दोनों सेवाओं की प्रकृति भिन्न होने के कारण इनका आपस में विलय अतार्किक और असंवैधानिक होगा
शीघ्रता में, बिना विचार-विमर्श के लिए गए निर्णय रेलवे के लिए अत्यंत हानिकारक और अपरिवर्तनीय क्षति पहुंचाने वाले सिद्ध हो सकते हैं -डॉ. ढ़ाल सिंह बिसेन, सांसद
रेलमंत्री के कल्पित कैडर मर्जर को लेकर सांसद डॉ ढ़ाल सिंह बिसेन ने लिखा कड़ा पत्र
लोकसभा सांसद डॉ ढ़ाल सिंह बिसेन ने रेलमंत्री पीयूष गोयल को एक कड़ा एवं दो-टूक पत्र लिखा है। अपने इस पत्र में सांसद बिसेन ने स्पष्ट लिखा है कि “शीघ्रता में, बिना विचार-विमर्श के लिए गए निर्णय रेलवे के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं और रेलवे को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंचा सकते हैं।” उन्होंने लिखा है कि रेलवे की आठ सेवाओं के विलय की आपकी (रेलमंत्री की) घोषणा के पश्चात संपूर्ण देश से कई अधिकारियों के प्रतिवेदन प्राप्त हुए हैं, जिन्हें मैं आपके ध्यानाकर्षण हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं।
सांसद डॉ बिसेन ने लिखा है कि “आईआरटीएस, आईआरपीएस और आईआरएएस सेवाएं रेलवे में किसी भी भौतिक संपत्ति का स्वामित्व एवं रख-रखाव की जिम्मेदारी नहीं रखती हैं। यह सेवाएं यूपीएससी की भारतीय सिविल सेवा परीक्षा द्वारा चयनित होकर आती हैं और उनके द्वारा स्थापित मूल्यों का संवर्धन करती हैं। यह सेवाएं मुख्यत: विभिन्न तकनीकी सेवाओं के मध्य समन्वय का काम करती हैं और किसी भी संस्था में चेक एंड बैलेंस के सिद्धांत को आकार प्रदान करती हैं। इन बहुमूल्य सेवाओं के उपरांत ही इतनी बड़ी रेल संस्था सुगम तरीके से संचालित हो रही है। वैसे विभाग, जिनका कार्य मुख्यत: समन्वय का है, उनका भी विलय कर देना ‘डिपार्टमेंटमेंटलिज्म’ को और ज्यादा बढ़ावा देगा, न कि उसे कम करेगा, जैसा आपने (रेलमंत्री) सोचा है!”
उन्होंने लिखा है कि, “रेलवे जैसे विभाग में, जहां संरक्षा सर्वोपरि है, इन आयामों को साकार करने हेतु सिविल सेवा से चयनित होकर आने वाली सेवाएं यथावत रहनी चाहिए। संरक्षा हेतु ऐसे विभाग जो न्यूट्रल एंपायर का काम करते हैं, उनका किसी भी प्रकार से विलय करना अनुचित होगा। आपके द्वारा सोची गई विलय की योजना से न्यूट्रालिटी समाप्त हो जाएगी और रेल संरक्षा की कोई गारंटी नहीं रह जाएगी। ऐसे में किसी भी रेल दुर्घटना के असल कारणों का आकलन भी कठिन हो जाएगा। रेलवे की परियोजनाएं भी सही समय पर और किफायती ढ़ंग से पूरी नहीं की जा सकेंगी। रेलवे को प्राप्त होने वाली संपत्ति (राजस्व) की उपयोगिता उस पर किए गए व्यय से कम होगी। अतः आपसे निवेदन है कि रेलवे की संरक्षा और वित्त संबंधी स्वतंत्रता को यथावत रखा जाए।”
उन्होंने आगे लिखा है कि “आपको ज्ञात होगा कि सिविल सेवा परीक्षा और इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा का पैटर्न पूर्णतः अलग-अलग है। यह परीक्षाएं बिल्कुल अलग ही योग्यताओं का आकलन करती हैं। अतः इनका आपस में विलय अतार्किक होगा। दोनों परीक्षाओं से आने वाले अधिकारियों की उम्र में भी काफी अंतर है। इनका आपस में विलय करना और कॉमन सीनियरिटी प्रदान करना सिविल सेवा परीक्षा से आने वाले अधिकारियों के साथ घोर अन्याय होगा।”
उन्होंने रेलमंत्री से आग्रह किया है, “आपको ज्ञात है कि वर्तमान जीएम की 27 पोस्टों पर अधिकांश इंजीनियरिंग सेवा के अधिकारी ही पदस्थ हैं और ऐसे मात्र 3 पदों पर सिविल सेवा से आने वाले अधिकारी की नियुक्ति है। यह भी सिविल सेवा के अधिकारियों के साथ घोर अन्याय है। इन सेलेक्शन पोस्टों पर इंजीनियरिंग एवं सिविल सेवा के अधिकारियों की समान नियुक्ति रोटेशन वाइज होनी चाहिए, जिससे रेलवे में तकनीकी एवं प्रशासनिक हुनर के आदान-प्रदान की सतत प्रक्रिया बनी रहे।”
सांसद डॉ ढ़ाल सिंह बिसेन ने पत्र में कहा है कि “जैसा कि मेरी अपनी समझ रेलवे के बारे में है, डिपार्टमेंटलिज्म जोनल और मंडल स्तर पर नगण्य है। अपितु रेलवे बोर्ड स्तर पर यह अवश्य पाया जाता है।” उन्होंने लिखा है कि “शरीर के जिस अंग में बीमारी हो, उसका इलाज करना उचित होगा। बेमात्रा में ली गई औषधि विष के समान होती है। अतः आपसे निवेदन है कि रेलवे बोर्ड में पाए जाने वाले डिपार्टमेंटलिज्म का उपचार करें, न कि जोनल एवं मंडल स्तर पर, जहां रेलवे का कार्य सुचारु रूप से किया जा रहा है।”
उन्होंने लिखा है कि, “आपके द्वारा ‘कल्पित विलय’ से सिविल सेवा अधिकारियों का एक पूरा महकमा आजीवन हतोत्साहित हो जाएगा और यह रेलवे के लिए अत्यंत घातक साबित होगा। सिविल और इंजीनियरिंग सेवा से आने वाले अधिकारियों की प्रकृति, क्षेत्रीय एवं वित्तीय शक्तियां और अर्हताएं भिन्न होने के कारण इन दोनों सेवाओं का आपस में विलय अतार्किक और असंवैधानिक होगा।”
उन्होंने रेलमंत्री से स्पष्ट शब्दों में कहा है कि, “आपके द्वारा ‘कल्पित’ इन सेवाओं के विलय पर पुनः गहराई से विचार करें और इस योजना से प्रभावित होने वाले सभी स्टेक-होल्डर्स से बात करें तथा विस्तृत विचार-विमर्श के उपरांत ही कोई उचित निर्णय लिया जाए।” अंत में उन्होंने स्पष्ट कहा है कि “शीघ्रता में, बिना विचार-विमर्श के लिया गया निर्णय रेलवे के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकता है और इससे रेलवे को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंच सकती है।”