सेफ्टी-सीटी बजाने में भी है, पर रोटेशन में अधिक है, महाप्रबंधक महोदय!
सूत्रों के हवाले से खबर है कि मध्य रेलवे में हाल ही में लाइन पर काम कर रहे चार स्टाफ का रनओवर हुआ है-दो सोलापुर, एक पुणे और एक भुसावल – हालाँकि यहाँ स्टाफ इंजरी टावर वैगन की टक्कर से भी हुई है।
पिछले लगभग दो महीनों से पूरी मध्य रेल में इंजनों की सीटी गूंज रही है – स्टेशन पार करते हुए, लेवल क्रासिंग पार करते हुए, किसी भी कर्व पर – अर्थात् यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ-चौतरफा। बताया गया कि ये महाप्रबंधक साहब के निर्देश हैं कि लोको पायलट को हर जगह सीटी (हॉर्न) बजाना है!
ये सही है कि महाप्रबंधक/मध्य रेल ने रेलवे बोर्ड की गाइडलाइन के अनुसार प्रत्येक कर्व, स्टेशनों और आवासीय एरिया के दोनों तरफ छह सौ मीटर की दूरी पर व्हीसलिंग बोर्ड लगाने का निर्देश दिया है, जिससे कि असावधान ड्राइवर्स को वहाँ से गुजरते समय लंबी सीटी बजाने के लिए चैतन्य किया जा सके!
परंतु प्रश्न ये है कि क्या केवल #ड्राइवर के सीटी बजाने से ही #रेलवे की #सेफ्टी सुधरेगी?
उत्तर है – नहीं, कदापि नहीं! ड्राइवर वैसे ही पीक सीजन के इन तीन महीनों में दबाव में काम करेंगे। और महाकुंभ के आरंभ से लेकर अब तक वे भारी दबाव में ही काम कर रहे हैं। यह मान्य है कि सीटी बजाने से भी सुधरेगी सेफ्टी, लेकिन इसके लिए लगातार रोटेशन भी आवश्यक है।
कमर्शियल, अकाउंट्स, पर्सनल, स्टोर्स के बाबू कुर्सियों पर बैठकर पैसे पीट रहे हैं, उनके साहब लोग भी वहीं बैठकर ज्ञान पेल रहे हैं, और अपना हिस्सा-बाँट कर रहे हैं। लेकिन ये सभी इंजन की कैब में ड्राइवर के काम का इंस्पेक्शन करते हैं, और ड्राइवर एवं सीएलआई की गलती बताते हैं।
प्रश्न ये भी है कि क्या ड्राइवर के ऊपर इंस्पेक्शन से ही सेफ्टी सुधर जाएगी?
प्रश्न यह भी है कि कुर्सियाँ तोड़ते लंबे समय से एक ही जगह बैठे इन बाबुओं-साहबों की जिम्मेदारी क्या है?
पुराने अनुभवी रेल अधिकारी कहते हैं कि सेफ्टी एक सुघड़ और सधी अनुशासित प्रक्रिया का परिणाम होती है, सेफ्टी सुनिश्चित करने का और कोई अन्य उपाय नहीं है। कम से कम केवल #सीटी बजाना तो बिल्कुल नहीं!
रेल चलाने की प्रक्रिया
पुराने अनुभवी अधिकारी बताते हैं कि रेल का GR अपने आप में एक बहुत मजबूत फ्रेमवर्क है। लोकल बदलाव, जो SR के रूप में लाए गए, उन्होंने सिस्टम में अवश्य ही कन्फ्यूजन पैदा किया है, जब ड्राइवर एक जोन से दूसरे जोन में जाते थे। कंचनजंगा एक्सप्रेस के एक्सीडेंट के बाद इस पर काम चालू हुआ, जो अब फिर से रुक सा गया है।
सीटी पर नहीं, इस पर ध्यान दें-1
रेल में इंटरलॉकिंग आज से नहीं दशकों से है, ऑटोमैटिक सिग्नलिंग भी दशकों से है। लेकिन बालासोर की दुर्घटना बताती है कि आज भी इंटरलॉकिंग ही रेल का सबसे कमजोर हिस्सा है। वहीं कंचनजंगा एक्सीडेंट बताता है कि रेल का फ्रंटलाइन स्टाफ ऑटोमैटिक सिग्नलिंग को नहीं हैंडल कर पा रहा है।
परंतु इसी इंटरलॉकिंग और सिग्नलिंग के ऊपर ‘कवच’ लग रहा है। यह केवल सीटी बजाने से नहीं ठीक होगा। इस बात को जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना अच्छा होगा!
सीटी नहीं इस पर ध्यान दें-2
प्रोसेस डिजाइन हो जाती है, लेकिन प्रोसेस को दैनंदिन निभाना ही रेल का मैनेजमेंट है। प्रक्रिया तभी ठीक चलती है, जब लीडरशिप उसे ठीक से चलाए।
लेकिन जब #लीडरशिप रुके पानी का #पोखर बन जाए? तब क्या किया जाए? वहीं जॉइन किया, वहीं रिटायर हुए, जिस घर में हैं, वह हमेशा के लिए पकड़कर बैठ गए-चाहे डीआरएम बनें, या जीएम, या चेयरमैन!
आप अधिकारी हैं, तो अपने आप को करोड़ों का सीधा फायदा पहुँचा सकते हैं, जब दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में बड़े-बड़े बंगले, फ्लैट्स और आउटहाउस अपने वयस्क नौकरी पेशा, शादी-शुदा बच्चों के लिए रख लेते हैं। ऐसे अधिकारियों के सेवादार भी होते हैं, जो अधिकारी भी होते हैं और सुपरवाइजर भी। ये भी अपना स्थान पकड़कर बैठते हैं-यह एक बहुत बड़ा नेक्सस है।
एक ऐसा सिस्टम-जहाँ एक छोटी सी गलती से ड्राइवर की नौकरी चली जाती है, जहाँ फील्ड में काम करने वाले कर्मचारियों के आवास इतने खराब हैं कि रेलकर्मी अपने परिवार को नहीं रख पाते! वहीं, ऐसी ऐश और ऐयाशी लीडरशिप के स्तर पर पूरी मौज और बेशर्मी के साथ चलती है। इस पर मंत्री को पूरी गंभीरता से ध्यान देना होगा!
इसका निराकरण केवल ड्राइवर के सीटी बजाने से नहीं होगा, रेल के नेतृत्व को इस पोखर के पानी को बदलना आवश्यक हो गया है!