रेल मंत्रालय को मिले “भूतो न भविष्यति” का पुरस्कार!
विगत में किए गए किसी अहसान या सहयोग के बदले किसी धूर्त व्यक्ति के मोहपाश में बंधकर उसे अपने गले का हार बना लेना किसी नेता या मंत्री के लिए कितना घातक होता है, यह सुधीर कुमार को रेल भवन से अपमानजनक तरीके से निकाले जाने के बाद रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को अब शायद समझ में आ रहा होगा, जिनका राजनीतिक करियर अपने शैशव काल में ही एक तरह से दांव पर लग गया है! तथापि वह सुधीर कुमार के मोहपाश से छूट गए हैं, ऐसा फिलहाल देखने में नहीं आ रहा है! यदि ऐसा होता तो इस्तीफा लेने के बाद तत्संबंधी आदेश जारी करके उनका रेल से और उनसे अपना संबंध विच्छेद होने की घोषणा उन्होंने अधिकारिक तौर पर कर दी होती!
रेलमंत्री की इच्छा के विरुद्ध, रेल भवन से बड़े बेआबरू और बेइज्जत करके आखिरकार निकाले गए सलाहकार सुधीर कुमार उर्फ टेंडरमैन-लेकिन ये भी कहा जा रहा है कि वह फिलहाल के लिए अंडरग्राउंड मात्र हुए हैं। रेल मंत्रालय की चुप्पी भी इस मामले में कुछ स्पष्ट नहीं कर रही!
षड़यंत्र, छल-कपट, झूठ-फरेब, अहंमन्यता, अहंकार, बदतमीजी, भ्रष्टाचार, धूर्तता और क्रूरता के साक्षात प्रतिमूर्ति #सुधीरकुमार उर्फ #टेंडरमैन, जो कि रेलमंत्री की आँखों के तारे और छाया-रेलमंत्री थे, तथा मंत्री की सोच एवं बुद्धि-विवेक पर पूरी तरह काबिज थे, को हाल ही में आखिरकार प्रधानमंत्री कार्यालय के सीधे हस्तक्षेप पर, बेआबरू कर रेल भवन से तत्काल निकाल बाहर किया गया। हालांकि बताते हैं कि आखिर तक उन्हें बचाने का भरसक प्रयास किया गया था।
यह सच है कि अपने दो वर्ष के कार्यकाल में सुधीर कुमार ने रेलमंत्री की खुली शह पर छल-कपट, झूठ-फरेब, घिनोने षड़यंत्रों, कुछ खास वेंडर्स का खुला फेवर और भ्रष्टाचार का जमकर खुलेआम बेरोकटोक नंगा नाच किया, जिस पर मंत्री ने अंकुश लगाने के बजाय खूब तालियां बजाईं और बैठकों में उसका अंध-समर्थन किया। इसके विपरीत, सही सलाह देने वाले निष्ठावान, सत्यनिष्ठ, सच्चाई-पसंद, कार्यकुशल, प्रतिष्ठित एवं उत्कृष्ट वरिष्ठ अधिकारियों का मंत्री ने खुलेआम घोर अपमान, उपेक्षा, निरादार, प्रताड़ना और तिरस्कार किया।
यहां तक कि बोर्ड के एक वरिष्ठ सदस्य (#MTRS) राहुल जैन को अपने एजेंडाबाज सलाहकर की गैर-कानूनी और गलत बात न मानने पर, भरी बैठक में उनके साथ पशुवत् बर्ताव करते हुए बुरी तरह दुत्कारा, धमकाया और फिर जूनियर्स के सामने ‘गेट आउट’ कहकर मीटिंग हाल से निकाला, गैर-कानूनी ढ़ंग से जबरन लम्बी छुट्टी पर भेज दिया और अंत में प्रताडित कर और धमका-धमका करके उनसे जबरन #VRS ले लिया गया।
इस दुर्भाग्यपूर्ण एवं शर्मनाक घटना का दुष्परिणाम यह हुआ कि चेयरमैन, सभी बोर्ड मेंबर, वरिष्ठ अधिकारीगण, महाप्रबंधक, डीआरएम आदि, दुष्ट एवं क्रूर टेंडरमैन के सामने पूर्णतः नतमस्तक, समर्पित, लम्बलेट (दंडवत्) हो गए। भयभीत अधिकारीगण टेंडरमैन के कहने मात्र से सूर्योदय को पूर्व के बजाय पश्चिम से बताने लगे।
दंभी टेंडरमैन और मंत्री के कोप से भयभीत अधिकतर वरिष्ठ अधिकारी अपनी नौकरी बचाने के लिए और अपने असमय ट्रांसफर के भय से, टेंडरमैन के गलत-सलत आदेशों का अंधपालन करने लगे। पूरी भारतीय रेल में यह खबर आग की तरह फैल गई कि पर्दे के पीछे टेंडरमैन ही असली मंत्री है, और मंत्री जी अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर केवल रबर स्टाम्प और मुखौटा बनकर रह गए हैं।
(अंदरखाने ये सभी दबे–कुचले अधिकारी टेंडरमैन सुधीर कुमार एवं मंत्री जी की जुगलबंदी के सारे तथ्य न केवल इकट्ठा करते रहे, बल्कि पीएमओ तक भी पहुंचाते रहे! इनमें मंत्री जी के दाएँ–बाएँ रहने वाले लोगों के कदाचार के तथ्य भी शामिल हैं, जो संभवतः उचित समय पर उचित फोरम में सौंपे जाएंगे!)
टेंडरमैन ने मंत्री को गुमराह एवं पूर्णतः दिगभ्रमित करके जीएम, चेयरमैन और बोर्ड मेंबर्स के प्रमोशन/पोस्टिंग का एक ऐसा नया मकड़जाल वाला सिस्टम ईजाद किया जिसमें कि वह अपने किसी भी मनपसंद अधिकारी को जीएम, चेयरमैन और बोर्ड मेंबर बना सकता है। 360 डिग्री एवं इमोशनल इंटेलिजेंस जैसे सब्जेक्टिव, आर्बिट्रेरी, मनमानीयुक्त और व्हिम्सिकल मापदंड बना डाले, जो कि किसी और मिनिस्ट्री अथवा राज्य में नहीं हैं।
अत्यंत संवेदनशील एवं जीएम के प्रमोशन को प्रभावित करने वाले स्टैब्लिश्मेंट ऑफिसर (#EO) के पद पर सुधीर कुमार ने अपने परम चेले और अंधभक्त अनुयाई बिजली अधिकारी नवीन कुमार को बैठा दिया। #EDPG/MR के पद पर भी अपने पूर्व साथी ट्रांसफार्मेशन डायरेक्टरेट के पुराने कार्यकारी निदेशक (#ED) और अंधभक्त कदाचारी बिजली अधिकारी जीतेन्द्र सिंह को बैठा दिया, ताकि मंत्री के दिलो-दिमाग और आने-जाने वाली फाइलों पर पूर्ण कब्जा किया जा सके। इसके अलावा, आरडीएसओ सहित सभी उत्पादन इकाईयों एवं जोनल रेलों के प्रमुख निर्णायक पदों पर भी अपने पिट्ठू अधिकारियों को भी इसी उद्देश्य से बैठाया।
इन सभी हेरफेर का उद्देश्य केवल और केवल एक ही था-सभी महत्वपूर्ण निर्णयों में टेंडरमैन की पूर्ण मनमानी, अपारदर्शिता और तानाशाही तथा पूरे सिस्टम पर पूर्णरूपेण वर्चस्व, ताकि टेंडरमैन केवल अपनी पसंद के अपने अंधभक्त चेलों को ही नग्न-पक्षपात करके जीएम, चेयरमैन और बोर्ड मेंबर बना सके, और उससे भी महत्वपूर्ण कार्य था – अपनी मनपसंद फर्मों को अरबों रुपयों के अनाप-शनाप ठेके दिए जाएं।
आजतक किसी फाइल पर साइन न करने वाले नवीन गुलाटी सरीखे निक्कमे और अनुभवहीन किन्तु अंधभक्त अधिकारी को 84, 85 और 86 बैच के सैकड़ों योग्य अधिकारियों को #supercede करके सीधे #MTRS बना दिया गया, ताकि लम्बे-चौड़े मल्टी बिलियन डॉलर टेंडर और #procurements (खरीददारी) के ठेके मनमर्जी की फर्मों को अनाप-शनाप दामों (#rate) पर दिए जाएं। गुलाटी जी ने भी फेवर पूरा निभाया। अच्छे बच्चे की तरह टेंडरमैन से पूछ-पूछकर ही टेंडर साइन किए और ट्रांसफर/पोस्टिंग किया।
टेंडरमैन के दुर्भाग्य अथवा देश के सौभाग्य से वन्दे भारत के टेंडर में रशियन फर्म #JSC और भारतीय रेल के उपक्रम #RVNL का जॉइंट वेंचर (#JV) और भारतीय पीएसयू #BHEL जैसी प्रतिष्ठत कम्पनियां, टेंडरमैन के लाख रोकने और दबाब के बावज़ूद, माननीय प्रधानमंत्री जी के हस्तक्षेप के कारण भाग ले पाईं, क्वालीफाई कर पाईं, उचित दाम पर टेंडर डाल पाईं, और देश का हजारों करोड़ (₹12000 करोड़) बच पाया। लेकिन ये भी सत्य है कि टेंडरमैन के चलते भारतीय रेल की 2060 तक की देनदारी बन गई है। भारत सरकार के किसी भी अधिकारी ने आजतक लाखों करोड़ की देनदारी मनमाने टेंडरों द्वारा नहीं बनाई है-ये सच अब समस्त रेल अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच सार्वजनिक चर्चा का विषय बना हुआ है।
माननीय प्रधानमंत्री जी, आप वास्तव में सच्चे देशभक्त हैं। यह सब नंगा नाच मोह-ग्रस्त मंत्री की शह पर होता रहा, लेकिन टेंडरमैन फिर भी नहीं माना। उसने #RVNL पर दबाब बनाया कि रशियन कंपनी से जेवी टूट जाए, ताकि टेंडर दुबारा करके अपनी मनपसंद फर्म को दिया जा सके। इसीलिए आरवीएनएल के सीएमडी को रेल भवन में कॉल करके रशियन कंपनी से कम स्टेक पर जेवी करने के लिए पहले धमकाया गया और बाद में मेजर स्टेक लेकर टेंडर फेल करने की शर्त पर उन्हें एकमुश्त दो साल के कार्यकाल का एक्सटेंशन दिया गया। लेकिन, धन्य हैं प्रधानमंत्री जी आप कि एक बार फिर हस्तक्षेप करके यह अन्याय होने से बचाया।
सुधीर कुमार पर निर्भरता-क्या कारण हो सकता है?
कॉम्पिटेंस तो कतई नहीं! सुधीर कुमार के लोकोमोटिव अथवा रेल इंजन के बारे में अल्पज्ञान और ट्रैक्शन डिस्ट्रीब्यूशन (#टीआरडी) के बारे में शून्य ज्ञान के चलते उन्हें कम से कम अपने अल्पज्ञान के कारण तो नहीं ही रखा गया होगा। हाँ, जिन्हें अपनी शर्तों पर काम मिला वह वेंडर अवश्य उनके कसीदे पढ़ते रहे हैं। याद करें, जब रेल भवन से एक ईडी को बाहर फेंका गया था-अब उनके पत्र को पुनः देखें, उन्होंने ये लिखा था कि “सुधीर कुमार टेंडर की शर्तों को कुछ ऐसे बदलना चाहते थे कि जिससे तथाकथित और वेंडर टेंडर में भाग लें।” वहीं तथ्य ये है कि हर टेंडर में कुछ ही वेंडरों ने भाग लिया। सीमेंस की और आरवीएनएल-रशियन बिड ने सुधीर कुमार की गणित गड़बड़ा दी।
यह सब देखकर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि टेंडरमैन और मंत्री के बीच कहीं व्यवसायिक सम्बन्ध अथवा बिजनेस पार्टनरशिप तो नहीं है? इन्हीं कारणों के चलते टेंडरमैन को #PMO द्वारा रेल भवन से तत्काल और लगभग जबरन निकालना पड़ा, क्योंकि उपरोक्त कथित व्यवसायिक कारणों से मंत्री जी टेंडरमैन को किसी भी कीमत पर निकालने को तैयार नहीं थे। घोर आश्चर्यजनक, विडंबनापूर्ण और दुखद स्थिति है कि कैसे एक पढ़ा-लिखा विदेश में शिक्षित और बहुमुखी प्रतिभा का धनी मंत्री अपनी सुध-बुध और विवेक को गिरवी रखकर अपने नवजात राजनैतिक करियर को एक कुचक्री, स्वार्थी, फरेबी सलाहकार के मोहपाश में दांव पर लगा सकता है? सुधीर कुमार के इस्तीफे संबंधी आदेश सार्वजनिक नहीं किए जाने से यह चर्चा भी है कि पर्दे के पीछे से परामर्श और पार्टनरशिप दोनों जारी हैं, तथा कुछ समय बाद प्रधानमंत्री जी का ध्यान हटने पर टेंडरमैन को पूर्ववत पुनर्स्थापित किया जा सकता है।
आज अधिकतर #GM और #DRM टेंडरमैन द्वारा #handpicked हैं, और उसके आदेश के गुलाम रहे हैं। मंत्री आँखें होने के बावजूद, धृतराष्ट्र के संजय की तरह पूर्णतया टेंडरमैन पर आश्रित रहे! पूरी भारतीय रेल में त्राहि-त्राहि मची हुई है। योग्य होने के बावजूद लेवल-16 और लेवल-17 पाने में असफल रहे सैकड़ों अधिकारी अपने #representations के परिणाम का कई महीनों से इंतजार करते रहे, लेकिन टेंडरमैन और मंत्री जी उनको अकारण और नियम-विरुद्ध महीनों से दबाए बैठे रहे, ताकि जीएम/बोर्ड मेंबर्स के पोस्टिंग/प्रमोशन में अपनी मनमर्जी चलती रहे!
ट्रेनों में यात्री बेचारे भेड़-बकरियों की तरह सफर कर रहे हैं। मंत्री जमीनी सच्चाई से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं और समझते हैं कि प्रधानमंत्री से वन्दे भारत ट्रेनों का उदघाटन करवाने भर से उनके कर्त्तव्य की इतिश्री हो गई है, चाहे बाद में उनमें आग लगे (भोपाल की घटना) या उनमें घटिया खाना मिले (सभी जगह)। मंत्री जी घूम-घूमकर खुद ही अपना ढ़िंढ़ोरा पीट रहे हैं, चाहे आम जनता खून के आँसू रोती रहे।
भारतीय रेल की वित्तीय हालत जर्जर हो चुकी है। ऑपरेटिंग रेश्यो, जो पिछले वित्त वर्ष में 80%-85% था, अब 134% के ऊपर जा चुका है। तुरंत श्वेत पत्र निकालकर रेल की माली हालात को देश के सामने रखा जाना चाहिए। इसके बावजूद देश का बहुमूल्य अरबों-खरबों रुपया स्वार्थवश 200 किमी प्रति घंटे की अति महंगी वन्दे भारत ट्रेनों की अनावश्यक खरीददारी पर बर्बाद किया जा रहा है, जबकि देश में ऐसा कोई ट्रैक अगले 15-20 सालों तक नहीं आने वाला है।
यही नहीं, देश में उपलब्ध वर्तमान तकनीक #एलएचबी से अधिकतम ₹60-65 करोड़ में 16-18 कोच का हाई-स्पीड रेक बन सकता है और इससे प्रति रेक ₹100 करोड़ रुपये बचाकर ट्रैक अपग्रेडेशन और दोहरीकरण का महती कार्य किया जा सकता था। हजारों आईसीएफ कोच और लोकोमोटिव, जो उनकी 15-20 साल की बची हुई कोडल लाइफ समाप्त होने से पहले ही सिस्टम से बाहर करके बर्बाद कर दिए गए, उनका कोई हिसाब नहीं है। ऐसी अन्य बहुत सी रेल संपत्तियां हैं, उन सब पर रेल मंत्रालय को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।
जानकारों का मानना है कि इस प्रकार की आत्म-मुग्धता, रेल मंत्रालय में न पहले कभी देखी गई है, न ही बाद में संभवतः कभी देखी जाएगी। कई सेवानिवृत्त अनुभवी वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि रेल की वर्तमान शो-बाजी वाली परफॉर्मेंस पर रेल मंत्रालय को “भूतो न भविष्यति” का पुरस्कार मिलना चाहिए। उनका कहना है कि इस तानाशाही प्रवृत्ति और अति-अहंकार का मुख्य कारण है बैकडोर से संसद में एंट्री, अनुभवहीनता और राजनैतिक अपरिपक्वता। उन्होंने कहा कि जनता के बीच गए बिना सत्ता मिल जाने पर जनसेवा का स्थान अहंकार और तानाशाही प्रवृत्ति ले लेती है, जो कि आज रेल मंत्रालय में भरपूर चरितार्थ हो रही है। प्रधानमंत्री जी से उनका आग्रह है कि कृपया इस गौरवशाली ऐतिहासिक भारतीय रेल को दम्भी विनाशकारी प्रवृत्तियों से बचाएं!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी