पांच साल बाद कैटरिंग लाइसेंसी को मिला न्याय

अतिरिक्त राशि की अवैध वसूली को कोर्ट में वैध साबित नहीं कर पाया रेल प्रशासन

खंडवा: रेलवे बोर्ड की पॉलिसी और दिशा-निर्देशों को दरकिनार करके केवल रेल राजस्व में बढ़ोतरी के लिए अपने ही कैटरिंग लाइसेंसी से अवैध रूप से धनराशि जमा कराने के लिए अनुचित दबाव बनाने के एक मामले में रेल प्रशासन को कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी है।

खंडवा जिला एवं सत्र न्यायालय द्वारा 25 मार्च 2022 को दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय में रेलवे द्वारा अपने कैटरिंग लाइसेंसी से लाइसेंस फीस के अलावा 35 लाख 65 हजार 13 रुपये की किराये के नाम पर की गई मांग को अवैधानिक और अनुचित ठहराया है।

जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजीव कालगांवकर ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिससे रेलवे के अधिकारियों की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। मेसर्स के.कपूर एंड पीआर महंत खंडवा रेलवे स्टेशन के टी-स्टॉल एवं खानपान लाइसेंसी राजीव सेठी द्वारा मध्य रेलवे के जनरल मैनेजर, चीफ कमर्शियल मैनेजर एवं चार अन्य के विरुद्ध न्यायालय में 1 सितंबर 2017 को उपरोक्त राशि की नियम विरुद्ध वसूली के विरोध में यह मामला दायर किया गया था।

इसमें उन्होंने रेलवे द्वारा लाइसेंस फीस के अलावा किराये की मांग को अनुचित बताया था। पांच वर्ष लम्बे चले इस मामले में विद्वान् न्यायाधीश ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद और न्यायालय के संज्ञान में लाए गए तथ्यों के आधार पर 26 पेज का फैसला दिया है।

न्यायालय द्वारा फैसले में विस्तार से सभी बिन्दुओं की गहन विवेचना की गई है। रेलवे के लाइसेंसी राजीव सेठी ने बताया कि के.कपूर एंड पीआर महंत के नाम से उनकी फर्म वर्ष 1956 से खण्डवा रेलवे स्टेशन पर केटरिंग व्यवसाय कर रही है। उनके लाइसेंस का अंतिम नवीनीकरण 2003 में हुआ है। तब से अब तक रेलवे द्वारा जो निर्धारित लाइसेंस फीस है, उसका यथासमय नियमित भुगतान किया जाता रहा है।

विवाद की स्थिति तब बनी जब रेल प्रशासन ने वर्ष 2017 में पहली बार किचन एवं स्टोर रूम के लिए किराये के नाम पर 4 लाख 58 हजार 16 रुपये प्रति वर्ष की दर से 27 लाख 48 हजार 96 रुपये आरोपित किए, जो कालांतर में बढ़कर 35 लाख 65 हजार 13 रुपये हो गए। उन्होंने बताया कि रेल प्रशासन ने यह आदेश 2017 में जारी किया, लेकिन किराये की राशि का निर्धारण वर्ष 2010 से किया गया।

लाइसेंसी के अधिवक्ता ए वी चौधरी ने न्यायालय को बताया कि जिस किचन और स्टोर रूम का रेलवे ने वर्ष 2010 से किराया आरोपित किया है, वह 1956 से ही वादी को रेलवे द्वारा उपयोग के लिए आवंटित किया गया है, जिसका अलग से कभी कोई किराया नहीं माँगा गया। उन्होंने रेलवे बोर्ड के 3 जनवरी 1987 के आदेश का हवाला भी दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि उक्त किराया लाइसेंस फीस में समाहित है।

रेलवे बोर्ड के इस आदेश के कोर्ट के संज्ञान में लाए जाने के बाद जोनल रेल प्रशासन अतिरिक्त राशि की वसूली के अपने दावे का युक्ति-युक्त आधार नहीं बता सका। जोनल प्रशासन ने हालांकि न्यायालय में यह स्वीकार किया कि कैटरिंग लाइसेंसी को उक्त किचन एवं स्टोर रूम 1956 से ही आवंटित है और तभी से उसके द्वारा उपयोग में लिया जा रहा है, जिसका इसके पहले कभी कोई किराया नहीं लिया गया। ऐसे में 2017 से अतिरिक्त किराया लेने का औचित्य भी वह कोर्ट के सामने साबित नहीं कर सका।

उल्लेखनीय है कि कैटरिंग लाइसेंसी से उक्त राशि जमा करवाने के लिए रेल प्रशासन ने आरपीएफ और जीआरपी को साथ लेकर उसके किचन एवं स्टोर रूम को सील करने की कार्यवाही भी की गई थी, जिसे न्यायालय ने अनुचित ठहराया।

इस मामले को लेकर और भी कई विसंगतियां सामने आई हैं, जिससे रेल प्रशासन की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। मामले में लाइसेंसी की ओर से अधिवक्ता ए वी चौधरी ने पक्ष रखा, जबकि रेलवे की ओर से अधिवक्ता सुश्री आभा सोनी ने पैरवी की।

न्यायालय: जिला न्यायाधीश, खंडवा, मध्य प्रदेश
Case No. RCSA/114/2017
Registration No. 114A/2017
Filing No. RCSA/657/2017
CNR No. MP12010051842017
Filing Date: 01.09.2017