अंडर ट्रांसफर और रिटायर होने वाले विभाग प्रमुखों को पदोन्नति, पदस्थापना तथा विभागीय चयन प्रक्रियाओं से विलग किया जाए

ऐसे मामलों में आरोप-प्रत्यारोप, पक्षपात, भेदभाव और भ्रष्टाचार होने की हमेशा रहती है गुंजाइश

पूर्वोत्तर रेलवे के प्रमुख वित्त सलाहकार (पीएफए) का ट्रांसफर, रेलवे बोर्ड के आदेश के अनुसार 11.02.20 को रे.बो. में एएम/बजट के पद पर हुआ था मगर उन्होंने अब तक पद नहीं छोड़ा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि एक तरफ 14/15 नवंबर 2019 को हुई एकाउंट्स विभाग की एलडीसीई 30% का रिजल्ट तीन माह बाद आनन-फानन में 17.02.20 को निकाला गया और 24.02.20 को 6 कैंडीडेट्स का फाइनल सेलेक्शन किया जाने वाला है। इसमें पक्षपात की आशंका से अन्य कैंडीडेट्स ने पीएफए के पद छोड़ने अथवा स्पेयर होने तक इस सेलेक्शन को विलंबित करने की मांग की है।

दूसरी तरफ इसका दूसरा परिणाम यह बताया गया है कि पीएफए के बेटे की शादी 26 फरवरी को होने वाली है, जिसके लिए समस्त विभागीय संसाधनों सहित विभाग में कार्यरत कुछ महिलाओं को हल्दी आदि रस्मों में नचाया जा रहा है। आज तिलक की रस्म अदायगी है, उसमें भी उक्त महिला कर्मियों को नचाने का कार्यक्रम तय है। बताते हैं कि कोरियोग्राफर बुलाकर 21 जनवरी से इनकी डांस प्रैक्टिस भी करवाई गई। तथापि डांस प्रोग्राम में शामिल रही तीन महिलाएं अपेंडिक्स-3 परीक्षा में फेल कर दी गईं, जबकि इसी “फेवर” की अपेक्षा में वह नाच रही थीं!

इसके अलावा अधिकारियों का यह भी कहना है कि शादी का पूरा खर्च निर्माण संगठन में पदस्थ एक डिप्टी एफए द्वारा उठाया जा रहा है, जो पीएफए की कृपा से ही करीब एक साल पहले पुनः निर्माण संगठन में पोस्टिंग पाने में कामयाब हुआ था, जबकि वहां लंबे समय तक लगातार पदस्थ रहने और करप्शन के आरोप में ही पूर्व एफसी/रे.बो. समर झा के सीधे आदेश पर तब उसे निर्माण संगठन से हटाया गया था।

इसके अतिरिक्त पीएफए द्वारा अपने कुछ अन्य चहेतों को लाभ पहुचाने के लिए नियमों को ताक पर रखकर हाल ही में सीनियर स्केल में पदोन्नति दे दी गई।

अब जहां तक पीएफए के रेलवे बोर्ड में प्रमोशन पर ट्रांसफर की बात है, तो ऑर्डर निकलने के बाद यथाशीघ्र पद छोड़ने के दवाब के चलते आनन-फानन में 30% सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (एलडीसीई) का परिणाम निकाला गया है। ज्ञातव्य है कि यह परीक्षा तीन महीने पहले 14/15 नवंबर 2019 को हुई थी और दो विभागीय अधिकारियों द्वारा मात्र 40 परीक्षार्थियों की ही कापियां जांची जानी थीं।

सवाल यह उठाया गया है कि यदि इस सेलेक्शन के पीछे पीएफए की कोई निजी मंशा नहीं होती, तो सेलेक्शन की यह समस्त प्रक्रिया इन तीन महीनों में पूरी की जा सकती थी। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि रेलवे बोर्ड में ट्रांसफर के बाद ही इसकी जल्दबाजी क्यों मची हुई है? इसका कारण यह बताया गया है कि तब उन्हें शायद ट्रांसफर का आदेश इतनी जल्दी आ जाने की ऐसी कोई आशंका नहीं रही होगी।

विश्वस्त जानकारी के अनुसार द्वितीय कॉपी की जांच में कोई भी कैंडिडेट पास नहीं हुआ था। परंतु ऊपर के दवाब के चलते मनपसंद कैंडिडेट के साथ कुछ डमी कैंडीडेट्स को भी पास किया गया है। अब तक रेलवे रिकार्ड में शायद किसी विभाग के लिखित परीक्षा परिणाम के सातवें दिन इंटरव्यू नहीं हुआ होगा, जो अब यहां होने जा रहा है। जबकि उसके अगले दिन ही पीएफए के पुत्र का विवाह समारोह है, जिसके चलते यहां कार्यालयीन कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है, क्योंकि पीएफए के लगातार कार्यालय में न रहने के कारण इस दरम्यान कई स्टेटमेंट रेलवे बोर्ड को नहीं भेजे जा सके हैं।

बहरहाल, जो भी हो, किसी अंडर ट्रांसफर और रिटायर होने वाले विभाग प्रमुखों के मातहत प्रमोशन, सेलेक्शन और ट्रांसफर जैसी अति-संवेदनशील प्रक्रियाएं होने देना न तो निष्पक्षता एवं पारदर्शिता के दृष्टिकोण से उचित है, और न ही नैतिक रूप से ऐसा होने दिया जाना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में पूर्व मध्य रेलवे के विद्युत विभाग की ऐसी ही प्रक्रिया पर तत्काल संज्ञान लेते हुए रेलवे बोर्ड ने उसे विलंबित किया था। अब यही संज्ञान पूर्वोत्तर रेलवे के मामले में भी लिया जाना चाहिए और साथ ही सभी जोनल रेलों तथा मंडलों के लिए ऐसे ही मानक आदेश दिए जाने चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे मामलों पर इस प्रकार के विवादों से बचा जा सकेगा।