GDCE/RRC/NCR की परीक्षा में हुआ था भारी घपला, बोर्ड विजिलेंस टीम कर रही है जांच!
एक खास बिरादरी के कर्मचारियों और अधिकारियों की संलिप्तता तथा भारी दबाव के चलते उ.म.रे. विजिलेंस ने रेलवे बोर्ड विजिलेंस को सौंपी जांच
प्रति कंडीडेट हुआ था लाखों रुपये का लेन-देन, ग्रेजुएट-नॉन ग्रेजुएट कैटेगरी के पेपर का हुआ था सौदा, आधा पैसा एडवांस लेकर कैंडीडेट्स को दी गई थी कोचिंग!
प्रयागराज ब्यूरो: उत्तर मध्य रेलवे की रेलवे रिक्रूटमेंट सेल (आरआरसी) द्वारा अगस्त 2021 में कराई गई जीडीसीई परीक्षा – नोटिफिकेशन नं. 01/2019 – में भारी घपले की आशंका के चलते इसकी जांच अब रेलवे बोर्ड विजिलेंस को सौंपी गई है। सूत्रों का कहना है कि बोर्ड विजिलेंस की प्राथमिक जांच एवं छानबीन में यह तथ्य सामने आया है कि इस परीक्षा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और पैसे का लेनदेन हुआ था। किसी ने तीन लाख लिए, किसी चार लाख लिए, तो किसी ने पांच लाख ले लिया, जिसको जैसा कैंडिडेट मिला, उसने उसको वैसा मुर्गा बनाया। कुछ आरपीएफ वाले भी इसमें पीछे नहीं रहे।
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बोर्ड विजिलेंस की एक टीम पिछले कुछ दिनों से प्रयागराज और अलीगढ़ सहित कई शहरों में बिखरे स्रोतों से जानकारी इकट्ठा कर रही है। पता चला है कि इस परीक्षा में कम से कम 60-65 कैंडीडेट्स को पेपर उपलब्ध कराए जाने के साथ ही कोचिंग भी दी गई थी। सूत्रों का कहना है कि विजिलेंस टीम को ऐसे लगभग 10-11 कैंडीडेट्स का पता तो केवल अलीगढ़ में ही चला है। बताते हैं कि इन्हीं कैंडीडेट्स के अंक उनकी योग्यता के अनुमान से भी अधिक (86% से 96%) आए थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार यह जीडीसीई परीक्षा वर्ष 2019 में ही शेड्यूल थी। इसके अलावा उत्तर मध्य रेलवे में कई वर्षों से यह विभागीय परीक्षा न कराए जाने से कर्मचारियों में भी काफी असंतोष था। परंतु बताते हैं कि 2019 में, भले ही जल्दबाजी के चलते, उपरोक्त नोटिफिकेशन जारी करने से पहले उसके लिए तत्कालीन चेयरमैन/आरआरसी द्वारा जीएम का अप्रूवल भी नहीं लिया गया था।
इसके अलावा, सूत्रों का यह भी कहना है कि इस परीक्षा के लिए लगभग 70,000 कर्मचारियों ने आवेदन किया था, जबकि इतने कर्मचारी तो पूरी उत्तर मध्य रेलवे में ही नहीं हैं। इसका अर्थ यह था कि इस विभागीय परीक्षा में रेलवे से बाहर के हजारों लोगों ने आवेदन किया था। परिणामस्वरूप इन सभी कैंडीडेट्स का जब एचआरएमएस से वेरीफिकेशन कराया गया, तब यह संख्या घटकर 29,000 से कुछ ज्यादा पर आ गई थी।
मिली जानकारी के अनुसार उपरोक्त नोटिफिकेशन पर 4 अगस्त, 5 अगस्त और 6 अगस्त 2021 को कुल 58 केंद्रों पर यह परीक्षा कराई गई थी। यहां यह तथ्य अवश्य उल्लेखनीय है कि उक्त परीक्षा के पेपर आरआरबी चेयरमैन – पटना, मुजफ्फरपुर, तिरुवनंतपुरम – ने सेट किए थे। सबसे बड़ा घपला 06.08.2021 को हुई परीक्षा में हुआ था, जिसका पेपर बताते हैं कि चेयरमैन/आरआरबी/पटना द्वारा सेट किया गया था।
सूत्रों का कहना है कि इस पेपर को करीब 60-65 कैंडीडेट्स को उपलब्ध कराया गया था और उन्हें ऑनलाइन पेपर कैसे हल करना है, इसकी कोचिंग देने के लिए गाजियाबाद ले जाया गया था। बताते हैं कि एएसएम, टीटीई आदि कैटेगरी के प्रत्येक ग्रेजुएट कैंडिडेट से पहले ढ़ाई से तीन लाख लिए गए थे, और परीक्षा के बाद भी इतनी ही राशि का सौदा हुआ था। कुछ कैंडिडेट नॉन-ग्रेजुएट कैटेगरी के भी बताए गए हैं।
सूत्रों का कहना है कि इस सारे घपले की जानकारी एक ट्रैकमैन ने ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ उत्तर मध्य रेलवे के सक्षम अधिकारियों को सौंपी थी। जिसे बाद में तत्कालीन पीसीपीओ/उ.म.रे. को जांच के लिए दिया गया था।
बताते हैं, पीसीपीओ ने उक्त ट्रैकमैन को बुलाकर उसकी कड़ी क्लास ली और उसे यह कहकर डराया धमकाया कि “उसने यह सारा मामला विवाद पैदा करने और परीक्षा रद्द करवाने के लिए किया, इसमें कोई तथ्य नहीं है।” सूत्रों का कहना है कि इसके बाद उक्त ट्रैकमैन ने उस कैंडिडेट को भी लाकर उनके सामने प्रस्तुत किया था, जो सारे घपले का चश्मदीद था। तथापि दोनों को ही डरा-धमकाकर भगा दिया गया था। सूत्रों का कहना है कि यह सारी प्रक्रिया सक्षम अधिकारियों के सामने बार-बार दोहराई गई थी, तथापि परिणाम शून्य था।
सूत्रों का कहना है कि तत्पश्चात दोनों ट्रैकमैनो ने सारे सबूतों के साथ पूरा मामला उत्तर मध्य रेलवे विजिलेंस को सौंपा। विजिलेंस ने जब इस पर अपनी जांच शुरू की तब उस पर भी कई बड़े अधिकारियों का दबाव बनाया गया। सूत्रों ने इनमें से बिरादरी विशेष के एक तत्कालीन सीएसटीई/उ.म.रे. और दूसरे चेयरमैन/आरआरबी/पटना का नाम प्रमुख से उल्लेख किया है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन कुछ विभागीय अधिकारी तो पहले से ही इस पूरे मामले में लिप्त पाए गए थे।
बहरहाल, इस तमाम ऊपरी दबाव के चलते उ.म.रे. विजिलेंस ने आजिज आकर अथवा क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन की जानकारी के अभाव में इस पूरे मामले की जांच अंततः रेलवे बोर्ड विजिलेंस को सौंप दी। अब जब बोर्ड विजिलेंस की टीम ने इसकी जांच शुरू की है, तब बताते हैं कि एक बिरादरी विशेष की उच्च पहुंच वाली लॉबी फिर से दबाव बनाने और जांच को प्रभावित करने या रुकवाने अथवा उसमें लीपापोती करवाने की कोशिशों में जुट गई है।
सूत्र बताते हैं कि बोर्ड विजिलेंस टीम को प्राथमिक जांच में ऐसे कुल 60-65 कैंडीडेट्स का पता चला है, जिन्हें न केवल पेपर उपलब्ध कराया गया था, बल्कि उन्हें कोचिंग भी दी गई थी। इनमें से अलीगढ़ के 10-11 कैंडीडेट्स भी शामिल हैं। बोर्ड विजिलेंस टीम ने मामले की जांच में अच्छी शुरुआत की है। बताते हैं कि सभी संबंधित कैंडीडेट्स को खोजकर उनके लिखित बयान दर्ज किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि वर्तमान पीईडी/विजिलेंस/रे.बो. के मार्गदर्शन में बोर्ड विजिलेंस की टीम इस पूरे मामले को समूल उजागर करेगी, जिसमें कई बड़े अधिकारी लपेटे में आ सकते हैं।
इस मामले में तत्कालीन चेयरमैन/आरआरसी/उ.म.रे. अतुल कुमार मिश्रा से संपर्क कर उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई। श्री मिश्रा का कहना है कि उ.म.रे. विजिलेंस को जांच के लिए यह मामला उन्होंने ही रेफर किया था। ट्रैकमैन द्वारा की गई शिकायत और सबूतों के आधार पर यह पाया गया था कि कुछ कैंडीडेट्स के मार्क्स (अंक) उनके ज्ञान और योग्यता को देखते हुए बहुत ज्यादा लगे थे। इसके लिए उन्होंने उनका रिजल्ट रोककर उनकी दुबारा परीक्षा करवाई थी, जिससे उनकी पूर्व आशंका करीब-करीब सही साबित हुई थी।
उन्होंने बताया कि सब कुछ ऑन रिकॉर्ड है। विभाग या आरआरसी के तौर पर परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं होने दी गई थी। उनका कहना था कि जो कुछ भी गड़बड़ी हुई, वह बाहर से हुई, जिसके लिए विभागीय तौर पर कुछ नहीं किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि सभी परीक्षा केंद्रों पर मोबाइल जैमर लगाने सहित किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को रोकने के हरसंभव प्रयास किए गए थे। तथापि जो भी गड़बड़ी हुई, आरआरसी का उसमें कोई नियंत्रण नहीं था।
ज्ञातव्य है कि ऐसी किसी भी आरआरसी परीक्षा के पेपर सेट करने की जिम्मेदारी रेलवे बोर्ड के निर्देशानुसार तीन अलग-अलग आरआरबी चेयरमैनों को सौंपी जाती है। इन तीनों चेयरमैनों का नामांकन भी रेलवे बोर्ड द्वारा ही किया जाता है। जानकारों का मानना है कि इसमें संबंधित आरआरसी चेयरमैन की कोई भूमिका नहीं होती है। मगर यदि परीक्षा में कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो सबसे पहले संबंधित चेयरमैन को ही सर्वसामान्य द्वारा दोषी ठहराया जाता है। जबकि अगर पेपर लीक होता है, तो पेपर सेट करने वाले किसी आरआरबी चेयरमैन की तरफ उंगली भी नहीं उठती है, और न ही उसकी कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही सुनिश्चित की गई है।
इस मामले में उच्च पदस्थ अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि पेपर लीक होने की सबसे ज्यादा संभावना पेपर सेट करने वाले की तरफ से ही होती है, क्योंकि उक्त पेपर संबंधित आरआरसी चेयरमैन को परीक्षा शुरू होने से कुछ मिनट पहले मिलता है, जिसे वह की-वर्ड (पासवर्ड) के साथ संबंधित परीक्षा एजेंसी को भेज देता है। उनका कहना है कि आरआरसी चेयरमैन को केवल परीक्षा का इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने की जिम्मेदारी दी गई है।
उनका कहना है कि इस पूरे मामले में कई बड़ी मछलियां इंवाल्व हैं, जिनके तार प्रयागराज, अलीगढ़, गाजियाबाद, दिल्ली और जयपुर तक फैले हुए हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस पूरे मामले में विशेष रूप से एक आरक्षित रसूखदार बिरादरी के कुछ कर्मचारी और अधिकारी इंवाल्व हैं, अन्यथा एक चेयरमैन/आरआरबी और उक्त सीएसटीई को परीक्षा का रिजल्ट लेट होने की चिंता न सता रही होती, और न ही वे बार-बार रिजल्ट घोषित करने का दबाव बना रहे होते। तथापि अब उम्मीद है कि रेलवे बोर्ड की विजिलेंस टीम इस पूरे घपले को जड़-मूल से उजागर करेगी और न केवल दोषियों को कठघरे में खड़ा करेगी, बल्कि विसंगतियों के मद्देनजर रेलवे बोर्ड को इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करते हुए एक फुलप्रूफ गाइडलाइन जारी करने के लिए भी तैयार करेगी।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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