भारतीय रेल में अराजकता का माहौल
रेलवे बोर्ड के आदेशों में विसंगति, अधिकारियों की मनमानी, आपदा के समय भी निहितार्थी निर्णय, पीएम और पीएमओ के दिशा-निर्देशों की अनदेखी, रेलकर्मियों में व्याप्त हो रहा भारी असंतोष
भारतीय रेल में अगर जाहिलियत की हद देखनी हो, तो रेलवे बोर्ड के अफसरों के कारनामें देखने लायक हैं। ‘रेल समाचार’ ने जो बात देश के हर कोने से फीडबैक लेने के बाद से कही थी वह सच साबित हो रही है, लेकिन दुःखद यह है कि अभी भी रेलवे बोर्ड में ऊपर बैठे अफसरों पर इसका कोई असर होता नहीं दिखाई दे रहा है।
रेल राजस्व की तो धज्जियां उड़ाई ही जा रही हैं, बल्कि रेलवे बोर्ड के तुगलकी फरमान के चक्कर में सैकड़ों पार्सल स्टाफ, ड्राइवर, गार्ड, परिचालन से संबंधित सभी विभागों के कर्मचारियों की जान खतरे में है। एक तरह से इसे सीधे प्रधानमंत्री के आदेश की अवहेलना के तौर पर देखा जा सकता है, जिन्होंने बार-बार देश के नागरिकों से अनुरोध करते हुए कहा है कि जहां हैं, वहीं रहें, अपने घर में रहें और सुरक्षित रहें!
तथापि रेलवे में प्रधानमंत्री के सतत आग्रह की लगातार अनदेखी कर अवहेलना की जा रही है। रेलवे बोर्ड के आदेशों, दिशा-निर्देशों में कोई एकरूपता नहीं है। पहले तो रेलवे बोर्ड ने रास्तों में जहां-तहां फंसे रेलकर्मियों को तीन-चार डिब्बों की स्पेशल ट्रेन चलाकर उनके गृह-गंतव्य तक पहुंचाने के कई जोनल रेलों के मुख्य परिचालन प्रबंधकों के अनुरोध को ठुकरा दिया।
इससे सैकड़ों रेलकर्मी – ओबीएचएस, कोच अटेंडेंट, एसी मैकेनिक और रनिंग स्टाफ – जहां-तहां फंसे रहे तथा उन्हें उनके होम स्टेशन पहुंचाए जाने की गुहार लगाते रहे, मगर रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी और फिर खाली रेक दौड़ाने की अनुमति दे दी, जिससे किसी अन्य रेलवे को किसी दूसरी रेलवे के रेक का अनुरक्षण न करना पड़े। रेलवे बोर्ड का यह एक बिना सोचा-समझा और अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय था।
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जहां लॉकडाउन के अभी तीन-चार दिन ही बीते थे और देश भर में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ते जा रहे थे, जिन पर अभी भी नियंत्रण होने या कमी आने का कोई संकेत नहीं है, तभी रेलवे बोर्ड ने पार्सल स्पेशल ट्रेनें चलाने का एक और तुगलकी फरमान जारी कर दिया।
रेलवे बोर्ड ने यह फरमान जारी करने से पहले किसी जोन के महाप्रबंधक (जीएम) अथवा प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक (पीसीओएम) से न तो कोई चर्चा की और न ही उन्हें विश्वास में लिया। यही नहीं, रेलवे को पार्सल ट्रैफिक मुहैया कराने वाले किसी भी स्टेक होल्डर से भी कोई बात नहीं की गई और सीधे पार्सल स्पेशल ट्रेनें चलाने का फरमान जारी कर दिया गया। जिसका नतीजा सामने है कि दासियों लाख की परिचालन लागत की बनिस्बत रेलवे को इन पार्सल स्पेशल ट्रेनों के लिए कुछ हजार का पार्सल सामान पहुंचाने को मिला है।
उदाहरण के तौर पर रेलवे बोर्ड के दबाब में पश्चिम मध्य रेलवे ने रीवा से बीना के लिए चलाई गई पार्सल स्पेशल ट्रेन से इन्होंने कमाई है मात्र 556 रुपए! प्राप्त जानकारी के अनुसार पश्चिम मध्य रेलवे ने ऐसी पांच पार्सल स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं, जिनकी कुल परिचालन लागत के बराबर तो क्या उसे एक चौथाई पार्सल कीमत भी नहीं मिली है। यही हाल अन्य जोनल रेलों से चलाई जा रही पार्सल स्पेशल ट्रेनों का भी है।
यशवंतपुर (बंगलोर) से हावड़ा के लिए जो ट्रेन चलाई गई है, उसमें जो सामान था, वह शायद एक छोटी किराने की दूकान के लिए भी शर्म की बात होती। इससे आमदनी रेल की होती है मात्र 55 हजार रुपए। जबकि डीआरएम, बंगलोर ने इस मौके पर क्या गर्वित संदेश दिया, वह भी यहां देख लें। कहा तो यह भी जा रहा है कि लॉकडाउन से पहले जो पार्सल बुक पड़ा था, वह इन कथित पार्सल स्पेशल ट्रेनों में “आवश्यक वस्तुओं” के नाम पर भरकर भेजा जा रहा है। वास्तव में शायद इसी के लिए कुछ पार्टियों द्वारा सीआरबी को पटाया गया है।
मंडल रेल प्रबंधक, बंगलोर द्वारा यशवंतपुर-हावड़ा पार्सल स्पेशल शुरू करने के अवसर पर रेलवे बोर्ड को भेजा गया संदेश
Dear Sirs, First ever Timetabled Parcel Express of SWR started on its maiden historical journey from YPR to HWH today. This first Timetabled Parcel Express is consisting of 5 VPs carrying about 11000 kgs essential goods. Enroute loading is expected from few more stations. This first ever Timetabled Parcel Express (YPR-HWH-YPR) started from YPR at RT. 100% original punctuality. A new chapter for IR during the tough times. Regards DRM SBC
मजे की बात यह है कि लोगों की आंख में धूल झोंकने के लिए मेडिसिन को भी लोडिंग समरी में दिखया जाता है, जिसकी एवज में रेलवे को मात्र 520 रुपए की आमदनी हुई। अब सोचिये कि यह कितनी बड़ी आमदनी हुई है और यह कितना बड़ा कंसाइनमेंट था दवा का? (और वह दवा क्या डेस्टिनेशन स्टेशन वाले शहर में उपलब्ध नहीं थी और वह दवा भी एसेंसियल नेचर की थी क्या?)
इसी तरह चेन्नई से दिल्ली की पार्सल स्पेशल ट्रेन से रेलवे को मात्र 12/13 हजार रुपए की ही कमाई हुई। पार्सल स्टाफ के रेलकर्मियों द्वारा भी यह सवाल उठाया जा रहा है कि चेन्नई की बीज लोड करने वाली पार्टी पर आखिर रेलवे इतनी मेहरबान क्यों है? जबकि अभी के माहौल में यह बीज एसेंसियल कमोडिटीज की श्रेणी में तो कतई नहीं आता है!
इनमें से किसी भी पार्सल स्पेशल ट्रेन में एसेंसियल कमोडिटीज नहीं भेजी जा रही हैं पर उनके नाम पर दलाल कुछ 100/200 रुपए अपने पॉकेट से खर्च करके दवा के कुछ पैकेट रख दे रहे हैं जिससे रेलवे बोर्ड में बैठे उनके आकाओं को कहने को रहे कि हम दवा जैसे अत्यंत जरूरी माल की ढुलाई कर राष्ट्र की इस सबसे जरूरी मुहिम में अपना अमूल्य योगदान दिए हैं और इस तरह हम लोग इस कृत्य के लिए “कीर्ति चक्र” के पात्र हैं, लेकिन सिविलियंस को यह विरले ही मिल सकता है, अतः हम “पद्मविभूषण” से ही संतोष कर लेंगे!
जी यह मजाक नहीं है। वस्तुतः यह रेलवे में ऊपर बैठे लोगों के मन की बात है। ये उनकी दिली ख्वाहिश भी है।शायद सरकार में बैठे ऐसे निर्द्वंद, निरंकुश, अगंभीर, असंवेदनशील, गैरजिम्मेदार और नाकाबिल लोग इसी तरह की इच्छा अपने मन में पालते रहते हैं और अधिकार के साथ थोड़ा सा भी मौका मिलने पर इसी तरह के तुगलकी फरमान जारी करते हैं।
रेलवे बोर्ड में बैठे इन कथित बड़े लोगों ने फील्ड से मिल रहे नेगेटिव फीड बैक के बावजूद और बिना राज्य सरकार या लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के आग्रह/निर्देश अथवा अनुरोध के एसेंसियल कमोडिटीज के नाम पर बड़ा खेल शुरू कर दिया।
10-15 लाख खर्च कर 500 और 50 हजार का माल ढ़ोने का ढोंग कर रेलवे बोर्ड में बैठे इन कथित मूढ़ बड़े अफसरों ने पूरे देश में अपने सैकड़ों कर्मचारियों को खतरे में डाल दिया है। एक नमूना देखें – रेलवे बोर्ड के दबाव के चलते पूर्व रेलवे, हावड़ा मंडल के सीनियर डीसीएम ने पार्सल कर्मचारियों की ड्यूटी लिस्ट जारी कर दी, मगर उनको उनके घरों से लाने की कोई व्यवस्था नहीं की।
यूनियन द्वारा इस संबंध में पुलिस/कर्फ्यू पास के बिना स्टाफ के ड्यूटी पर न आने की बात कहने पर सीनियर डीसीएम का जवाब था कि सभी के लिए पास कंट्रोल में बनाकर रख दिए गए हैं, वहां से ले लें। इसे मूर्खतापूर्ण न कहा जाए, तो क्या कहा जाए, कि कंट्रोल रूम तक कर्मचारी बिना पास के पुलिस से बचकर पहुंचेगा कैसे?
इस संबंध में चीफ पार्सल एंड लगेज इंस्पेक्टर/हावड़ा और यूनियन पदाधिकारी के बीच हुआ वार्तालाप –
Sir, It is an ordinary general List or roster valid for tomorrow. No any roster become valid without seal and signature. Second have you issue permission letter for duty on Emergency for traveling in this lock down period call by our PM. Pl do needful for save our employees, nation as well as our staff. We are ready to perform our duty but after taking necessary measures.
List has issued by CPLI/HWH D K Giri on 01.04.2020 for joining duty. Then Union has requested to him as above and said, “otherwise Rail Mazdoor Union, Eastern Zone and National Front of Indian Trade Union, West Bengal will creat ruckus”.
CPLI replied as under…
SrDCM will issue permission letter to staffs on emergency if any staffs demands.
Remark passed by SrDCM/HWH as under
“Pass is lying at commercial control those who are assigned emergency duty they may come and collect”.
उपरोक्त स्थिति लगभग सभी जोनों/मंडलों की है। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि रेलवे बोर्ड के अफसरों ने कुछ पीएमओ की नजर में आने की चाहत और कुछ अपना अपना स्वार्थ/एजेंडा साधने के चक्कर में जाने-अनजाने कोरोना वायरस के फैलाव को राष्ट्रीय स्तर पर रेलवे को कैरियर बनाने का माध्यम सम्पादित कर दिया है।
रेल कर्मचारियों के बीच दबे स्वरों में दक्षिण रेलवे से उतर रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, उत्तर पश्चिम रेलवे, पूर्व तट रेलवे एवं दक्षिण पश्चिम रेलवे और पश्चिम रेलवे, मुंबई से लेकर पूर्व रेलवे एवं दक्षिण पूर्व रेलवे, कोलकोता तक इसको लेकर रेलकर्मियों में आक्रोश बढ़ता चला जा रहा है और दबे स्वर में उनके द्वारा इसके माध्यम से रेलवे बोर्ड के अफसरों की कुछ और मंशा/धंधे की बात भी की जा रही है।
रेल कर्मचारियों का यह कहना है कि आज जब व्यापारी से लेकर लेबर तक डर के कारण और प्रधानमंत्री के निर्देश के अनुपालन में घरों में दुबके बैठा है, न माल है और न कहीं से उस तरह की एसेंसियल कमोडिटीज के लिए रेलवे से डिमांड मिल रही है, फिर भी खुद ये बड़े अधिकारी लोग आदेश निकालकर अपने-अपने आलीशान घरों में बैठ नीचे के तबके के लोगों को परेशान होते देखकर अपना मनोरंजन कर रहे हैं।
कुछ रेलकर्मियों का तो यह भी कहना था कि इन्हीं कुछ बड़े अधिकारियों में से कुछ ने पार्टीयों से एहसान की एवज में सोमरस की अबाध आपूर्ति भी सुनिश्चित कर चुके हैं और अपने आलीशान बंगलों में बैठकर मौज कर रहे हैं, तो बिना न्यायोचित ट्रैफिक और काम के हम स्टाफ को स्टेशनों और ट्रेनों में क्यों भेजा जा रहा है?
रेलवे में यह स्थिति सिर्फ कमर्शियल स्टाफ की ही नहीं है, बल्कि इससे भी बुरी स्थिति में ट्रैक मेंटेनर्स, सिग्नलिंग स्टाफ को काम करना पड़ रहा है। जहां सोशल डिस्टेंसिंग का कोई स्कोप नहीं है और न ही इसका पालन सुनिश्चित किया जा रहा है। इंजीनियरिंग एवं सिग्नल अधिकारियों को लगता है, यही सबसे मुफीद मौका है कि खाली पड़े ट्रैक की हर संभव मेंटीनेंस को सुनिश्चित कर लिया जाए।
Track Maintainers with track machine working at Farah station, Agra dIvision, North Central Railway
अहमदाबाद मंडल, पश्चिम रेलवे के कई सिग्नलिंग स्टाफ और आईआरएसटीएमयू के पदाधिकारियों ने जब फील्ड में स्टाफ के साथ की जा रही अधिकारियों की मनमानी की तस्वीरें ट्विटर सहित अन्य सोशल मीडिया में डाल दीं और उसे पीएमओ सहित केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, कार्मिक मंत्रालय एवं मानवाधिकार आयोग को भी टैग कर दिया, तो उन्हें जोन से लेकर मंडल मुख्यालय तक से धमकी दी गई कि यदि उन्होंने यह सब करना बंद नहीं किया तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे और ट्विटर पर जवाब में सब कुछ ठीक होने की बात कही गई। देखें एक बानगी-
https://twitter.com/irstmu/status/1245236009559674883?s=20
“All staff of maintenance which are not following the instructions and maintaining without mask and clicking and sending pictures now and not doing maintenance by giving one or other irrelevant reasons, should be identified and bring to my notice”, this threatening message given by the DSTE/W/ADI.
उनका कहना है कि इससे तो सिर्फ हम ही नहीं, हमारा परिवार भी खतरे में है। अगर काम हो, तो रेल कर्मचारी जान की परवाह किए बिना काम करने को तैयार है और करता भी रहा है, लेकिन कुछ बड़े अधिकारियों के छिपे एजेंडे के चलते वह अपने और अपने परिवार की कुर्बानी नहीं दे सकते।
लगभग सभी जोनों की स्थिति एक जैसी ही है, जहां कुछ ब्रांच अफसरों और कुछ मुख्यालय अधिकारियों की मनमानी चरम पर है। किसी भी जोन या डिवीजन का एक भी रेल कर्मचारी ऐसा नहीं मिला जिसने यह कहा हो कि प्रशासन उनके साथ वाजिब सहयोग कर रहा है। अधिकांश रेलकर्मियों और यूनियन पदाधिकारियों का कहना था कि प्रशासन ने पर्याप्त मात्रा में फेस मास्क और सेनिटाइजर उपलब्ध नहीं कराया, न सोशल डिस्टेंसिंग का कोई ख्याल रखा जा रहा है, जबकि रेलवे की ग्राउंड वर्किंग सामुहिक रूप से होती है। उनका कहना था कि सिर्फ कहने के लिए रेल बंद है, क्योंकि रेलवे में पीएम के लॉकडाउन सहित अन्य सावधानियों का कोई औचित्य नहीं रह गया है। ऐसे में रेलवे कोरोना की प्रमुख वाहक भी बन रही है।
अतः उनका कहना है कि इन कुछ बड़े रेल अधिकारियों के इस खेल के पीछे छुपे एजेंडे की बाकायदा न्यायिक या सीबीआई जांच होनी चाहिए। इसके पीछे की मंशा और नफा-नुकसान की जांच होने पर प्रधानमंत्री को बखूबी पता चलेगा कि कितने काबिल लोगों (विषधर धुंधकारियों) के भरोसे वे देश को और रेलवे को बदलना चाहते हैं। यूनियन पदाधिकारियों की इस बात से कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने भी अपनी सहमति जताई है।
इस वैश्विक आपदा की स्थिति में भी कई अधिकारी, ठेकेदार और व्यापारी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं। पीएमओ को बाकायदा इस आपदा के सामान्य होने के बाद से इस तरह के सभी आदेशों, भुगतान और अप्रूवल्स की जांच करानी चाहिए, जिससे भ्रष्ट लोगों के गठबंधन और उनके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का बड़ी आसानी से पता चल जाएगा।
अब कई जगह पर रेलवे के पार्सल के नोटिफिकेशन को देखकर लोगों ने कर्मचारी और अधिकारियों को परेशान करना शुरु कर दिया है। कोई एक किलो चूर्ण अपने किसी रिलेटिव को नासिक भेजना चाहता है, तो कोई 5 किलो हरी सब्जी। कोई फेसमास्क के नाम पर एक बोरा माल भेजना चाहता है, तो कोई पटना सैनिटाइजर के नाम पर स्पिरिट या बीयर। सबकी धमकी सीधे मंत्री या सीआरबी से शिकायत करने की होती है। इससे कई कर्मचारी और अधिकारी बुरी तरह परेशान हो गए हैं और साथ ही उनके परिवार वाले भी असमय आने वाली फोन कॉल्स से भी दुःखी हो चुके हैं।
उत्तर रेलवे द्वारा ट्रेन नं.00324/23 और 00326/25 नई दिल्ली-हावड़ा, ट्रेन नं. 00901/02 बांद्रा टर्मिनस- लुधियाना तथा ट्रेन नं.00646/47 चेन्नई सेंट्रल – नई दिल्ली के तौर पर चार पार्सल स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही हैं। इसी प्रकार सभी जोनल रेलों ने रेलवे बोर्ड के दबाव में पार्सल स्पेशल ट्रेनों को चलाने का शेड्यूल बनाया है। अब देखने वाली बात यह है कि इन तथाकथित पार्सल स्पेशल्स में वास्तव में क्या भरकर भेजा जा रहा है!
कायदे से फेस मास्क कोई अधिकृत कंपनी ही बना सकती है और बेच सकती है। इसका अपना एक मानक तय होता है। लेकिन अब इसकी किल्लत के नाम पर सारे दर्जी अपना बाकी काम छोड़कर फेस मास्क बना रहे हैं। पता चला है कि अब रेलवे की उत्पादन इकाईयों में भी फेस मास्क और मेडिकल उपकरण बनाए जाएंगे। इन अमानक फेस मास्क का उपयोग भी काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है। वह भी तब जब यह कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस की रोकथाम में एन-95 मास्क भी बहुत कारगर नहीं है। तथापि यह समझना मुश्किल हो रहा है कि यात्री-माल परिवहन के मुख्य कार्य से भटका कर रेलवे को आखिर किस दिशा में दौड़ाने का प्रयास किया जा रहा है?
देखें अधिकारियों की मनमानी और कर्मचारियों को अनावश्यक परेशान किए जाने की एक और बानगी, जिसमें रेलवे की तिजोरी में पड़े मात्र 213 रुपए लॉकडाउन के दौरान बैंक में जमा करने पर जोर दिया गया है, जिसकी ट्रांसपोर्टेशन लागत ही कम से कम इसकी दस गुना होगी-
“All sectional TI (c)s are requested to advise the station concerned to deposit the entire station earnings lying at stations or goods shed to nearest SBI branches under Rail Shakti account within 31st Mar’2020 and send the all acknowledged TR note along with CR notes to DC/HWH through whattsap. Transportation cost towards remittance of earnings to nearest SBI branches will be reimbursed and a format for stations to be submitted also to DC/HWH. This is as per SrDFM/HWH considering the present situstion. Please treat the matter most urgent.
“An amount of Rs. 213 (Rs Two Hundred Thirteen only) has been lying at strong Room Since 25th March after delivery of emergency items to ID Hospital, Beliaghat. Now you are requested to issue further instruction for disposal the same”.
“Please deposit the cash by tomorrow anyhow”.
“It’s necessary to manage the situation but administration will have also take necessary action towards staff such as permission letter for Emergency duty in this Lock down period and others”. replied by the commercial supervisor and said his residence is about 5km far from HWH Station. No any convenience is available, also required police verification. kindly arrange a suitable way for the same, I am ready for my duty.
“You may talk TIC HWH-1”.
These above conversation is between the commercial supervisor with Howrah Parcel Depot Incharge and ACM. They are ordering forcibly to deposit Rs. 213/- only lying in iron safe provided at Howrah Parcel Strong Room without any arrangements of permission order for Emergency duty or any convenience.
https://twitter.com/irstmu/status/1243477077849853953?s=20
मनमानी की एक और बानगी: लॉकडाउन के समय जब सब अपने घरों में कैद रहने को मजबूर हैं और कोई अपने ऑफिस नहीं जा पा रहा है तब माडर्न कोच फैक्ट्री (एमसीएफ) रायबरेली के एक डिप्टी सीएमई ने आदेश जारी करके वहां काम कर रहे सभी ठेकेदारों को शुक्रवार, 5 अप्रैल तक अपने लेबर्स का संपूर्ण हिसाब-किताब श्रमिक पोर्टल पर अपलोड करने को कहा है। यह भी कि ऐसा न करने पर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। जबकि ठेकेदारों का कहना है कि उनका सारा रिकॉर्ड उनके ऑफिस के कंप्यूटरों में है, पुलिस अनुमति नहीं दे रही है, रेलवे से उन्हें भुगतान नहीं मिल रहा है, ऐसे में उन पर चौतरफा मार पड़ रही है और कोई उनकी सुनने वाला नहीं है।
उपरोक्त तमाम तथ्यों से जाहिर है कि वर्तमान स्थिति में पूरी भारतीय रेल में अराजकता का माहौल बन गया है। बोर्ड द्वारा लगातार जारी किए जा रहे विसंगतिपूर्ण आदेशों को देख-देखकर जोनल अधिकारी रेलवे बोर्ड के प्रति स्पष्टत: अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। परंतु उनकी समस्या यह है कि लगभग रोजाना हो रही वीडियो कांफ्रेंसिंग के बावजूद वे अपनी बात सीधे रेलमंत्री से नहीं कह पा रहे हैं। हां, यदि रेलमंत्री, सीआरबी सहित रेलवे बोर्ड के सभी मेंबर्स को बाहर रखकर सीधे जोनल जीएम और पीसीओएम के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग करें, तो उन्हें न सिर्फ जमीनी हकीकत का पता चलेगा, बल्कि रेलवे बोर्ड के तथाकथित काबिल मेंबर्स और रेल परिचालन से सर्वथा अनभिज्ञ सीआरबी की भी पोल खुल जाएगी।
Courtesy: www.railsamachar.com