रेलवे बोर्ड ने वरिष्ठतम आईआरटीएस अधिकारी को एडीशनल मेंबर स्तर पर पदोन्नति से किया वंचित

अन्याय की पराकाष्ठा, रेलवे बोर्ड से नहीं, तो कोर्ट से मिलेगा न्याय

जिस तरह की अंधेरगर्दी आजकल रेलवे बोर्ड में चल रही है, वैसी अंधेरगर्दी कभी नहीं रही!

पश्चिम मध्य रेलवे के प्रिंसिपल सीसीएम पद पर कार्यरत वरिष्ठतम आईआरटीएस अधिकारी सुरजीत कुमार दास को रेलवे बोर्ड ने एडीशनल मेंबर (एचएजी+) स्तर पर पदोन्नति से वंचित कर दिया है, जबकि उनके खिलाफ न कोई विजिलेंस केस पेंडिंग है, न कोई चार्जशीट है, न कोई जांच हो रही है, और न ही पूरी सर्विस के दौरान वह कभी भी किसी सीक्रेट अथवा एग्रीड लिस्ट में रहे हैं।

श्री दास 1984 बैच के वरिष्ठ आईआरटीएस अधिकारी हैं। इससे पहले वह दक्षिण पूर्व रेलवे, पूर्व रेलवे, मेट्रो रेलवे, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम करके उन पदों की जिम्मेदारियों का सफल निर्वाह कर चुके हैं। उनका सेवाकाल अगले महीने खत्म होने वाला है और वह 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

प्राप्त जानकारी के अनुसार ट्रैफिक निदेशालय, रेलवे बोर्ड में एडीशनल मेंबर (एएम) के चार पदों को भरने हेतु 11 दिसंबर 2019 को डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी (डीपीसी) की मीटिंग में श्री दास के नाम पर विचार ही नहीं किया गया, क्योंकि इस डीपीसी में उनका नाम शामिल नहीं था।

ज्ञातव्य है कि उक्त डीपीसी में मुकेश निगम का नाम न सिर्फ शामिल था, बल्कि एएम में उनकी पदोन्नति करके उन्हें डीजी/आईआरआईटीएम/लखनऊ के पद पर पदस्थ भी कर दिया। जबकि श्री निगम आईआरटीएस 1984 एग्जाम बैच की सीनियरटी लिस्ट में श्री दास से जूनियर हैं। ऐसे में यह समझना काफी मुश्किल हो रहा है कि आखिर किस वजह से श्री दास को पदोन्नति से वंचित करते हुए उनसे जूनियर श्री निगम को एचएजी+ (एएम लेवल) में पदोन्नत कर दिया गया!

जानकारों का कहना है कि जब पीईडी/सेफ्टी (पोस्ट कोड 7503) की पोस्ट को रेलवे बोर्ड में बतौर एएम/सेफ्टी ऑपरेट करने के लिए नए पोस्ट कोड (11आरबी2पी001) के साथ एचएजी+ में अपग्रेड (रे. बो. पत्र क्र. 2016 (जीसी) 16-9 (कैडर रिव्यू) (वाल्यूम-3)(आईआरटीएस)33, दि.09.03.19) किया गया था, तब श्री दास का उक्त पद पर प्रमोशन के लिए पर्याप्त सेवाकाल बाकी था। परंतु अब उसी पोस्ट को रेलवे बोर्ड से बाहर शिफ्ट करके उस पर श्री दास से जूनियर श्री निगम को पदोन्नत कर दिया गया है, जो कि श्री दास के साथ सरासर अन्याय है।

जानकारों का यह भी कहना है कि एएम स्तर पर प्रमोशन का जो क्राइटेरिया पहले से तय है, उसके अनुसार इस स्तर पर पदोन्नति के लिए किसी अधिकारी को उसके पिछले 10 वर्षों के रिकॉर्ड के अनुसार अधिकतम (संभावित) 50 पाइंट्स में से न्युनतम 44.0 पाइंट्स चाहिए होते हैं, जबकि श्री दास के यह पाइंट्स 45.5 थे।

उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार श्री दास अपने बैच के टॉपर रहे हैं। इसके अलावा एचएजी सहित उन्हें अब तक के सभी प्रमोशन निश्चित समय पर दिए गए हैं। उनके खिलाफ कोई विजिलेंस केस भी नहीं है, और न ही कोई जांच लंबित है। अब तक के पूरे सेवाकाल में उन्हें कभी कोई चार्जशीट नहीं मिली, और न ही उनका नाम कभी किसी एग्रीड या सीक्रेट लिस्ट में शामिल रहा है। इसके अलावा एएम स्तर पर पदोन्नत उक्त चारों अधिकारियों की अपेक्षा वह शैक्षिक योग्यता में भी अधिक हैं।

उपरोक्त तमाम तथ्यों के मद्देनजर जानकारों का कहना है कि जिस तरह की अंधेरगर्दी आजकल रेलवे बोर्ड में चल रही है, वैसी अंधेरगर्दी कभी नहीं रही। उनका यह भी कहना था कि नियमानुसार किसी जूनियर को पदोन्नति देने के साथ ही उससे इमीडिएट सीनियर को भी समान ग्रेड बहाल किया जाता है। परंतु श्री दास के मामले में रेलवे बोर्ड ने अन्याय की पराकाष्ठा करते हुए उन्हें इससे भी वंचित रखा है।

उन्होंने कहा कि श्री दास को रेलवे बोर्ड से नहीं, तो कोर्ट से अवश्य न्याय मिलेगा। परंतु सर्वप्रथम उन्हें विभागीय प्रक्रिया जरूर पूरा कर लेना चाहिए। पता चला है कि श्री दास ने एएम स्तर पर पदोन्नति पर दावा करते हुए अपना ज्ञापन रेलवे बोर्ड को सौंप दिया है।