रेल भवन : नो एंट्री !!!

दुनिया के तीसरे सबसे बड़े रेल नेटवर्क – भारतीय रेल – का मुख्यालय है – रेल भवन ! पहले यह पुरानी संसद की बिल्कुल बगल में पहले था, अब तो नए संसद भवन के ठीक सामने है। इसका पुस्तकालय भी बहुत प्रसिद्ध रहा है। दशकों से एक से एक नई और अच्छी किताबें इसकी सुंदर अलमारियों में सजी हुई हैं। इनमें रेल से संबंधित बहुत सारे डॉक्यूमेंट भी हैं।

पुस्तकालय ज्ञान के केंद्र होते हैं, और ज्ञान अपने विस्तार के लिए कोई भेदभाव भी नहीं करता (याद करें, एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से दूर बैठे ही ज्ञान प्राप्त कर लिया था, हो सकता है कि हमारे “विश्वगुरु” उसमें इंटरनेट की खोज का श्रेय अपने पुराने ऋषि-मुनियों को दे दें!)

रेल भवन में दशकों तक जिसने काम किया हो उससे “रेल भक्ति” के कारण रिटायरमेंट के बाद उम्मीद की जाती है कि वे रेल की कभी कुछ प्रमाणिक जानकारियाँ जनता को भी दें।

कई बार किसी आवश्यक डॉक्यूमेंट या पुस्तक की तलाश के लिए लाइब्रेरी सबसे अच्छी जगह है, और इसीलिए 15 वर्ष पहले एक नियम बनाया गया था कि रिटायरमेंट के बाद रेल भवन में काम कर चुका अगर कोई रेलकर्मी इस पुस्तकालय का उपयोग करना चाहता है, तो सिक्योरिटी डिपाजिट जमा करा दे। यह संभवतः ₹500 है।

अब सदस्यता कार्ड तो आपके पास है, लेकिन रेल भवन में आपकी एंट्री अलाउड नहीं है!

देश को आजादी मिलने के बाद 1951 में यूनिसेफ की सहायता से दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में “दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी” की स्थापना की गई थी, जिसमें सबसे बड़ी लाइब्रेरी पुरानी दिल्ली स्टेशन के सामने है। आज तक इन सब में आने-जाने की मुफ्त सुविधा है।

दुनिया भर में पुस्तकालयों ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार में एक बड़ी भूमिका निभाई है। अमेरिका में तो कहीं से भी किताब ले लो, और किसी भी पुस्तकालय में जमा करा दो। वहां “नो एंट्री” शब्द ही नहीं है।

पुस्तकालय के अलावा भी पुराने कर्मचारियों की कुछ और शिकायतें या दूसरे काम हो सकते हैं। इन सब के पास रेल भवन ने “आईडेंटिटी कार्ड” दिए हैं, पेंशन के पीपीओ हैं। इनमें से कई रेलमंत्री द्वारा अपने काम के लिए पुरस्कृत भी हुए हैं। क्या सबको कूड़ेदान में डाल दें? लेकिन वे अब रेल भवन के दरवाजे पर खटखटाते रहते हैं, जहाँ उनके लिए अब “नो एंट्री” का बोर्ड लगा है।

सुना तो यह भी जाता है कि वीआईपी गेट के सामने यदि आप लंबी कार से उतरें और रेल भवन में प्रवेश करें, तो कोई “नो एंट्री” नहीं होती। हमने विदेश में रहने वालों के लिए तो दोहरी नागरिकता दे दी, लेकिन अपने विभागों के अंदर ऐसी पाबंदियां लगा दी हैं। यह उचित नहीं है!

हाल ही में रिटायर हुए एक कर्मचारी को उनके जिगरी दोस्त ने लंच टाइम में फेयरवेल पार्टी में आने के लिए कहा और नियमानुसार उन्होंने गेट पर लिस्ट भी भेज दी थी। लेकिन सुरक्षा स्टाफ ने साफ मना कर दिया कि हमारे पास लिस्ट नहीं आई। अब बेचारा क्या करे ! लंच टाइम में पास बनाने वाला स्टाफ भी नहीं होता।

यह “नो एंट्री” का नियम बनाने के पीछे एक अच्छा कारण यह हो सकता है कि कुछ लोग दलाल की तरह रेल भवन में चक्कर लगाते हों ! या घर से फालतू हों ! लेकिन आप सारी दुनिया पर तो अविश्वास नहीं कर सकते !

अच्छा हो कि रेल भवन के व्यवस्थापक तुरंत कोई बेहतर व्यवस्था/नियम बनाएं ! रेल से पेंशन पाने वाले भी दिल से रेल की भलाई ही चाहते हैं प्रिय महोदय !

#प्रेमपालशर्मा, पूर्व संयुक्त सचिव/कार्यकारी निदेशक, रेलवे बोर्ड, नई दिल्ली। 12.12.2024.