#अरविंदकेजरीवाल: एक सफल या कुटिल राजनीतिज्ञ !
भाजपा को अपना राजनीतिक स्टैंड साफ करना होगा
जनता को मुफ्तखोर बनाकर नहीं, रोजगार देकर ही बन सकती है पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था!
कुछ भी कहिए! ये बंदा, जिसका नाम अरविंद केजरीवाल है, खुलेआम अल्पसंख्यक तुष्टिकरण करता है। सेना पर सवाल उठाता है, टुकड़े-टुकड़े गैंग का खुला समर्थन करता है। पर योजनाओं में भेदभाव नहीं करता। भले ही उसकी सोच और मानसिकता की वजह से ज्यादातर लोग उससे घृणा करते हैं, पर बंदा नफरत की नहीं, सीखने की चीज है।
एक विशालकाय भाजपा के सामने अदना सा अरविंद केजरीवाल अडिग खड़ा रहा। उसे सिर्फ 12-15% तथाकथित अल्पसंख्यकों ने ही नहीं, बल्कि बहुसंख्यकों ने भी वोट दिया है।
सोचिए ! राज्य दर राज्य हारती भाजपा ! आखिर क्या वजह हो सकती है? अगर यूपी भी हारे तो? सब कुछ खत्म हो जाएगा।
वजह ये है कि भाजपा बात तो हिंदुत्व की करती है, वोट हिंदुत्व के नाम पर मांगती है, मगर योजनाएं जातिगत आधार पर लागू करती है, जिनका फायदा न पहले उसे कभी मिला, न आगे कभी भविष्य में मिलने की कोई संभावना है।
भावनाएं अपनी जगह हैं, पर यह तय है कि यदि यही स्थिति रही तो भाजपा, अपनी जातिवादी, वर्गवादी, भेदभाववादी योजनाओं की वजह से यूपी-बिहार भी हारने जा रही है।
देखें, भाजपा और आम आदमी पार्टी यानि अरविंद केजरीवाल की योजनाओं का तुलनात्मक अध्ययन
भाजपा की योजनाएं
- उज्ज्वला योजना: इसमें गैस सिलेंडर सामान्य वर्ग को तभी देने का प्रावधान है जब एससी-एसटी, ओबीसी और मुस्लिम वर्ग को देने के पश्चात बचेगा।
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प्रधानमंत्री आवास योजना: प्रैक्टिकली यह सिर्फ शहरी मुसलमानों के लिए बनाई गई है। इसमें ढ़ाई लाख रुपये मकान बनाने के लिए मिलते हैं। इसकी क्राईटेरिया ऐसी बनाई गई है कि उसमें सिर्फ मुसलमान ही फिट बैठते हैं। खासकर के फार्म में शुक्ला, मिश्रा, तिवारी, पांडे, दुबे, चौबे, सिंह, सिन्हा, श्रीवास्तव इत्यादि सरनेम वाले फार्मों को सरकार का साफ्टवेयर ऑटोमेटिक रिजेक्ट कर देता है।
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प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना: इसमें 5 लाख तक के इलाज का बीमा कवर दिया जाता है। पर किसे? जिन्हें मिलता है, वे न भाजपा को वोट देते हैं, न कभी देने वाले हैं।
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स्टार्टअप योजना: यह भी जातिवाद की नींव पर आधारित है। इसमें भी पहली प्राथमिकता एससी-एसटी को, फिर ओबीसी को और अंत मे सवर्णों को है।
अब केजरीवाल की योजनाएं देखें
- 200 यूनिट बिजली फ्री: इसमें कोई भेदभाव नहीं है। दलित, सवर्ण, यादव, ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, हिंदू, मुसलमान, टाटा, अंबानी, एमडी, चपरासी, भईया, बिहारी जो है, सबके लिए है।
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डीटीसी बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा: इसमें भी कोई भेदभाव नहीं है। सभी जाति-वर्ग-धर्म की महिलाओं के लिए एक समान व्यवस्था है।
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हर महीने बीस हजार लीटर मुफ्त पानी: यह भी सबके लिए। कोई कैटेगरी नहीं, कोई जातिभेद अथवा वर्गभेद नहीं है। कोई अमीर-गरीब का भेद भी नहीं है।
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मुफ्त स्कूली शिक्षा: अन्य राज्यों के उलट शिक्षा में यहां कोई भेदभाव नहीं। सभी जातियों के लिए मुफ्त शिक्षा। भाजपा सरकारों जैसी जातीय भेदभाव के आधार पर स्कालरशिप, फ्री साईकल, फ्री किताब-कॉपी वाली कोई योजना नहीं। सभी जाति-वर्ग के सभी बच्चों को एक जैसी सुविधा।
तात्पर्य यह है कि गरीब हर जाति में होते हैं। गरीबी जाति आधारित नहीं होती, बल्कि गरीबी आधारित योजनाएं लागू करना होगा जरूरी है, क्योंकि गरीबी जाति देखकर नहीं होती, वरना योजनाओं का लाभ जो लोग ले रहे हैं, उनका बड़ा प्रतिशत वोट नहीं देता, और जो वोट देता है, वो भी कटता जाएगा।
जातिगत आरक्षण पर भी भाजपा को अपना स्टैंड क्लीयर करना होगा और क्षेत्रीय-जातीय राजनीतिक पार्टियों के ब्लैकमेल से खुद को बाहर निकालना होगा, वरना निर्णय तो उससे करवाए जाते रहेंगे, मगर उसके इन निर्णयों का राजनीतिक लाभ क्षेत्रीय-जातीय पार्टियां उठाती रहेंगी।
जैसा कि एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उससे बदलवाकर इसका लाभ इन क्षेत्रीय – जातीय पार्टियों द्वारा लिया गया, जबकि उसका रंच मात्र भी फायदा भाजपा को नहीं मिला। अब यही प्रयास पदोन्नति में आरक्षण पर हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी कांग्रेस सहित एनडीए की अन्य सभी सहयोगी-विपक्षी क्षेत्रीय-जातीय राजनीतिक पार्टियों द्वारा भाजपा को घेरकर किया जा रहा है। अब भाजपा को अत्यंत सावधान होने की जरूरत है।
इसके अलावा, अब सभी राजनीतिक पार्टियों को यह भी विचार करना होगा कि मुफ्त की रेवड़ी बांटने वाली राजनीति आखिर इस देश को कहां ले जाएगी? क्या इस तरह की राजनीति करके देश की जनता को मुफ्तखोर बनाने का इरादा है? जहां जनता को मेहनतकश बनाने की जरूरत है, उसे रोजगार परक शिक्षा और स्वास्थ्य देने की आवश्यकता है, वहां टैक्स पेयर्स के पैसों का राजनीतिक दुरुपयोग करके जनता को मुफ्तखोर बनाने की कोशिश देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने तक कभी नहीं ले जा पाएगी।