दस साल में भी पूरा नहीं हो पाया दयाबस्ती ग्रेड सेपरेटर का निर्माण कार्य, अविलंब तय की जाए जिम्मेदारी

45 करोड़ से 350 करोड़ पहुंची प्रोजेक्ट की लागत, सभी संबंधित अधिकारी/सुपरवाइजर हुए मालामाल

उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार, प्रोजेक्ट्स से जुड़े सभी अधिकारियों की संपत्तियों की हो सीबीआई/ईडी से जांच

नई दिल्ली : उत्तर रेलवे निर्माण संगठन द्वारा पिछले दस सालों से दयाबस्ती और शकूरबस्ती के बीच ग्रेड सेपरेटर का काम किया जा रहा है। इन दस सालों के दरम्यान इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब दस गुना बढ़कर 350 करोड़ से भी ज्यादा हो गई है। फिलहाल इस कार्य से संबंधित रिटेनिंग वॉल के निर्माण का कार्य चल रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस ग्रेड सेपरेटर के लिए बनाए जा रहे फाउंडेशन में एम-25 के ग्रेड की जगह एम-10 की कांक्रीट का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा टेंडर के अनुसार निर्धारित मात्रा में सरिया और सीमेंट का इस्तेमाल भी नहीं किया जा रहा है।

जानकारों का कहना है कि ग्रेड सेपरेटर दयाबस्ती की आरसीसी वॉल के निर्माण में कम गुणवत्ता की सीमेंट इस्तेमाल हो रही है। इस घटिया निर्माण कार्य में यहां पिछले दस सालों से तैनात सुपरवाइजर की पूरी मिलीभगत है, जिसके चलते इस ग्रेड सेपरेटर की लागत 45 करोड़ से बढ़कर 350 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।

जानकारों का यह भी कहना था कि इस पूरे प्रोजेक्ट में कहीं भी बाहरी भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाना था, क्योंकि यह पूरा प्रोजेक्ट रेलवे लैंड पर ही सीमित है। ऐसे में न तो प्रोजेक्ट में कहीं कोई बाहरी अड़चन थी, न ही इसकी लागत बढ़ने का कोई औचित्य उपलब्ध था।

सूत्रों का कहना है कि जमीनी कार्य (अर्थ वर्क) कम कर दिया गया, क्योंकि कांट्रेक्टर के रेट बहुत कम थे। उनका कहना है कि प्रत्यक्षत: कांट्रेक्टर को और अप्रत्यक्षत: खुद को ज्यादा लाभ पहुंचाने के लिए एनएस 63/64 के अंतर्गत जानबूझकर भुगतान किया गया। उनका कहना था कि इसके लिए जो कारण दिए गए हैं, वह दबाव में दिए गए हैं अथवा खुद को लाभ पहुंचाने के लिए बनाए गए, इसका जमीनी सत्यापन किया जाना चाहिए।

जानकारों का कहना है कि यदि इसकी लागत सौ गुना से भी ज्यादा बढ़ी है और प्रोजेक्ट में अनाप-शनाप देरी हुई है, तो इसके लिए साइट सुपरवाइजर सहित चीफ इंजीनियर तक इससे संबंधित सभी अधिकारियों/कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराकर उनके विरुद्ध न सिर्फ विभागीय कार्यवाही की जानी चाहिए, बल्कि इन सभी की चल-अचल संपत्तियों की जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए।

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि निर्धारित सीमेंट- सरिया का इस्तेमाल न करवाने की एवज में साइट सुपरवाइजर और संबंधित अधिकारियों द्वारा 40 परसेंट तक कमीशन लिया जा रहा है।

उनका यह भी कहना है कि पिछले दस वर्षों से किए जा रहे इस ग्रेड सेपरेटर के कार्य में अब तक करोड़ों रुपये की पीवीसी देने के बाद भी यह कार्य आजतक पूरा नहीं हो पाया है।

सूत्रों का कहना है कि इस “दीर्घजीवी प्रोजेक्ट” से अब तक तकरीबन ₹60 करोड़ की उगाही संबंधितों द्वारा की जा चुकी है। उनका तो यह भी कहना था कि “इस पूरे प्रकरण को देखकर ऐसा लगता है कि यह पूरा प्रोजेक्ट संबंधित सुपरवाइजरों और अधिकारियों के ‘खाने-कमाने’ के लिए ही बनाया गया है!”

इसके अलावा सूत्रों ने बताया कि इस पूरे प्रोजेक्ट से संबंधित सुपरवाइजर से लेकर चीफ इंजीनियर तक सभी ने दिल्ली/एनसीआर में दो-दो फ्लैट्स के साथ गाड़ी-बंगला अथवा अन्य काले धन के रूप में काफी संपत्ति एकत्रित कर ली है।

यही वजह है कि इस ग्रेड सेपरेटर का काम, जिसकी लागत शुरुआत में सिर्फ 45 करोड़ रुपये थी, वह पिछले दस वर्षों में बढ़कर करीब 350 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। उपरोक्त तमाम तथ्यों से जाहिर है कि यह टेंडर ही गलत बनाया गया था। अतः संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी तय करके उसके विरुद्ध मेजर पेनाल्टी की कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए।

इससे संबंधित खबरें पहले भी कई बार प्रकाशित की जा चुकी हैं, किंतु चरम सीमा तक पहुंच चुके भ्रष्टाचार के कारण अब तक इस तरफ किसी जांच एजेंसी द्वारा ध्यान नहीं दिया गया है। अधिकारियों द्वारा किए जा रहे इस संयुक्त भ्रष्टाचार में न केवल छोटे अधिकारी/कर्मचारी, बल्कि उच्च अधिकारी भी शामिल हैं।

गाजियाबाद, नोएडा, दिल्ली एनसीआर में इस प्रोजेक्ट से जुड़े आईओडब्ल्यू, एक्सईएन, डिप्टी इत्यादि सभी ने मोटी रिश्वतें खाकर जमीन-जायदाद-ज्वैलरी इत्यादि में अपनी इस काली कमाई का निवेश किया हुआ है। ऐसा हमारे सूत्रों सहित इस प्रोजेक्ट से जुड़े कुछ कांट्रेक्टर्स का भी कहना है।

सूत्रों का कहना है कि पिछले 10 सालों से इस प्रोजेक्ट पर केवल एक ही सुपरवाइजर लगा हुआ है। आजतक उसका तबादला नहीं हुआ है, जबकि सिर्फ पिछले दो वर्षों में ही कम से कम 10 बार रोटेशनल ट्रांसफर के आदेश रेलवे बोर्ड द्वारा निकाले जा चुके हैं।

सराय रोहिल्ला स्टेशन पर प्लेटफार्म वॉल के निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल

यहां दर्शाए गए वीडियो में स्पष्ट देखा जा सकता है कि सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नं.7 की तरफ बनाई जा रही प्लेटफार्म की दीवार बनाने में कम गुणवत्ता वाली सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि टेंडर स्पेसिफिकेशन के अनुसार कोर्स सैंड का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था।

परंतु यहां फाइन सैंड के साथ ब्रिक वर्क किया जा रहा है। बजार सूत्रों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि फाइन सैंड मात्र ₹700 प्रति क्यूबिक मीटर आती है, जबकि कोर्स सैंड की बाजार कीमत प्रति क्यूबिक मीटर ₹2200 है।

यहां इसमें यह भी देखा जा सकता है कि सीमेंट मोर्टार के साथ ईंटों की जोड़ाई भी सही तरीके से नहीं की जा रही है, क्योंकि इसके लिए कम मात्रा में सीमेंट का इस्तेमाल किया जा रहा है।

ऐसे में इस पूरे कार्य का निरीक्षण न सिर्फ चीफ इंजीनियर स्तर पर करवाया जाए, बल्कि इस पर अविलंब उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

यह वीडियो किसी बाहरी व्यक्ति ने नहीं, बल्कि विभागीय कर्मचारियों द्वारा ही बनाया गया है।