कई बार सही बात निर्भीक होकर कहना और गलत बात का विरोध करना ‘विभागवाद’ नहीं होता, यह कब समझेंगे रेल अधिकारी!

व्यवस्था के लिए राष्ट्रहित में निर्भीक होकर अपनी बात कहना और गलत बात का विरोध करना अत्यंत आवश्यक होता है। लेकिन यह दायित्वबोध बौने और क्षुद्र लोगों में नहीं होता, जिससे पूरा रेल महकमा भरा पड़ा है। दायित्वबोध से भरा कोई भी कर्तव्यपरायण, निष्ठावान और जिम्मेदार अधिकारी – चाहे वह टेक्निकल सर्विस का हो या सिविल सर्विसेस का – बिना अपनी कबायली मानसिकता और पूर्वाग्रह के न्यायसंगत बात करेगा और नग्न विसंगतियों पर दुखी होगा, न कि बेईमानी और छल से किए गए गोल पर कुटिलता से मुस्कराते हुए चीयर्स करेगा!

अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ द कैबिनेट (#ACC) द्वारा 27 अप्रैल 2023 को अप्रूव्ड 14 रेल अधिकारियों की लिस्ट में एक भी अधिकारी रेलवे की तीनों सिविल सर्विसेज- #IRTS, #IRAS, #IRPS – का नहीं है। इससे एक बार पुनः रेल अधिकारियों में गंभीर अवसाद एवं हीनता बोध पैदा हुआ है। इसके साथ ही नई व्यवस्था में समानता, समान अवसर और समान न्याय न मिलने का भी एक गहरा संदेश गया है। इससे एक बार फिर #IRMS की निरर्थकता प्रमाणित हुई है। पुरानी व्यवस्था में जीएम और बोर्ड मेंबर बनने के लिए जो पारदर्शिता और कंसिस्टेंसी थी, नियम और दिशा-निर्देश स्पष्ट थे, नई व्यवस्था में वह सब नदारद हैं। इससे रेल अधिकारियों में क्षोभ तथा असंतोष और अधिक गहरा हुआ है।

रेल की इन तीनों सिविल सर्विसेज के अधिकारियों का कहना है कि रेल में इंजीनियरिंग सर्विसेज का वर्चस्व बना दिया गया है और यहां वह सब हो रहा है सिवाय रेल के मुख्य कार्य ट्रांसपोर्टेशन को छोड़कर! उनका यह भी कहना है कि नई व्यवस्था में रेल बरबादी की ओर बढ़ रही है, जहां कोई कुछ कहने लायक नहीं रहेगा, आने वाले दिनों में यहां वही होगा जो पॉलिटिकल बॉस चाहेंगे! प्रस्तुत है कई वरिष्ठ अधिकारियों से मिली फीडबैक पर #Railwhispers द्वारा इस लिस्ट का किया गया विश्लेषण-

इस लिस्ट में विसंगति देखें – 1987 बैच के जीएम पैनल के सबसे युवा रेल अधिकारी यू. सुब्बाराव को अगर सिविल सर्विसेज एग्जाम देना होता तो वह उम्र के आधार पर 1989 की सिविल सेवा परीक्षा में ही बैठ सकते थे और गलती से अगर सिविल सेवा परीक्षा सबसे युवा सिविल सर्विसेज के कैंडिडेट के रूप में क्वालिफाई कर भी लिए होते तो भी वह #IRMS के लेवल-16 पर जीएम पद की इस लिस्ट में सपने में भी नहीं आते। और अगर आते भी, तो 2 साल बाद आ पाते, और कितने महीने रहते, इसका भी पता नहीं रहता।

यह व्यवस्था एक क्रूर मजाक है कि नहीं, इसका निर्णय स्वयं आदरणीय प्रधानमंत्री जी ही करें तो बेहतर होगा!

लेकिन मानकीकरण (#standardization) के नाम पर कृपया घोड़े के वजन के आधार पर हाथी का और हाथी के वजन के आधार पर घोड़े का राशन निर्धारित न करें, नहीं तो परिणाम आपको पता है कि ऐसी अंधेर नगरी वाली न्याय व्यवस्था पूरे #ecosystem का ही नाश कर देती है।

माननीय प्रधानमंत्री जी, 27 अप्रैल के 1987 बैच के जीएम एम्पैनलमेंट पर अगर एक गंभीर नजर दायित्वबोध के साथ डालें तो पूरी व्यवस्था का विद्रूप स्पष्ट हो जाएगा कि व्यवस्था में कैसे हाथी और घोड़े को एक ही कर दिया गया है, जिसमें वजन ही एकमात्र प्रारंभिक #criteria है। यह मत्स्यराज में ही सम्भव है जहां अंधेरगर्दी का ही बोलबाला होता है, न्याय और तर्क का पैमाना ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के सटीक मुहावरे पर ही आधारित होता है।

उक्त लिस्ट में शामिल होने का विशिष्ट सौभाग्य प्राप्त करने वाले और सबसे लंबा कैरियर पाने वाले 14 नंबर के अधिकारी, जो 1987 बैच के आधार पर #GM के लिए #empanelled हुए हैं, अधिकारिक तौर पर ये 1989 में ही सिविल सर्विसेज में परीक्षा देने के लिए #eligible हो सकते थे और 13 नंबर वाले 1988 में ही सिविल सेवा परीक्षा में भाग लेने के लिए एलिजिबल हो सकते थे।

मतलब अगर न्याय और तर्कसंगत नीति #GM_Empanelment के लिए अपनानी है, या किसी ऐसी पोस्ट पर चयन प्रक्रिया बैच के आधार पर अपनानी है, जिसमें #technical सेवा और #civil सेवा से आए लोगों को एकसाथ कंसीडर करना है, तो यह तब तक न्याय-सम्मत नहीं हो सकता जब तक आप #Engineering_Services और #Civil_Services की #entry_age को एक नहीं कर देते, या दोनों के एंट्री एज के अंतर के आधार पर #parity नहीं देते, जो कि इस विसंगति से स्पष्ट है कि 1987 बैच के टेक्निकल सर्विसेस के अधिकारियों के साथ 1989 बैच के सिविल सर्विसेज के अधिकारियों को एलिजिबल मानकर ही कोई कम्बाइंड पैनल बन सकता है, अन्यथा अपवाद स्वरुप ही सिविल सेवा परीक्षा से आए किसी कैंडिडेट को जीएम एम्पैनलमेंट लिस्ट में आने का मौका मिल पाएगा। इसलिए #IRMS के किसी भी कम्बाइंड एम्पैनलमेंट में 2 बैच जूनियर लेने पर ही अवसर की समानता का संवैधानिक अधिकार सिविल सर्विसेज वालों को मिल पाएगा।

एक राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध स्तंभकार ने इस सूची को देखने के बाद व्यंग्य में कहा कि “वैसे भी पता नहीं मोदी जी को मालूम है या नहीं कि वर्तमान में लगभग सभी #PSUs के जो भी #deputation निकल रहें हैं, उन सभी में टाप पोस्ट के लिए तकनीकी डिग्री को अनिवार्य कर दिया गया है, चाहे वह खानपान का काम करने वाला #PSU हो, चाहे नाच-गान मंडली चलाने वाला। शायद इतिहास समाजशास्त्र आदि की किताबों से अवांछित विषयों को हटाने में आ रही अड़चनों के कारण इन विषयों को ही खत्म करने की योजना पर तो कहीं यह सरकार काम नहीं कर रही है, क्योंकि जब इन विषयों को पढ़ने वालों के नौकरी में और आगे बढ़ने के अवसर ही खत्म हो जाएंगे तो बिना विवादास्पद विषयों को हटाए ही उनका मंतव्य पूरा हो जाएगा!”

चलते-चलते एक बात और रेलवे के सभी अधिकारियों के लिए, खासकर सिविल सेवा के हांकू, फेंकू, भोंदू, डरपोक और निजी स्वार्थों में लिप्त निर्व्याजों के लिए संदेश – “कई बार सही बात निर्भीक होकर कहना और विरोध करना विभागवाद नहीं होता, वरन व्यवस्था के लिए राष्ट्रहित में यह अत्यंत आवश्यक होता है। लेकिन यह दायित्वबोध बौने और क्षुद्र लोगों में नहीं पाया जाता, जिससे यह पूरा रेल महकमा भरा पड़ा है। दायित्वबोध से भरा कोई भी निष्ठावान, कर्तव्यपरायण और जिम्मेदार अधिकारी – चाहे वह टेक्निकल सर्विसेज का हो या सिविल सर्विसेस का – बिना अपनी कबायली मानसिकता और पूर्वाग्रह के न्यायसंगत बात करेगा और इस तरह की नग्न विसंगतियों पर दुःखी भी होगा, न कि बेईमानी और छल से किए गए गोल पर कुटिलता से मुस्कराते हुए चीयर्स करेगा!” क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

कृपया इस ट्विटर थ्रेड का भी अवलोकन करें!

https://twitter.com/railwhispers/status/1652029870791356417?s=46