बदली परिस्थितियों में चुके हुए और अपने बलबूते चलने को तरसते नेताओं को अब स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं रेलकर्मी

एआईआरएफ के 95वें वार्षिक चेन्नई अधिवेशन में लिए गए कुछ कड़े फैसले

अब और बर्दास्त नहीं, सरकार नहीं मानी, तो करेंगे रेल का चक्का जाम -शिवगोपाल मिश्रा

पदाधिकारियों के चुनाव में रखाल दासगुप्ता को अध्यक्ष और शिवगोपाल मिश्रा को महामंत्री चुना गया

चेन्नई: ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के तीन दिवसीय 95वें वार्षिक अधिवेशन के आखिरी दिन 6 दिसंबर को सभी जोनों के पदाधिकारियों ने एक स्वर में कहा कि समय आ गया है अब सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ बड़ा कदम उठाना ही होगा। उन्होंने कहा कि अगर समय रहते हमने सरकार को सबक नहीं सिखाया, तो सरकार की ज्यादती ऐसे ही बढ़ती जाएगी।

आखिरी दिन डेलीगेट सेशन में तय किया गया कि यदि रेल मंत्रालय निजीकरण, निगमीकरण पर अब कोई भी नया कदम उठाता है, तो रेल का चक्का जाम किया जाएगा।

फेडरेशन के अध्यक्ष और महामंत्री को अधिकृत किया गया कि चक्का जाम यानि पूर्ण हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए वह अन्य फेडरेशनों, ट्रेड यूनियनों, एसोसिएशनों से बात कर आम राय बनाने की कोशिश करें।

इसके बाद एक स्पेशल कन्वेंशन कर हड़ताल की तारीख का ऐलान क्या जाएगा।

डेलीगेट सेशन में महामंत्री की रिपोर्ट के अलावा पूरे दिन कुल 10 प्रस्तावों पर चर्चा की गई, इसमें सबसे महत्वपूर्ण दो प्रस्ताव थे-

पहला: भारतीय रेल के निजीकरण और निगमीकरण का पुरजोर विरोध किया जाएगा।

दूसरा: संसद में श्रम कानूनों में बदलाव के प्रस्ताव का ट्रेड यूनियन और फेडरेशन को कमजोर करने की सरकारी साजिश का विरोध।

दिन भर चले डेलीगेट सेशन की राय थी कि अब देर नहीं करनी चाहिए और भारतीय रेल को बचाने के साथ ही कर्मचारी हितों की रक्षा के लिए आर-पार की लड़ाई हेतु तैयार हो जाना चाहिए।

यहां उपस्थित नेताओं और रेल कर्मचारियों ने संकल्प लिया भारतीय रेल ‘भारतीय’ ही रहेगी, इसे ‘प्राइवेट’ रेलवे नहीं बनने दिया जाएगा। तत्पश्चात महामंत्री की रिपोर्ट को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।

महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने भारतीय रेल के हालात पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि सरकार की नीतियां न सिर्फ रेल और रेलकर्मियों के खिलाफ हैं, बल्कि ये देश के उन करोड़ों रेलयात्रियों के भी खिलाफ हैं, जिनके आवागमन के लिए रेलवे ही आज भी एकमात्र सहारा है।

महामंत्री ने कहा कि आज रेलकर्मी 22 हजार ट्रेनें रोजाना चला रहे हैं, आखिर ऐसा क्या है कि हम 150 कमर्शियल ट्रेनें नहीं चला सकते?

कॉम. मिश्रा ने रेलवे के निजीकरण और निगमीकरण के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का ऐलान करते हुए सरकार पर हमला किया और कहा कि आज सरकार सिर्फ पांच फीसदी लोगों के बारे में सोचती है, उनके लिए हर सुविधा मुहैया कराई जा रही है, सरकार को यदि बाकी 95 फीसदी देशवासियों की फिक्र होती, तो कम से कम वह रेलवे को बेचने की कोशिश नहीं करती।

महामंत्री ने कहा कि सरकार की कोशिश है कि रेल को किसी तरह सरकारी क्षेत्र से बाहर निकाले, लेकिन मजदूरों की ताकत का अंदाजा सरकार को नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारतीय रेल को देश की ‘लाइफ लाइन’ कहा जाता है, हर साल चार सौ से पांच सौ रेल कर्मचारी शहादत देकर ट्रेन का संचालन करते हैं, इस रेल को बेचने का सपना कभी पूरा नहीं होने वाला है।

उनका कहना था कि नीति आयोग ने 100 दिन की जो कार्ययोजना बनाई है, उसमें रेलवे के निजीकरण और उत्पादन इकाईयों के साथ रेल कारखानों के निगमीकरण का प्रस्ताव है। अगर ऐसा हुआ तो न भारतीय रेल सुरक्षित रहेगी, न रेल कर्मचारी सुरक्षित होंगे और न ही रेलयात्रियों को सस्ती रेल सेवा उपलब्ध हो पाएगी।

महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने ऐक्ट अप्रेंटिस की चर्चा करते हुए कहा कि हम चाहते कि इस मामले में पुरानी व्यवस्था बहाल हो, जैसे पहले अप्रेंटिस को नौकरी मिलती थी, उसी तरह फिर अप्रेंटिसशिप पूरा करने वालों को सेवा में लिया जाए।

उन्होंने कहा कि काफी संघर्ष के बाद हमने लार्सजेस स्कीम को हासिल किया था, कुछ कानूनी अड़चनें जरूर आई हैं, लेकिन भारतीय रेल पर पहला हक उनके बच्चों का है, उन्हें इस स्कीम के तहत नौकरी मिलनी ही चाहिए।

एनपीएस का विरोध पहले की तरह जारी रहेगा, फेडरेशन की मांग है कि पुरानी पेंशन बहाल होनी ही चाहिए। रिएंगेजमेंट से फेडरेशन सहमत नहीं है, हम चाहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद लोग घर जाएं और नए बच्चों को नौकरी का मौका मिले।

अस्वस्थता के कारण चेन्नई अधिवेशन में फेडरेशन के अध्यक्ष राखाल दासगुप्ता नहीं पहुंच सके, लेकिन उन्होंने अधिवेशन के सभी प्रस्तावों समर्थन किया।

दासगुप्ता की अनुपस्थिति में अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे एसआरएमयू के महामंत्री और एआईआरएफ के कार्यकारी अध्यक्ष एन. कन्हैया ने फेडरेशन के इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने फेडरेशन के संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि किन हालात में हम यहां तक पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि आज हमारे सामने गंभीर चुनौती है। हमारी लड़ाई एक ताकतवर सरकार से है, इसलिए हमें दोगुनी ताकत से संघर्ष के लिए मैदान में उतरना होगा। कन्हैया ने कहा कि हम अंग्रेजों से लड़ाई लड़कर जीत चुके हैं, फिर इस सरकार से भी दो-दो हाथ कर लेंगे।

अधिवेशन में शामिल एन.ई. रेलवे मजदूर यूनियन के सौ वर्षीय महामंत्री के. एल. गुप्ता ने कहा कि जो हालात हैं, उनसे निपटने के लिए मुकम्मल हड़ताल के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

अधिवेशन में आशीष विश्वास, मुकेश गालव, मुकेश माथुर, आर. डी. यादव, आर. सी. शर्मा, महेंद्र शर्मा, अमित घोष, एस. के. त्यागी, एल. एन. पाठक, प्रीति सिंह, पी. के. शिंदे, एस. एन. पी. श्रीवास्तव, ए. एम. डिक्रूज, गौतम मुखर्जी, पी. के. पटसनी, जया अग्रवाल, प्रवीना सिंह, बसंत चतुर्वेदी, अरुण मनोरे और आर. के. पांडेय ने अपने विचार प्रस्तुत किए।

इन पदाधिकारियों ने अपनी बात रखने के साथ ही विभिन्न प्रस्ताव रखे और उनका समर्थन भी किया। अधिवेशन में फेडरेशन के कोषाध्यक्ष जे.आर. भोसले ने लेखाजोखा प्रस्तुत किया, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।

अंत में फेडरेशन के संविधान में कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों को भी सर्वसम्मति से पास किया गया।

अगले तीन साल के लिए हुए फेडरेशन के चुनाव में अध्यक्ष रखाल दासगुप्ता, कार्यकारी अध्यक्ष एन. कन्हैया, महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा, कोषाध्यक्ष जे. आर. भोसले के अलावा उपाध्यक्ष एस. एन. पी. श्रीवास्तव, सी. ए. राजा श्रीधर, के. श्रीनिवास, अमित घोष, आर. डी. यादव, गौतम मुखर्जी, मनोज बेहरा, पी. के. पटसनी, सहायक महामंत्री के. एल. गुप्ता, एस. के. त्यागी, शंकरराव, आर. सी. शर्मा, मुकेश माथुर, मुकेश गालव, ए. एम. डिक्रूज और वेणु पी. नायर को सर्वसम्मति से चुना गया।

कुछेक पदाधिकारियों को छोड़कर फेडरेशन के नए मनोनीत या कथित सर्वसम्मति से चुने गए पदाधिकारियों की सूची को देखकर ऐसा नहीं लगता कि इनके भरोसे फेडरेशन कोई कारगर कदम उठा पाएगी! यह कहना था कुछ उत्साही युवा रेलकर्मियों का। उन्होंने अपना असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि चुके हुए और अपने बलबूते चलने को भी तरसते नेताओं के दम पर अब रेलकर्मियों को एकजुट करना तथा उनमें विश्वास पैदा करना आसान नहीं रह गया है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि नई और लगातार बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर फेडरेशन को नए विचारों और ऊर्जावान युवा नेतृत्व की जरूरत है। हालांकि फिलहाल युवाओं के इन विचारों पर फेडरेशन के वरिष्ठ नेताओं की प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं की जा सकी।