हर गलती के लिए समान रूप से तय हो ब्रांच अफसरों की जिम्मेदारी
जब तक हर गलती के लिए ब्रांच अफसरों को भी समान रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, उनकी भी समान जवाबदेही और उत्तरदायित्व सुनिश्चित नहीं किया जाएगा, तब तक न तो रेल की प्रशासनिक स्थिति में कोई सुधार होगा, न ही कामकाज का स्तर सुधरेगा!
प्लेटफार्म के बजाय मेन लाइन पर गाड़ी लेना, ऐन वक्त पर गाड़ी का प्लेटफार्म बदल देना, समय रहते प्लेटफॉर्म बदलने, गाड़ी आने की उद्घोषणा नहीं करने इत्यादि समस्याएं रेलयात्रियों को परेशानी में डालती हैं। परंतु उनकी सुनने वाला कोई नहीं है!
सोमवार, 16 मई 2022 को खंडवा स्टेशन पर ट्रेन नं. 02103, लोकमान्य तिलक टर्मिनस-गोरखपुर एक्सप्रेस को उसके निर्धारित प्लेटफॉर्म नं.2 पर लेने के बजाय मेन लाइन पर लिया गया। इसके चलते प्लेटफॉर्म नं.2 पर ट्रेन की प्रतीक्षा में खड़े सैकड़ों यात्रियों को प्लेटफार्म से कूदकर और ट्रैक पार करके किसी तरह ट्रेन में चढ़ना पड़ा।
इस प्रकार की घटनाएं अब अक्सर देखी जा रही हैं। इस पर ट्रेन ऑपरेशन से जुड़े एक जानकार वरिष्ठ रेलकर्मी का कहना है कि “इस तरह की घटनाएं तो अब रोज का ढ़र्रा बनती जा रही हैं। मेन लाइन में गाड़ी लेकर समय बचाने का प्रयास किया जाता है। यात्री की सुविधा के नाम पर करोड़ों की बंदरबांट होती है, लेकिन वह सुविधा बेमानी ही रहती है।”
उनका कहना है कि “अब यात्रियों के लिए गाड़ियां ही कहां चलाई जा रही हैं? अगर यात्री गाड़ियां नहीं ही चलानी हैं, तो सुविधा उन्नयन के नाम पर अपव्यय रोककर आधारभूत संरचना सुधारने पर ध्यान दिया जाना चाहिए, मगर प्रशासन यह भी नहीं कर रहा है। केवल कॉस्मेटिक वर्किंग हो रही है, जिसमें केवल यह दिखाया जा रहा है कि रेल में बहुत काम हो रहा है। तथापि जमीनी हकीकत ज्यों की त्यों बनी हुई है। ग्राउंड लेवल पर कुछ नहीं बदला है।”
उन्होंने आगे कहा कि रेलमंत्री, सीईओ/सीआरबी और एमओबीडी में सामंजस्य बना है या नहीं, यह समझ के परे नजर आता है। आए दिन नए-नए विचारों का पिटारा खोला जाता है और सप्ताह में कम से कम दो बार मीटिंग बुलाई जाती है। अक्सर अवकाश के दिन और देर रात में संदेश दिया जाता है कि सुबह 9.00 बजे या 10.00 बजे तक यह जानकारी दी जाए क्योंकि एमओबीडी या सीआरबी को यह जानकारी चाहिए।
उन्होंने बताया कि अब वस्तुस्थिति यह है कि न तो कंप्यूटर ढ़ंग से चलते हैं और न ही प्रिंटर। प्रिंटर के घिस चुके रिबन तक समय पर चेंज नहीं करवाए जाते। ई-ऑफिस के लिए स्कैनर तो शायद कुछ उच्चाधिकारियों को छोड़कर कहीं नहीं है। जो काम करने वाले हैं, वे स्वयं रेस्टलेस हैं, अपने परिवार तक को समय नहीं दे पा रहे हैं। बीमार पड़ जाने पर भी फोन पर जान खाई जाती है।
उन्होंने कहा कि आजकल के प्रशासनिक मिजाज के चलते रेल की वर्तमान वर्किंग में सुपरवाइजर हलकान हैं। सुपरवाइजरों पर ही सारा दारोमदार आ पड़ा है। ऐसे में तनिक सी भी गलती होने पर उन्हीं को टांगा जा रहा है, जबकि उनकी मेहनत और अथक परिश्रम का सारा श्रेय अधिकारी ले रहे हैं। अच्छा होता है तो अधिकारी अपनी पीठ थपथपाते हैं और कुछ खराब हुआ तो सुपरवाइजर नालायक है, और फिर चार्जशीट, निलंबन भुगतना पड़ रहा है।
उनका स्पष्ट कहना था कि योग्य, कर्तव्यदक्ष, अनुभवी और निष्ठावान अधिकारी साइड लाइन में पड़े हैं, जबकि अयोग्य, अकर्मण्य और अनुभवहीन लोग प्रमुख पदों पर विराजमान हैं। ऐसे में व्यवस्था का बंटाधार तो होना ही है। उन्होंने कहा कि जब तक हर गलती के लिए ब्रांच अफसरों को समान रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, उनकी भी समान जवाबदेही और उत्तरदायित्व सुनिश्चित नहीं किया जाएगा, तब तक न तो रेल की प्रशासनिक स्थिति में कोई सुधार होगा, न ही कामकाज का स्तर सुधरेगा।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी