग के मिनट्स सोशल मीडिया पर कैसे प्रसारित हो गईं! अन्य कई माध्यमों से मीडिया में यह संदेश कैसे गया कि ट्रेनें चालू हो रही हैं! यदि मीडिया गलत प्रचार कर रहा था, तो रेलवे बोर्ड की ओर से तुरंत उसका खंडन क्यों नहीं किया गया? ऐसी तमाम खबरों का संज्ञान लेकर उनको तुरंत रोका क्यों नहीं गया?

वैसे तो कोरोना केसेस की संख्या के बारे में सरकार बहुत सतर्कता बरत रही है कि कहीं मीडिया द्वारा मामलों की असली संख्या का प्रसारण न कर दिया जाए, तब ट्रेनों के बारे में यही सतर्कता क्यों नहीं बरती गई? जबकि बड़ी संख्या में लोगों के रेलवे स्टेशनों पर पहुंच जाने से कोरोना के फैलाव के सबसे बड़े खतरे का अनुमान योजनाकारों को तो होना ही चाहिए था, जिसके लिए दुबारा लॉकडाउन को बढ़ाना अपरिहार्य हो गया था।

अब क्या रेलवे और स्थानीय प्रशासन की इस सीधी-सीधी कोताही से फैली अव्यवस्था और जनमानस में व्याप्त असंतोष के लिए भी कोई अतिवादी या विदेशी अथवा विपक्ष की साजिश बताकर एक बार फिर नौकरशाही की लापरवाही छिपाकर देश को गुमराह किया जाएगा! इसके लिए रेलवे बोर्ड गूगल आदि पर ऑनलाइन डाले गए किसी फेक न्यूज या अफवाह का हवाला भी दे सकता है!

मगर ध्यान रहे कि बांद्रा, सूरत में जो लोग एकत्रित हुए, वह कोई डॉक्टर या इंजीनियर नहीं, बल्कि उनमें से अधिकांशतः अनपढ़-अशिक्षित मजदूर थे, जो अमूमन सस्ता मोबाइल रखते हैं, या एंड्रॉयड भी होगा तो उसका प्रयोग वे ज्यादातर केवल पिक्चर देखने और गाने सुनने के लिए ही करते हैं। ऐसे में उनसे सरकार की हर घोषणा और निर्देश से अपडेट रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

जब महाराष्ट्र सरकार ने 11 अप्रैल को ही स्पष्ट कर दिया था कि लॉकडाउन 30 अप्रैल तक बढ़ाया जा रहा है, तब उसी समय रेल प्रशासन द्वारा एहतियात के तौर पर एक संदेश प्रसारित किया जाना चाहिए था कि मुंबई से यात्री गाड़ियों के 15 तारीख से शुरू होने की संभावना नहीं है। इसके लिए सरकार के आदेश की प्रतीक्षा की जा रही है।

इसी खबर पर विश्वास करके बांद्रा स्टेशन पर हजारों लोगों की भीड़ जुटी थी। लोगों को खबर की सत्यता की जांच कर लेनी चाहिए और खासतौर पर मीडिया को खबर तथा उसके स्रोत की विश्वसनीयता को परखने के बाद ही उसे प्रकाशित करना चाहिए। जब तक रेलवे या सरकार द्वारा अधिकृत नोटीफिकेशन जारी न किया जाए, तब तक ऐसी किसी खबर पर भरोसा नहीं करना चाहिए। परंतु सवाल यह है कि ऐसी मनगढ़ंत और झूठी खबरों का संज्ञान रेलवे तंत्र ने तुरंत क्यों नहीं लिया? क्या करता रहा उसका विशाल जनसंपर्क विभाग!

Bandra police lodged an FIR against Rahul Kulkarni, a correspondent with Marathi news channel in Osmanabad, for allegedly flashing incorrect news that trains would restart. The news report on ABP Majha is believed to have been based on a letter written by a South Central Railway official on April 13 on a proposal for Jansadharan special trains.

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बहरहाल जो भी हो, इस शर्मनाक लापरवाही के लिए रेलवे और स्थानीय प्रशासन दोनों ही दोषी हैं। उन्हें इसकी जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। पीएमओ को इस संगीन कोताही के लिए संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध संज्ञान लेना चाहिए, जिससे भविष्य में अन्य किसी के द्वारा ऐसी गंभीर लापरवाही न होने पाए।

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देखें, ट्रेनों को शुरू किए जाने को लेकर विभिन्न माध्यमों में आई ऐसी कुछ खबरें, जिन्हें यदि रेल प्रशासन चाहता तो रोका जा सकता था-

Railway Board said the special train services possibly start after April 14

https://www.metrorailnews.in/railway-board-said-the-special-train-services-possibly-start-after-april-14/