सुझाव या विचार वही सार्थक हो सकता है, जो व्यक्तिगत भोगे हुए यथार्थ पर आधारित हो!
निरर्थक और बिना किसी निष्कर्ष के संपन्न हुई रेलमंत्री की ‘परिवर्तन संगोष्ठी’
कई बार रेलमंत्री की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि ‘रज़िया गुंडों में फंस गई’!
रेलमंत्री की 7-8 दिसंबर को दिल्ली में हुई ‘परिवर्तन संगोष्ठी’ में एक बात जो प्रमुखता से उभर कर सामने आई, वह यह कि एक घातक बीमारी घाघ रेल अधिकारियों में शुरू से रही है कि वे अपना काम ढंग से करने के बजाय दूसरों के तमाम कार्यों पर अपनी एक्सपर्ट ओपिनियन देते रहते हैं तथा अपने काम और दी गई जिम्मेदारी की उनके द्वारा की गई दुर्दशा पर उनकी कभी भी दृष्टि नहीं जाती।
‘परिवर्तन संगोष्ठी’ में भी यही सब देखने को मिला है। कायदे से रेलमंत्री वहां चुने हुए आइडियाज देने पहुंचे लोगों से सिर्फ इतना ही पूछ लेते कि अपना ‘प्लांटेड आइडिया’ देने से पहले वे अपने द्वारा दिए गए अब तक के किसी विशेष व्यक्तिगत योगदान पर भी दो मिनट बोलें, तो विश्वास मानिए सबकी कलई खुल जाती।
‘परिवर्तन संगोष्ठी’ में बाएं से रेल राज्यमंत्री सुरेश आंगड़ी, रेलमंत्री पीयूष गोयल और सीआरबी वी. के. यादव तथा अन्य वरिष्ठ रेल अधिकारीगण
अधिकांश डीआरएम और जीएम तो ऐसे हैं कि कोई भी छोटा सा निर्णय लेने में भी वे अपने हस्ताक्षर नहीं करना चाहते। वे साधारण रुटीन फाइल के डिस्पोजल में भी 6-6 माह निकाल देते हैं। कुछ सेक्रेटरी के इशारे पर काम करते हैं और कुछ यूनियन के तथा कुछ सेक्रेटरी के भरोसे समय काट रहे हैं और कुछ यूनियनों के।
यदि रेलवे को बचाना है, तो वस्तुतः रेलमंत्री को अपना फोकस ‘एक्सपेंडिचर कंट्रोल’ पर करना चाहिए। रेल अधिकारी अब तक तो किसी तरह रेलवे की अर्निंग बढ़ाते रहे हैं, लेकिन बाजार की स्थिति और सड़क एवं अन्य ट्रांसपोर्ट माध्यमों की बेहतर उपलब्ध्ता अब रेलवे के सामने नई चुनौती बनकर खड़े हैं। हालांकि राष्ट्रहित एवं आम आदमी के हित में इन विकल्पों का होना सही भी है। अतः अब रेलमंत्री का फोकस एक्सपेंडिचर कंट्रोल पर होना चाहिए।
इंफ्रास्ट्रक्टर, सेफ्टी, सिक्योरिटी के नाम पर काफी गैरवाजिब और गैरजिम्मेदाराना तरीके से भ्रष्टाचार की गंगा बहाई गई है। हर खर्च का पहले उपभोगकर्ता के दृष्टिकोण से औचित्य देखा जाए। इसके साथ ही कार्य की गुणवत्ता तथा उसकी लाइफ स्पैन को भी डिक्लेअर कर संबंधित अधिकारियों के नाम, पदनाम और कांटेक्ट नंबर के साथ पब्लिक डोमेन में डिस्प्ले किया जाए, जिससे पारदर्शिता रहे और पब्लिक ऑडिट भी हो सके।
जब किसी कार्य की प्लानिंग/डिजाइनिंग से लेकर उसे बनवाने वाले अधिकारी का नाम प्रमुखता से अन्य जानकारी के साथ पब्लिक के लिए डिस्प्ले बोर्ड पर होगा, तो लिहाजवश ही सही गुणवत्ता सुधरेगी और संबंधित लोगों में डर पैदा होगा। ध्यान रहे कि बिना भय के कोई समर्पण नहीं होता। तुलसीदास जी बहुत पहले लिख गए हैं- ‘भय बिनु होय न प्रीति’।
इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण कार्य किया जा सकता है, जिससे गुणवत्ता और खर्च करने के मामले में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा। जैसे कि अगर उसी पब्लिक बोर्ड पर, जिस पर संबंधित अधिकारियों के नाम, कार्य की लागत, गुणवत्ता, लाइफ स्पैन, कार्य करने में लगा कुल समय, ठेकेदार के नाम के साथ चुनौती के रूप में यह भी लिखा जाए कि “यह कार्य इस गुणवत्ता एवं लाइफ स्पैन के साथ, इस लागत से, इतने दिनों में पूरा किया गया है, क्या आप में से कोई इस रिकॉर्ड को तोड़ सकता है? अगर कोई इसे स्वीकार कर लेता है, तो उसे सीधे एक मौका दिया जाए और उसके सफल होने पर उसे बेंचमार्क मानते हुए अगला चैलेंज दिया जाए।
वैसे तो रेलमंत्री की नीयत पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है, लेकिन इस बार यह देखना है कि रेलमंत्री अपनी नेकनीयत को अमलीजामा पहना पाते हैं या रेलवे के घाघ अधिकारी फिर अपने तिकड़म में फंसाकर इनका भी वही हाल करते हैं, जो पूर्व में भी अन्य रेलमंत्रियों के सद्प्रयासों के साथ किया था।
क्योंकि कई बार रेलमंत्री की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि ‘रज़िया गुंडों में फंस गई’!
यदि इस बार रेलमंत्री कुछ कर भी लेते हैं, तो ये घाघ रेल अधिकारी उसे ऐसे कलेवर में निकालेंगे कि पूरी तरह अराजकता आ जाए और रेलमंत्री की जमकर फजीहत हो, वे पूरी तरह तुगलक साबित हो जाएं तथा उन्हें रेल मंत्रालय से हाथ धोना पड़े। ऐसा पहले भी हो चुका है। अतः इस बार भी इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
तथापि इस बार भी रेलमंत्री ने वही गलती की है, जो आमतौर पर पूर्व मंत्री भी कर चुके हैं। अगर परिवर्तन के लिए सुझाव मंगाना ही था, तो इन्हें रेलवे के घाघों (जीएम, डीआरएम, बोर्ड मेंबर्स और सीआरबी इत्यादि) को इस प्रक्रिया (चेन) से बाहर रखना चाहिए था और सीधे अपने ईमेल पर या अपने विशेष सेल, जो इसी के लिए बनाई गई होती और जिसमें रेलवे का कोई आदमी नहीं होता,में सुझाव मंगाए होते और स्वयं उन सबको देखकर निर्णय लिया होता, तो न सिर्फ भारतीय रेल के लिए अत्यंत शुभ होता, बल्कि उनकी यह ‘परिवर्तन संगोष्ठी’ भी फलदाई होती।
हकीकत यह है कि संगोष्ठी के बाहर जो रेलवे का हित चाहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की अपेक्षा और सुझाव हैं, उन्हें संगोष्ठी में प्रस्तुत ही नहीं करने दिया गया और न ही ऐसे अधिकारियों एवं कर्मचारियों को संगोष्ठी में जाने के लिए नामांकित किया गया था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 के बहुचर्चित ‘रेल विकास शिविर’ के समय भी यही सब किया गया था।
Indian Railways is organizing a
two days(7-8 Dec.) conclave “Parivartan Sangosthi” in New Delhi, which aims to deliberate on the suggestions received from the officers of various Zonal Railways to take Indian Railways on to the next level of reforms. pic.twitter.com/BQM9s24WYS— Ministry of Railways (@RailMinIndia) December 7, 2019
इस संगोश्ठी में कोई भी सही एवं संजीदा बात कहने वाला नहीं पहुंच पाया। टुकड़ों में कुछ जरूरी एवं गंभीर बातें कही तो गईं, लेकिन चूंकि वे टुकड़ों में और इशारों में कही गई हैं, इसलिए उन पर कोई नजर ही नहीं जाएगी। सभी घाघ भी यही चाहते थे। इसलिए कुछ डीआरएम और जीएम ने अपने स्तर से ही ऐसी जरूरी और गंभीर बातों को आगे बढ़ने ही नहीं दिया, जो उनके विभाग की जमींदारी और खेती को खत्म कर आर्गेनाइजेशन की बेहतरी के लिए काम करते।
ध्यान रहे कि ये सभी उच्च पदस्थ- डीआरएम, जीएम, बोर्ड मेंबर्स, वही लोग हैं जो वर्तमान पदों पर अपनी योग्यता के बल पर नहीं, बल्कि अपनी जन्मतिथि की उपयोगिता की बदौलत पहुंचे हैं, जिनमें अधिकांश अपने पूरे कैरियर में रेलहित के रूटीन काम तो कभी किए नहीं, जबकि साधारण परिवर्तन तो उनके लिए बहुत बड़ी बात है, लेकिन संगोष्ठी में अपने कथित परिवर्तन का आइडिया लेकर जरूर पहुंचे, भले ही मजबूरी में पहुंचे हों। वैसे इनके लिए अपने काम के अलावा दूसरों के काम के लिए पहुंचना ही बहुत बड़ी बात है।
वैसे सबसे सकारात्मक परिवर्तन तो तब होगा जब जन्मतिथि की उपयोगिता को खत्म करके योग्यता के आधार पर डीआरएम, जीएम, बोर्ड मेंबर्स और सीआरबी युवा अधिकारी बनाए जाएं। रेलवे में तभी नई ऊर्जा आएगी और रेल भी तभी बचेगी। इसके लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।
कुछ ऐसे ही और भी सुझाव हैं, जो रेलवे के घाघ अधिकारी कतई नहीं चाहेंगे कि यह मंत्री तक पहुंचें और इस पर तुरंत काम हो। तथापि ये वे सुझाव हैं जो ईमानदार, सकारात्मक एवं रेलवे का समग्र हित चाहने वाले युवा/ऊर्जावान अधिकारियों (जो फील्ड में तप कर अपनी आंखों से जो देखा-समझा और जो ऊपर वालों के अथक प्रयासों के बावजूद भी रोड़ा बनकर खड़े रहे) ने दिया है। रेलवे के अनुभवी बड़े-बुजुर्गों का भी यही मानना है कि ‘सुझाव या विचार वही सार्थक हो सकता है, जो व्यक्तिगत रूप से भोगे हुए यथार्थ पर आधारित हो।
कुछ यथार्थपरक सुझाव निम्नवत् हैं-
Cost cutting/reforms measures in Indian Railways
(1) BCM/TMM etc was supposed to reduce track maintenance staff by 20%, but unfortunately there is no reduction in staff. It is costing railway in following terms- 20% track maintenance staff = ₹60,000 average salary = ₹30,000/month
Total saving in a year = ₹60,000 × ₹30,000 × 12 = ₹2,160 cores drain annually.
(2) Drawing & Design approval may be done in-house as engineers are from prestigious college. It is costing around= ₹500-1000 crores annually.
(3) Cost of rest house (ORH) hiring and maintenance charges is actually ₹10000/ day and it is costing around ₹300 crores annually. Hotel is the best option.
(4) Apprentices based recruitment where recruited staff may be kept on fix salary for 5-7 years albeit with job security. This will cost around ₹1000 crores annually.
(5) Requirements of Porter staff needs relook with alternative arrangements.
(6) All safaiwala, Driver to be surrendered and outsourced. It will cost ₹500 crores annually.
(7) There is scope of surrender of staff in Mechanical and Signal department.
One Step which can raise the Indian economy in short and long term.
- Approximate contractual labour in India 10 crores (less paid wages workers)
- Total paid on paper by agency @₹7,000 average/monthly
- Total paid to agency by govt/PSU etc @₹15,000/monthly
- Average less amount paid @₹8000/ month
- Total less paid to labour
(₹8000 ×10,00,00,000 ×12=₹9.6 lakhs crores)
Main point is that if just we ensure that all labours are paid wages as par government direction then this huge amount will be transferred to labour class which can boost demand like anything.
It is worth to mention that these money goes to black market which ultimately is harmful to economy of the country.
Steps required to do so-
(1) Opening of joint account of wife and husband upto extent possible.
(2) providing ATM with fingerprint security.
(3) Opening of account by principal employer not by contractual agency etc.
NOTE: This is personal opinion which can be modified with more appropriate data.
Running allowance of LP/ALP is more than flying allowance of fighter pilots of Indian Airforce.
Cadre merger issue
(1) All engineering cadre is to be mearged from top to bottom.
Reason: Nowadays these Services are doing only contract management and for that only basic technical knowledge which is taught in BTech first year is sufficient.
Here it is important to note that such systems are already existing in Armed Forces.
(2) All 8 organized Railway Services to be in two services only
(a) INDIAN RAILWAY ADMINISTRATIVE SERVICE (IRAS) or Indian Railway Revenue Service (IRRS)
(b) INDIAN RAILWAY ENGINEERING SERVICE (IRES)
(3) It is important to note this cadre merger is on the line of PM Narendra Modi approach of merger where he asked three services, IAS, IPS & ITS.
(4) For cadre merger fresh recruitment to be on above line however as of now already recruited officers of SAG and above to be merged keeping PHODs and Board Members aloof.
a. Lets not forget that Railways is a mainly ‘transport organisation’ and our primary function is to ‘transport people and goods from one place to other’. Everything else is a a means to achieve that objective. Therefore whatever changes are being thought of must be in a direction to improve Railways’ share vis a vis Road and to also improve running time between two cities for better passenger experience.
Therefore it is necessary that the Transportation, Commercial, Finance, Audit and HR functions should be managed by one unified Civils cadre and technical departments should support the ultimate product of Railways that is transportation. For this IRTS, IRPS and IRAS should be merged in one cadre and Name it as IRRS (Indian Railway Revenue Service).
b. Create 3 posts of SrDCM:
i. SrDCM/Services
ii. SrDCM/NFR
iii. SrDCM/Freight (goods & parcel)
c. All services in trains like cleaning of trains, OBHS, bed roll distribution etc to be manned by newly created IRRS, (SrDCM Services)
Right now the energy of Mechanical officers is spent on these jobs while there is a need of bright Mechanical officers in Production Units.
d. All rest houses to be under SrDCM/NFR. They will coordinate with start ups like Oyo, Goibibo, Teebo to make our Rest houses hotel like and spare capacity to be given to common public. Being close to stations, it will fetch high revenue and earn NFR for Railways.
e. Own your plan head scheme:
The work of a particular plan head to be done by concerned branch officer- e.g.
All works of plan head 42 to be done by SrDME
All works of plan head 16 to be done by SrDOM
f. Managing expenditure:
The situation is grim. The reason behind this is unmindfull expenditure in the name of safety. The utility of any project is never critically analysed in railways. Therefore a delicate balance over the expentiture and earning is required to be kept. Hence, there should be a committee of SrDOM and SrDFM at divisional level with SrDOM being convener for all works related to new lines, doubling, ROB, RUB, new signalling works and all issues related to transportation.
This committee will analyse whether a particular expenditure is required or not and whether it is giving to yield required results.
Similarly for passenger and staff amenity works, a committee of SrDCM and SrDFM with SrDCM being convener will see the requirement of necessity of a work.
g. Mechanical officers are required to focus on rolling stock not a general list work like cleaning. The production of good quality coaches is the extreme need of the hour as we are looking forward to replace old coaches.
Therefore we should invest our bright brains of Mechanical officers in design and manufacturing of new coaches.
If above all suggestions are welcome and to be honestly implemented then Indian Railways must earn and run successfully. Hope these will be studied carefully by the Minister for Railways.