स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर भारत!

हमारे बचे-खुचे कुछ बुजुर्ग अक्सर अंग्रेजों के जमाने के किस्से सुनाते रहते हैं। उनमें से एक किस्सा यह भी है कि जब भी रेलवे का कोई पुल तैयार होता था तो उसके तैयार होने के बाद टेस्टिंग में पुल के नीचे पहले ठेकेदार को बैठाया जाता था और फिर उसके ऊपर से गाड़ी गुजारी जाती थी। नई रेल लाइन की टेस्टिंग के लिए उस पर से गुजारी जाने वाली पहली ट्रेन में उसे बनाने वाले इंजीनियरों और अधिकारियों को बैठाया जाता था।

अगर ठेकेदार ने पुल मजबूत नहीं बनाया है तो टेस्टिंग में ही पुल उसके ऊपर गिर पड़ेगा। इसी तरह नई रेल लाइन की टेस्टिंग के पीछे भी यही मंतव्य रहता था। इस डर से ठेकेदार मजबूत निर्माण करते थे। इन किस्सों की वास्तविकता तो वे बुजुर्ग ही जानें या फिर अंग्रेज, पर नैतिकता और शुचिता की दृष्टि से यह कार्य वास्तव में सराहनीय लगता है कि यदि आपने दूसरे के लिए कोई चीज निर्मित की है तो उसका उपयोग सबसे पहले आप स्वयं करें।

निजी क्षेत्र अर्थात प्राइवेट सेक्टर में भी यह तरीका काफी प्रचलन में रहा है कि कंपनियों के सीईओ अपनी कंपनी द्वारा निर्मित प्रोडक्ट का सबसे पहले स्वयं उपयोग करते आए हैं। हाल ही में अमेरिका की टेक्सास आर्मर कंपनी के सीईओ ने यह सिद्ध करने के लिए कि उनकी कंपनी के शीशे अभेद्य हैं, अपनी कंपनी निर्मित शीशे की विंडशील्ड कार में लगवाई, स्वयं ड्राइविंग सीट पर बैठकर बाहर से एके-47 से गोलियों की बौछार कराई। निःसंदेह शीशे अभेद्य थे। इससे जनमानस में यह संदेश गया कि इस कंपनी के मालिक को अपने प्रोडक्ट पर इतना भरोसा है कि जान की बाजी लगाकर अपने प्रोडक्ट की खुद टेस्टिंग की।

उपरोक्त उद्धरणों का मुख्य संदर्भ यह कि भारतीय रेल ने दुर्घटनाओं से बचने के लिए नए सिस्टम “कवच” की खोज की है। इस सिस्टम में अगर ड्राइवर से गलती हो जाए, या वह ब्रेक लगाना भूल जाए, और सामने से गाड़ी आ रही हो, तो “कवच” अपने आप ब्रेक लगाकर गाड़ी को रोक देगा।

अभी इस सिस्टम की लाइव टेस्टिंग हुई। एक गाड़ी के इंजन में स्वयं रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव और उनके ओएसडी तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण थे, तो दूसरी गाड़ी में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन/सीईओ विनय कुमार त्रिपाठी सभी उच्च अधिकारियों के साथ थे।

Successful testing of #Kavach, made by #IndianRailway

एक ही ट्रैक पर दो गाड़ियां आमने-सामने अपनी पूरी गति से दौड़ती आ रही थीं। दोनों गाड़ियों के ड्राइवरों को ब्रेक नहीं लगाने के निर्देश थे।

एक निश्चित दूरी पर आते ही “कवच” सिस्टम स्वतः सक्रिय हुआ और उसने अपने आप निर्धारित समय एवं दूरी पर दोनों गाड़ियों को रोककर उनकी भिड़ंत को बचा लिया।

रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड के अधिकारियों का अपने प्रोडक्ट पर इस तरह का विश्वास सराहनीय है। स्वतंत्र भारत में शायद इस प्रकार का यह पहला प्रयोग था। अन्य विभागों के लिए भी यह अनुकरणीय है।

ऐसा ही विश्वास और इस तरह अपने कार्य पर भरोसा अगर सभी सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी करें, तो वास्तव में शीघ्र ही देश का कायाकल्प हो जाएगा।

इस मामले में अब तक भारत में सरकारी विभाग अपनी कार्यप्रणाली, कार्यशैली और प्रत्यक्ष कार्य-व्यवहार को लेकर बहुत बदनाम रहे हैं। सरकारी विद्यालय का अध्यापक अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाएगा। सरकारी डॉक्टर अपने बच्चों का इलाज सरकारी अस्पताल में नहीं कराएगा। सरकारीकरण का समर्थक सरकारी बाबू स्वयं निजी कंपनी के प्रोडक्ट्स और विदेश में निर्मित उत्पादों का उपयोग करता है। लेकिन अब भारत बदल रहा है!

#Kavach #IndianRailway