रेलवे बोर्ड के तुगलकी निर्णयों में एकरूपता नहीं
मूर्खतापूर्ण री-एंगेज पालिसी को पहले खत्म किया, फिर एकमुश्त 13 महीनों के लिए बढ़ा दिया
री-एंगेजमेंट पालिसी को तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए -कार्यरत रेलकर्मियों की मांग
रेलवे बोर्ड के निर्णयों में अक्सर यह देखा गया है कि उनमें एकरूपता नहीं होती। एक दिन पहले जो निर्णय लिया जाता है, अगले दिन ही उसे पलट दिया जाता है। अफसरों के ट्रांसफर/पोस्टिंग के मामलों में भ्रष्टाचार के चलते यह स्थिति अक्सर देखने में आती है। यही स्थिति री-एंगेजमेंट पालिसी की भी है। इसमें भी यदि कोई कदाचार शामिल हो, तो कोई बड़ी बात नहीं है।
पहली बात तो यह कि ये पालिसी ही मूर्खतापूर्ण थी, क्योंकि कुछेक अपवादों को छोड़कर, जिन कामचोरों ने अपने असली सेवाकाल में कभी काम नहीं किया था, वह पुनः मुफ्तखोरी के लिए आकर कुर्सी पर जम गए। इसके अलावा सीनियर होने के नाते उनसे काम करने को कोई कह नहीं सकता है, क्योंकि सब तो पहले उनके मातहत रह चुके हैं।
फिर भी जब इसे लागू किया गया तब इसकी विसंगतियां खुलकर सामने आ गईं। इन्हीं विसंगतियों, शिकायतों और स्टाफ की आपसी खींचतान के चलते इस मूर्खतापूर्ण पालिसी को खत्म करने का आदेश रेलवे बोर्ड द्वारा जारी किया गया था। तथापि रेलवे बोर्ड अपने निर्णय पर अडिग नहीं रह सका। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
दूसरी बात यह कि स्वीकृत (स्थाई) पदों पर इस तरह की नियुक्ति अवैधानिक है। ऐसे पदों पर री-एंगेजमेंट अथवा ठेके पर कार्मिकों की नियुक्ति गैरकानूनी मानी जाएगी, क्योंकि इस तरह नए रोजगारों का रास्ता अवरूद्ध होता है और रोजगारोन्मुख युवाओं को रोजगार नहीं मिलता। इससे सरकार की भी छवि खराब हो रही है।
दि. 28.11.19 को रेलवे बोर्ड द्वारा री-एंगेजमेंट स्कीम को 01.12.20 तक बढ़ाने का आदेश इस शर्त के साथ दिया गया कि अब डीआरएम के बजाय जीएम को यह अधिकार होगा कि री-एंगेजमेंट के तहत कुछ शर्तों के साथ रिटायर्ड रेल कर्मचारियों को उक्त बढ़ाई गई अवधि तक पुनः रख सकते हैं। इन शर्तों में कहा गया है कि –
- जोनल रेलवे इसको वेबसाइट पर रखकर उचित प्रचार करें।
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प्रत्येक भर्ती या एक्सटेंशन जरूरत के अनुसार और रिव्यु के बाद ही किया जाए।
उक्त आदेश को यदि गौर से देखा जाए तो ये स्कीम का एक्सटेंशन है, न कि वर्तमान में कार्य कर रहे री-एंगेज रेल कर्मचारियों का एक्सटेंशन।
लेकिन कहा जाता है कि तकनीकी पोर्टल पर सबसे फिसड्डी उत्तर मध्य रेलवे के नीति नियंताओं ने जोनल मुखिया (जीएम) तक को भी गुमराह करके वर्तमान री-एंगेज स्टाफ को बिना रिव्यु कराए ही कंटीन्यूएशन का आदेश दिला दिया गया। जबकि 30.11.19 को पहले इन लोगों को डिस्कंटीन्यू किया जाना था।
इस संबंध में दूसरी जोनल रेलों ने नियमों का पालन करते हुए वर्तमान री-एंगेज स्टाफ को 30.11.19 को हटाने का आदेश दिया है और एक निश्चित समय के अंदर उनकी पुनर्नियुक्ति का प्रस्ताव मांगा गया है।
उत्तर मध्य रेलवे के बारे में कहावत प्रसिद्ध है कि फाइल पर बाबू ने जो टिप्पणी कर दिया, चाहे वह लीगल हो या इल्लीगल, जोनल अथवा विभागीय मुखिया उसे जैसा का तैसा अप्रूव कर देता है।
इस मामले में भी यही हुआ। रेलवे बोर्ड 28.11.19 की शाम को निर्देश देता है और 29.11.19 को बिना रिव्यु किए ही उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय सभी वर्तमान री-एंगेज कर्मचारियों को कंटीन्यू करने का आदेश मंडल को जारी कर देता है। जबकि होना यह चाहिए था कि पहले इन लोगों को डिस्कंटीन्यू किया जाता और फिर आवश्यकता के अनुसार संबंधित सेक्शन से प्रस्ताव मंगाया जाता।
पश्चिम रेलवे द्वारा रेलवे बोर्ड के उक्त निर्देश का अक्षरशः पालन करते हुए वर्तमान री-एंगेज कर्मचारियों को डिस्कंटीन्यू करने का आदेश दिया जा चुका है, जो कि वास्तव में सही प्रक्रिया है।
रेलवे बोर्ड को अपनी तुगलकी प्रक्रिया को छोड़कर पुख्ता निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना चाहिए, क्योंकि यह अक्षमता सिर्फ इसी निर्णय तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें उसकी यही विसंगति अक्सर देखने में आती है। सर्वप्रथम तो उसे इस मूर्खतापूर्ण पालिसी से तुरंत निजात पाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे रेलवे का फायदा नहीं, बल्कि भारी नुकसान हो रहा है। कार्यरत रेलकर्मियों की भी यही मांग है।