रेलवे में जारी है तदर्थवाद, किसी को पता नहीं किस दिशा में जा रही है रेल!
“रेल का जो भी करना है, सरकार खुलकर करे, कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है, यह सबसे अनुकूल समय है, कहीं कोई विरोध नहीं है, न होने वाला है, मगर पता तो चले कि आखिर रेल को किस दिशा में ले जाया जा रहा है!”
सुरेश त्रिपाठी
आज 30 मार्च 2022 को, अभी थोड़ी देर पहले रेलवे बोर्ड ने मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक (एमटीआरएस) का अतिरिक्त कार्यभार एक बार पुनः शिफ्ट करते हुए अब यह एडीशनल मेंबर/ मैकेनिकल इंजीनियरिंग (एएम/एमई) डी. सी. शर्मा को सौंप दिया है, जो कि सीटों/बर्थों के लिए कुशन सप्लाई करने वाले एक खास धड़े के समर्थक बताए जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि 15 मार्च 2022 को राहुल जैन के फाइनली चले जाने/रिटायर हो जाने पर इस पद का अतिरिक्त कार्यभार चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड को सौंपा गया था। जबकि श्री जैन को फोर्स लीव (जबरन छुट्टी) पर भेजे जाने से लेकर 15 मार्च तक एमटीआरएस पद का अतिरिक्त प्रभार मेंबर/इंफ्रा संजीव मित्तल संभाल रहे थे, वह भी कल 31 मार्च को रिटायर हो रहे हैं।
तब ऐसे में सवाल यह उठता है कि अब इस आर्डर का औचित्य क्या है? कभी इसको, कभी उसको, कभी खुद को, और अब जूनियर को एमटीआरएस का अतिरिक्त पदभार सौंपा गया है, क्या रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव देश को अपने इस निर्णय का औचित्य बताएंगे?
जबकि डी. सी. शर्मा से सीनियर और सक्षम दो अधिकारी – रविंद्र गुप्ता, डीजी/सेफ्टी तो वहीं रेल भवन में, और आशुतोष गंगल, जीएम/उ.रे. बगल के बड़ौदा हाउस में ही बैठे हुए हैं। जानकारों द्वारा इसका अर्थ यह निकाला जा रहा है कि “जूनियर की ताजपोशी करके उससे मनचाहा काम कराया जा सकता है, मनचाही जगह उससे साइन कराए जा सकते हैं, मनचाहे लोगों को काम/टेंडर देने के लिए कहा जा सकता है, वह कुछ बोल नहीं सकता, बाद में फंसता वही है, सत्ता में बैठे लोगों की इसी तरह मौज होती है, जमीनी काम हो, न हो, इसकी चिंता किसी को नहीं होती।”
उनका यह भी कहना है कि ऐसा ही कुछ पूर्व मंत्री के कार्यकाल में हो रहा था, ऐसा ही अब हो रहा है! लगता है कि कुछ निहित उद्देश्यों के चलते पीएम नरेंद्र मोदी को रेल के मामलों में अंधेरे में रखा जा रहा है! उनका कहना है कि जब #MTRS की पोस्ट 15 मार्च को फाइनली खाली हो गई थी, तब उस पर उपयुक्त नियुक्ति किए जाने के बजाय बार-बार यह एडहॉकिज्म (तदर्थवाद) क्यों अपनाया जा रहा है, यह किसी की भी समझ से परे है।
हालांकि इससे पहले भी मेंबर्स का अतिरिक्त प्रभार एडीशनल मेंबर्स को सौंपा गया है। यह परंपरा हाल में ही शुरू हुई है। परंतु यह न केवल नियमत: और सिद्धांतत: गलत है, बल्कि ऐसा निहित उद्देश्यों के तहत किए जाने की नई परंपरा पड़ी है, क्योंकि एक तो जूनियर, ऊपर से अक्षम और नाकाबिल की ऊंचे पद पर तैनाती अर्थात ताजपोशी अपने आप बहुत कुछ कहती है, दूसरे मंत्री एवं उसके सलाहकारों की निर्णय क्षमता और उनके उद्देश्यों पर सवाल खड़ा करती है!
अब जोनल जीएम का अतिरिक्त कार्यभार भी एडीशनल जीएम, अर्थात एजीएम – जो कि मेंबर एवं एडीशनल मेंबर में अंतर के अनुरूप ही ग्रेड के अनुसार जीएम से एक ग्रेड नीचे होता है – को जीएम का अतिरिक्त प्रभार सौंपने की तैयारी है। यानि जोनों में भी शीर्ष पर “जूनियर” को बैठाकर उसके कान पकड़कर उससे मनचाहा मन-मुताबिक काम करवाया जाएगा। जबकि अतीत में एजीएम को जीएम का अतिरिक्त प्रभार सौंपने का परिणाम रेल मंत्रालय को कोर्ट में भुगतना पड़ चुका है।
इस संदर्भ में रेलवे को अपने जीवन के सबसे अमूल्य 35-40 वर्ष दे चुके रेल के एक्सपर्ट जानकारों का कहना है कि अगर सारे सीनियर अधिकारी निकम्मे, अक्षम हो गए हैं, लायक नहीं रह गए हैं, तो या तो उन्हें कंपल्सरी रिटायरमेंट दे दिया जाए, या फिर यह साबित किया जाए कि वे वास्तव में ही निकम्मे और नालायक हैं! उनका यह भी कहना है कि रेलवे क्यों उनका अनावश्यक बोझ ढ़ो रही है! सरकार को चाहिए कि “30 साल की सेवा अथवा 55-57 साल की आयु” पूरी कर चुके अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए “कंपल्सरी रिटायरमेंट स्कीम” अविलंब लागू कर दी जाए! तब कम से कम उन्हें यह तो स्पष्ट पता होगा कि जाना किस दिशा में और कहां है!
ज्ञातव्य है कि लगभग छह महीनों से डीआरएम की पोस्टिंग अटकी हुई है। जीएम के सात पद पहले से ही रिक्त हैं। कल तीन जीएम और मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर भी रिटायर हो जाएंगे। डीजी/एचआर का पद जानबूझकर या कुछ निहित उद्देश्यों के तहत पिछले एक साल से खाली रखा गया है। #MTRS का पद भी वास्तविक धरातल पर पिछले करीब पांच महीने पहले से रिक्त है!
जानकारों का कहना है कि “रेल का जो भी करना है, सरकार खुलकर करे, कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है, यह सबसे बढ़िया और अनुकूल समय है, कहीं कोई विरोध नहीं है, न होने वाला है, मगर पता तो चले कि आखिर रेल को किस दिशा में ले जाया जा रहा है!”