दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार-रेलवे की असंवेदनशील कार्य प्रणाली

मंत्री जी, ये कवच-कवच की रट आपको बहुत दिन तक ‘कवच’ नहीं दे पाएगी!

आए दिन कहीं न कहीं से रेलवे में डिरेलमेंट या किसी न किसी दुर्घटना अथवा हादसे की खबर आ रही है, किसी न किसी वर्कशॉप में अथवा ट्रैक पर संरक्षा में भीषण लापरवाही के चलते किसी न किसी रेलकर्मी की मौत हो रही है, तथापि इन सबके लिए किसी अधिकारी का उत्तरदायित्व तय होता है, ऐसा दिखाई नहीं देता। संसद की मेज ठोक कर ऊँची आवाज में अशोभनीय व्यवहार करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर मंत्री महोदय साफ बच निकले और उनकी इस बेतुकी बयानबाजी पर उनके संपोषित खान मार्किट गैंग (#केएमजी) ने बढ़-चढ़कर ताली बजाई।

#Episode48: #सुधीर-सेंस से बाहर आएँ-#सेफ्टी सुनिश्चित कराएँ मंत्री जी!👇

लेकिन बालासोर से लेकर अब तक हुई विभिन्न रेल दुर्घटनाओं में मारे गए उन 350 से अधिक निर्दोष रेलयात्रियों की आत्माएँ चीख-चीखकर पूछ रही हैं कि आखिर हमारा कसूर क्या था? हमारी हत्या क्यों की गई? अगर की गई, तो हमारे हत्यारों को क्या सजा दी गई? बालासोर से लेकर हाल में हुए सराइकेला हादसों के लिए जिम्मेदार कोई नहीं है, तो नए अवतार में आए रेलमंत्री महोदय कृपया स्पष्ट बोल दें कि “चूँकि पहले भी एक्सीडेंट होते थे, इसलिए अब भी हो रहे हैं, हम कुछ नहीं कर सकते! अगर निर्दोषों की जान जाती हो, तो जाए, मेरे साथ मेरा खान मार्किट गैंग है, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, फिर चाहे वह भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ही क्यों न हों!”

जिम्मेदारी की उम्मीद तो नहीं बची

मंत्री जी, आपसे जिम्मेदारी की उम्मीद तो नहीं बची है, और यह इसलिए नहीं बची है क्योंकि आप तो आज जैसे आए हैं, कल वैसे ही चले जाएँगे, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आप तो मैनेजर ऑफ फंड मैनेजर्स की भूमिका में हैं, इसलिए एक और फंड मैनेजर को सीआरबी बनाने के लिए दिन-रात लगे हुए हैं। एक ट्रैफिक अधिकारी, जिसको फील्ड की कोई जानकारी नहीं थी, न ही रेल में उसकी कोई विशेष उपलब्धि थी, उसको आपने एक महीने की सर्विस पर ग्यारह महीने का एक्सटेंशन देकर रेलवे का बेड़ा गर्क कर दिया, जो कुछ भी अनाप-शनाप बोलकर निकल जाती हैं, लेकिन उनका भी क्या दोष, आपने खुद भी हैदराबाद के एक्सीडेंट के बाद यही कहा था कि लोको पायलट क्रिकेट मैच देख रहा था – कंचनजंगा एक्सप्रेस की दुर्घटना के बाद यही बात सीआरबी महोदया ने भी कह दी, इतनी असंवेदनशीलता कहाँ से लाते हैं आप लोग?

आपकी असंवेदनशीलता इस बात से भी स्पष्ट होती है कि आप पुराने समय की रेल दुर्घटनाओं का उल्लेख करके अपनी साइड बचाते हैं, लेकिन ये भूल जाते हैं कि माधवराव सिंधिया से लेकर नितीश कुमार और सुरेश प्रभु सरीखे रेलमंत्रियों ने उन दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी स्वयं पर ली थी और अपने पद से इस्तीफा देकर नैतिकता का एक आदर्श उपस्थित किया था। खैर, आपसे उनके स्तर की नैतिकता की उम्मीद अब किसी को भी नहीं रह गई है, क्योंकि आप ऊपर से एक थोपे हुए रेलमंत्री हैं, आपका जनता से सीधा कोई सरोकार नहीं है, आप भारत के किसी भी लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर अपनी जमानत बचा लें तो वह आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। मंत्री जी, शायद आपको इसका आभास नहीं है कि संसद में दिया गया आपका भाषण बहुत ही निम्न स्तर का था, इसका पैमाना यही है कि आम जनता ने आपके भाषण को नहीं सराहा।

मैनेज होती हैं इंक्वारी रिपोर्ट्स?

मंत्री जी, हर एक्सीडेंट के तुरंत बाद आप या सीआरबी महोदया कोई बेतुका बयान देकर साफ बच निकलते हैं, उसके बाद बोला जाता है कि इसकी सीआरएस जाँच के पश्चात् तथ्य सामने आएँगे। लेकिन हद तो तब हो जाती है जब उस इन्क्वारी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। अब तो यह भी सुनने में आता है कि इन्क्वारी रिपोर्ट में दिए गए रीजन (कारण), सजेशन (सुझाव) या एक्शन अगेंस्ट रेस्पोंसिबल पर्सन्स पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। इसका अर्थ यह है कि रेलमंत्री या ऊपर के लोगों को यह बात पता है कि सीआरएस रिपोर्ट मैनेज होती हैं। रेलमंत्री जी, शायद आपको पता हो कि सीआरएस लोगों का भी लाइन ओपनिंग के लिए प्रति किलोमीटर रेट तय होता है। सीआरएस ऑफिस की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है, एक्स-कैडर के बाद आजकल कोई भी सनकी अधिकारी सीआरएस बन जाता है, लेकिन मंत्री जी आपको रेलयात्रियों की जान लेने का अधिकार किसने दिया?

जानकारों का मानना है कि सीआरएस ऑफिस को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि उसकी इंक्वारी रिपोर्ट्स का कोई मतलब नहीं रह गया है। जब तक सीआरएस ऑफिस बंद नहीं करा दिए जाते, तब तक कम से कम उसके दिए गए सुझावों पर अमल तो कर ही लीजिए, लेकिन सुनने में आया है कि उसका भी विरोध हो रहा। मंत्री जी, एक्सीडेंट का असली कारण आपको रेल की कम जानकारी होना है, अथवा आपको उचित या सही जानकारी समय पर नहीं दी जाती है। इससे स्पष्ट है कि आप दुर्दांत करप्ट अधिकारियों से घिरे हुए हैं। आप वही देख रहे हैं जो आपको दिखाया जा रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि नीचे स्तर के अधिकारी खुलेआम भ्रष्टाचार में लिप्त हो रहे हैं, वे रेल के पद पर बैठकर निजी हितसाधन करने में लग गए हैं। इसके सैकड़ों उदाहरण हमारे पास उपलब्ध हैं।

गरीब मजदूर-जनता की सोचिए साहब!

जहाँ पूरा सिस्टम त्राहिमाम पुकार रहा है, वहाँ आज भी कुछ रेल अधिकारी बिना दबाव के वह कर रहे हैं, जिसके लिए रेल में उनकी भर्ती हुई थी। इतिहास में दर्ज हो चुकी बालासोर रेल दुर्घटना की सीआरएस रिपोर्ट ये बताती है कि ऐसे भी कुछ रेल अधिकारी हैं जो इतने दबाव के बावजूद सच लिखते हैं।

चौतरफा त्राहि-त्राहि मचने के बाद यात्रियों की शिकायतों पर एमआर-सेल की सीधी मॉनिटरिंग से अब स्थिति कुछ सुधरी है। तथापि भेड़-बकरियों की तरह ठुँसकर रेलगाड़ियों में यात्रा करने वाले गरीब मजदूर-जनता की सोचिए साहब, आप याद कीजिए उन दिनों को, जब आप आईएएस बनने की सोचते होंगे, आपके भीतर समाज में कुछ अच्छा परिवर्तन करने का उत्साह रहा होगा, अभी भी देर नहीं हुई है, सुधीर-सेंस के भ्रमजाल से बाहर निकलिए, कड़ाई से रोटेशन लागू करिए, मेंबर/जीएम/डीआरएम में योग्य-सक्षम अधिकारियों का चयन करिए, डीआरएम को कंस्ट्रक्शन वर्क (गतिशक्ति) से हटाइए, आईआरएमएस पर पुनर्विचार करिए, भ्रष्ट-निकम्मे-अयोग्य लोगों को घर भेजिए, सभी संरक्षा पदों पर भर्ती करिए, देश के युवाओं की थोड़ी तो बेरोजगारी दूर करिए, पाँच साल से अधिकारियों की सीधी भर्ती नहीं हुई, फील्ड में जूनियर/सीनियर स्केल और जेएजी स्तर के इंजीनियर्स एवं अन्य अधिकारियों का भारी अकाल पड़ा हुआ है, रेल अगले कुछ सालों में पूरी तरह से बैठ जाएगी, इसकी कल्पना शायद आपको नहीं है, या नहीं होने दी जा रही है।

The fate of Railway Inquiries

Railway rules say even if one person (#passenger) dies in an accident, a full blown probe by the Commissioner of Railway Safety (#CRS) kicks in automatically. There is no need of orders from any #Minister or #CRB, or from #RailwayBoard. These rules were framed years ago to imply that even one life lost in a #Train-accident was unacceptable. But has the current crop of #Railway-officers learnt anything?

Cut to 2024, the #CRS report into last October’s #derailment of the #NortheastExpress in #Raghunathpur, Bihar is with the #RailwayBoard. Five people died in that #accident. The #probe puts the blame squarely on shortcomings in #maintenance of track, leading to the derailment. It also calls for action against senior divisional officers in-charge of keeping the tracks in shape.

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कुछ तो संवेदनशीलता दिखाइए मंत्री जी!

रेल दुर्घटनाओं पर संवेदनशील तरीके से पेश आइये मंत्री जी, कुछ इस तरह के कदम उठाइए कि ऐसी दुर्घटनाएं दुबारा न हों, दोषी अधिकारियों को कड़ी से कड़ी सजा दीजिए। उनका उत्तरदायित्व-जवाबदेही तय करिए, बालासोर की तरह तो एकदम नहीं, जिसमें लगभग 300 लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को आपने और आपके सिस्टम ने ग्रेसफुल एग्जिट दिया। ठीक उसी तरह जैसे खतौली की भीषण दुर्घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को प्रमोट करके पुरस्कृत किया गया। इसी का परिणाम है कि अब किसी को फर्क नहीं पड़ता, चाहे कितने ही लोगों की जान चली जाए!

रघुनाथपुर और गोंडा की दुर्घटना एक विभाग विशेष की लापरवाही का नतीजा था, यह अब आप भी जानते हैं, और हम सब भी जानते हैं। लेकिन आप, उस विभाग विशेष के मुखिया, जो कि कभी भी एक इंजीनियर या रेल अधिकारी के रूप में काम न कर सिर्फ एक मैनेजर रहे, फिर चाहे वह पब्लिसिटी मैनेजर की भूमिका हो या फिर फंड मैनेजर की भूमिका, आप उनको सीआरबी बनाने पर अमादा हैं। यही कारण है कि दशकों पुराने ट्रैक फास्निंग का आइडिया आपको सरकाया गया है, जिसे डेमो देकर आप बहुत कारगर बता रहे थे। इस विषय पर हम शीघ्र ही पूरा खुलासा करेंगे, क्योंकि यह केवल फंड मैनेजमेंट की तैयारी है। मंत्री महोदय आपको अपना विवेक सदुपयोग करना चाहिए और केवल रेल हित के बारे में सोचना चाहिए। आपको ज्ञात होना चाहिए कि सारे मर्ज की केवल एक दवा ‘कवच’ नहीं है, मंत्री जी, ये कवच-कवच की रट आपको बहुत दिन तक ‘कवच’ नहीं दे पाएगी! दोषी-जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ बिना किसी भेदभाव, बिना पक्षपात के, कड़ी से कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित कीजिए, आप देखिएगा कि इस तरह की दुर्घटनाओं की पुनरावृति नहीं होगी।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी