रेलवे स्टेशन पर अब ठौर नहीं!

रेलवे स्टेशन अब रेलवे वालों का नहीं रह गया है। आपसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे वसूल किया जाए, इस पर नित नई योजनाएँ बनाई जा रही हैं!

डॉ रवीन्द्र कुमार

एक वरिष्ठतम रिटायर्ड रेलवे डॉक्टर अपनी डॉक्टर पत्नी के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन के आने से दो घंटे पहले पहुँच गए। दरअसल रिटायरमेंट के बाद आपके पास वह अमला नहीं होता जो सर्विस में रहते आपको स्टेशन पहुँचाता है, सीट तक एस्कॉर्ट करके ले जाता है। टीटीई को ब्रीफ करता है, कोच अटेंडेंट को बताता है आदि आदि। अतः रेलवे से रिटायर्ड लोग यह सब जानते हुए ट्रेन आने से पहले पर्याप्त समय रहते स्टेशन पहुँच जाते हैं।

तो जब रेलवे के ये डॉक्टर दंपति प्लेटफॉर्म पर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि पहले वाले वेटिंग रूम कहीं अता-पता नहीं है। कहीं कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ यह दंपति अपने दो घंटे गुजार सकते। तभी उन्हें बताया गया कि वेटिंग रूम अब वेटिंग रूम नहीं, लॉउंज बन गए हैं। इनका अब वीआईपी लॉउंज नामकरण हो गया है।

जब डॉक्टर दंपति खुश-खुश इस कथित वीआईपी लॉउंज के द्वार पर पहुँचे तो वहाँ डेस्क पर स्थित अनुबंध (ठेके) पर लगी महिलाकर्मी ने उनसे दनादन सवाल पूछे कि वे कहाँ से आए हैं? कहाँ जाएँगे? टिकट नंबर क्या है? आदि आदि। फिर उसने ठहरने की/वेट करने की रेट लिस्ट बताई। कहा कि उनको सौ रुपये प्रति व्यक्ति प्रति घंटे देने होंगे और जीएसटी अलग से।

इस पर डॉक्टर दंपति ने बताया कि वे रेलवे के रिटायर्ड वरिष्ठ डॉक्टर हैं, बोले तो प्रिंसिपल चीफ मेडिकल डायरेक्टर (पीसीएमडी), किन्तु इतना सब बताने के बाद भी वह काऊंटर-महिला प्रभावित नहीं हुई। उसने दो टूक कहा, “आपको वेटिंग लॉउंज में रुकना है तो इस तय रेट से फीस देनी ही होगी, अन्यथा आप यहाँ एंटर नहीं कर सकते।”

डॉक्टर दंपति भी अड़े रहे। आखिर दुनियाँ भर की उनकी आईडी की जाँच की गई। इतनी तो डॉक्टर साब अपने मरीज की नहीं कराते होंगे। उसने अनमने भाव से उनको अंदर आने दिया। अंदर पानी और चाय-कॉफी आपको उनके काऊंटर से ही खरीदनी थी। दूसरे शब्दों में घर का खाना या बाहर के खाने को अंदर लाने की अनुमति नहीं है। उनके रेट तो आपको पता ही हैं।

जब वे जाने लगे, तो उनको ठहरने का बिल थमा दिया गया जीएसटी लगाकर। जब उन्होंने इस पर अपनी आपत्ति जताई और बिल देने में आनाकानी की तो तीन-चार बाउंसर टाइप लड़के आ गए और उन्हें घेर लिया। और अंततः उनसे पैसे लेकर ही उन्हें छोड़ा।

इससे पता चलता है कि रेलवे स्टेशन अब रेलवे वालों का नहीं रह गया है। आपसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे वसूल किया जाए, इस पर नित नई योजनाएँ बनाई जा रही हैं। जिस दिन बस हो जाएगा उस दिन वह वेटिंग लाउंज खत्म करके कोई हाई-फाई रेस्टोरेन्ट खुल जाएगा।

यूं अभी भी यह लॉउंज किसी रेस्टोरेन्ट से कम नहीं हैं। एयरपोर्ट पर जिस तरह आपके वाहन को फुर्ती से आपको उतारकर नौ दो ग्यारह होना पड़ता है, अन्यथा आपको पार्किंग फीस में ही इतनी धनराशि देनी पड़ सकती है जितनी आपने अपनी हवाई यात्रा की टिकट खरीदते समय दी थी। ठीक उसी तरह रेलवे स्टेशनों के अंदर-बाहर भी होने लगा है।

मेरा देश बदल नहीं रहा है! बदल गया है! और इतनी तेजी से इतना बदल गया है कि पहचान में नहीं आ रहा है!

सत्य घटना पर आधारित