क्या है विदेशी कंपनी को फेवर करने का औचित्य?
एक कंपनी विशेष को ध्यान में रखकर 12000 हार्स पावर के 800 लोको बनाने का टेंडर निकाला गया, टेंडर की टर्म्स एंड कंडीशंस ऐसी बनाई गईं कि लक्षित विदेशी कंपनी को ही यह टेंडर जाए।
विदेशी कंपनी को फेवर
लेकिन तत्कालीन सीआरबी ने इसमें हस्तक्षेप किया और यह कहकर टेंडर रद्द करवाया कि इतने लोको की आवश्यकता नहीं है। इस तरह तत्कालीन सीआरबी ने रेल का करोड़ों रुपया बचाया था।
क्योंकि मधेपुरा में जो लोको उक्त कंपनी बना रही है, उसके घोषित उद्देश्यों में यह कंपनी पहले ही फेल हो चुकी है।
तथापि मंत्री द्वारा इस कंपनी का फेवर लगातार जारी है, जबकि कंपनी द्वारा मधेपुरा में बनाए जा रहे ऐसे एक लोको की लागत लगभग 40 करोड़ आ रही है।
जबकि इतने ही हार्स पावर का इससे बेहतर लोको चितरंजन एवं बनारस लोकोमोटिव वर्क्स द्वारा इससे आधी लागत – करीब 20 करोड़ – में बनाए जा रहे हैं।
यह मंत्री के सलाहकार सुधीर कुमार का विशेष लक्षित प्रोजेक्ट था, चूँकि यह प्रोजेक्ट रेल हित में नहीं था, इसीलिए तत्कालीन सीआरबी ने इसे रोक कर रेल का करोड़ों रुपया बचा दिया था।
हम इस मामले का उल्लेख लगातार और लगभग बार-बार कर रहे हैं, मगर मंत्री और रेलवे बोर्ड के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। ठीक उसी प्रकार जैसे भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने के मामले में रेल की चेयर पर बैठकर रेल के साथ धंधा करने, बिना पूर्व अनुमति विदेश भ्रमण करने, वेंडर से रेल के विरुद्ध कोर्ट केस कराने वाले और विजिलेंस को वसूली का माध्यम बना देने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया। क्रमशः