कोऊ नृप होय हमै का हानी, पर सीआरबी में अब परफॉर्मर ही आना चाहिए!

अब सरकार को तय करना है कि उसे परफॉर्मर चाहिए या फिर केवल जी-हजूरी और यस सर-यस सर करके टाइम पास करने वाला! क्योंकि प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार 2024 में जनता को जवाब तो प्रधानमंत्री और रेलमंत्री दोनों को ही देना पड़ेगा!

तीन दिन बाद वर्तमान चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड सुनीत शर्मा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। अपने पूरे एक साल के कार्यकाल में उन्होंने रेलवे में सुधार का ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जो उल्लेखनीय हो। अब यह सर्वज्ञात है। कोलकाता वाले के साथ अब वह पूरी तरह एक्सपोज होने के बाद पिछले एक हफ्ते से रेल भवन के अपने कार्यालय में भी नहीं आ रहे हैं। सुना यह भी है कि उन्होंने अब अपनी तरफ से ही मना कर दिया है कि उन्हें एक्सटेंशन या रिएंगेजमेंट नहीं चाहिए।

बहरहाल, एक साल में उनके कार्यकाल में न तो 2022 का जीएम पैनल बन पाया, जो कि डीओपीटी की गाइडलाइंस के अनुसार अंतिम रूप से 31 दिसंबर को रेल मंत्रालय के हाथ में होना चाहिए, न ही आईआरएमएस की प्रक्रिया तय हो पाई, और न ही कैडर मर्जर करके इस पर अमल सुनिश्चित हो पाया है! न ही समय पर डीआरएम पोस्टिंग हो पाई! और न ही उन्होंने किसी के साथ न्याय किया। यह उनकी सबसे बड़ी विफलता रही है।

जानकारों का मानना है कि अब जो नया चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड आएगा, वह इसी सब में फिर 7-8 महीने गंवाएगा! फिर व्यवस्था हतोत्साहित होगी। और फिर कर्मचारियों-अधिकारियों का मनोबल गिरेगा, और 75 वंदेभारत ट्रेनों का प्रधानमंत्री और रेलमंत्री का सपना धरा पर धरा रह जाएगा! यही भविष्य का परिदृश्य दिखाई दे रहा है।

इस दौरान सीआरबी बनने की दौड़ या होड़ बता रही है कि अक्षम लोग किस कदर सिस्टम पर हावी होने का प्रयास कर रहे हैं! एक जीएम अपने महाचालू मातहत के जरिए लोकसभा स्पीकर और हरियाणा के सीएम को मिल रहा है? तो एक गवर्नर का दामाद होने के नाते सीआरबी बनने का दावा ठोक रहा है? जबकि तीसरा उड़ीसा के सीएम से फोन करा रहा है? और चौथा अपना मुख्यालय लावारिस छोड़कर दिल्ली में ही 8-10 दिन से डेरा डालकर लॉबिंग कर रहा है!

बताते हैं कि मुख्यालय छोड़ने की अनुमति और छुट्टी की सेंक्शन आखिर तो उसे सीआरबी से ही मिली होगी। इसका अर्थ यह है कि “हम नहीं तो कोई नहीं की तर्ज पर तब तीसरे को सहयोग करो, जिससे अब तक जो हमारी दलाली कर रहा था, फिर हम उसकी दलाली करेंगे। इस तरह दोनों को लाभ होगा।” इस तरह मॉरली और बेसिकली करप्ट एवं करेक्टरलेस एक अधिकारी को सीआरबी बनाने में कोलकाता और हैदराबाद वाली दोनों कंपनियों का “वेस्टेड इंटरेस्ट” है।

जानकारों का कहना है कि, “सुना है, कोलकाता वाले दलाल के एक और हस्तक, संदिग्ध चरित्र वाले एक जीएम, सीआरबी बनने के लिए अपना मुख्यालय छोड़कर 8-10 दिन से दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं!
अब अगर राजनीतिक लॉबिंग से इस तरह जो सीआरबी बनेगा, वह रेल के लिए परफॉर्म करने के बजाय अपने आका के लिए ही परफॉर्म करेगा! जैसा अब तक होता आया है!”

उनका कहना है कि यह जीएम अत्यंत गैरजिम्मेदार व्यक्ति है। अति-महत्वाकांक्षा के आगे इसका अपना कोई प्रिंसिपल नहीं है। सब जानते हैं कि एक रेलवे पीएसयू में रहते हुए इसने वहां निजी कंपनी में जिस लड़की को नौकरी पर रखवाया था, उसके साथ बोर्ड में ऑफिस ऑवर्स के बाद उसे अपनी वाइफ बताकर दो-तीन घंटे बंद चेंबर में रहने के इनके सीसीटीवी फुटेज आज भी आरपीएफ के पास मौजूद हैं। इसी प्रकरण में इन्हें रेल भवन से उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर ट्रांसफर किया गया था। जहां इन्होंने पूर्व रेलमंत्री के वरदहस्त के चलते ज्वाइन नहीं किया और पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर में एजीएम बनकर आउट ऑफ टर्न जीएम बना दिया गया।

जानकारों का कहना है कि कोलकाता और हैदराबादी कंपनियां इस जीएम के लिए इसलिए लॉबिंग कर रही हैं, क्योंकि अभी जिस ट्रेन कोलिजन मैनेजमेंट सिस्टम (टीसीएमएस) का ट्रायल चल रहा है, उसको खरीदने के लिए लगभग एक लाख करोड़ रुपये का बजट बनाया गया है – जो कि पूरा होते-होते दो-ढ़ाई लाख करोड़ तक भी जा सकता है – इसकी लॉबिंग के पीछे का गणित यह है कि इसका सबसे ज्यादा फायदा कोलकाता और हैदराबादी कंपनी को ही मिलने वाला है। उनका कहना है कि इतनी बड़ी रकम यह उत्पाद खरीदने के लिए खर्च करने के बजाय सरकार को इस डिवाइस अर्थात सिस्टम का उत्पादन करने वाली कंपनी को ही सीधे खरीद लेना चाहिए, जो कि सबसे सस्ता सौदा साबित होगा।

जानकारों का यह भी कहना है कि जो अधिकारी मॉरली और बेसिकली करप्ट है, जिसका अपना कोई प्रिंसिपल नहीं है, अगर उसे इस तरह राजनीतिक संरक्षण (पॉलिटिकल पैट्रोनेज) मिलेगा, तब व्यवस्था का करेक्टर कैसा होगा? इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। उनका यह भी कहना है कि पूर्व सीआरबी वी. के. यादव, छुट्टी पर भेजे गए एमटीआरएस राहुल जैन, जबरन हटाए गए पीईडी विजिलेंस आर. के. झा और पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल की चौकड़ी ने अच्छी खासी रेल व्यवस्था का जो बंटाधार किया है, उसे अभी नहीं सुधारा गया, तो फिर कभी नहीं सुधारा जा सकेगा।

अब जहां तक वरिष्ठता क्रम में एलिजिबल तीन वरिष्ठ अधिकारियों की बात है, तो जैसा कि ऊपर कहा गया है कि एक जीएम का अपने महाचालू मातहत के जरिए लोकसभा स्पीकर और हरियाणा के सीएम को मिलने जाने की बात तो अब सर्वज्ञात है? बताते हैं कि यह बात जानकारी में आने के बाद रेलमंत्री भी इस पर अपनी नाराजगी जता चुके हैं।

अब जहां तक बात महाचालू और महातिकड़मबाज अधिकारी की है, तो इसके बारे में सब जानते हैं कि यह एग्रीड लिस्ट में होते हुए भी कैसे एक रेल राज्यमंत्री का ओएसडी बन गया था और फिर कैसे पीएमओ के हस्तक्षेप से वहां से धकियाकर बाहर किया गया। ऐसे महाचालबाज अधिकारी का जो सहयोग ले रहा है, जाहिर है वह तो सीआरबी की कुर्सी पर बैठकर कुछ करने वाला नहीं है, मगर यह चालबाज उसके नाम पर बहुत कुछ हासिल करेगा। यह तय है, और इस सब के पीछे यही उसकी रणनीति है।

दूसरे वरिष्ठता क्रम में जो जीएम महोदय हैं, वह सबसे पहले तो एक गवर्नर के दामाद हैं और इसीलिए अरुणेंद्र कुमार एवं आलोक कंसल की श्रेणी में आते हैं, क्योंकि बताते हैं कि उनका भी “अपनी” पर कोई कंट्रोल नहीं है। यह भी बताया जाता है कि इसी “अपनी” के कहने पर फिशिंग के लिए झील के किनारे वह एक कॉटेज बना रहे हैं। यही उनकी परफॉर्मेंस है, जो “अपनी” के कहने पर तय होती है। तथापि गवर्नर का दामाद होने के नाते अच्छी राजनीतिक पकड़ तो है ही, इसलिए लायक हों, न हों, मगर सीआरबी बनने का उनका दावा तो है।

तीसरे वरिष्ठता क्रम में जो महोदय हैं, वह तो रेल भवन में ही बैठे हैं। और चर्चा में इसलिए हैं, क्योंकि बताते हैं कि इन्होंने उड़ीसा के सीएम से अपना जोर लगाया हुआ है? उड़िया लॉबी भी इनके लिए सक्रिय है। जानकारों का कहना है कि भले ही रेलमंत्री बनाने में सीएम/उड़ीसा का बड़ा योगदान रहा है, परंतु केवल उड़िया होने के नाम पर वह किसी अक्षम अधिकारी को रेलमंत्री पर नहीं थोपेंगे। और सब जानते हैं कि इस अधिकारी ने अपनी अब तक की रेल सेवा केवल कोलकाता – भुवनेश्वर फ्रेट कॉरिडोर में ही की है और सब यह भी जानते हैं कि तब आयरन ओर बूम के चलते बोरों में भरकर रुपये ढ़ोये जाते थे। तब 15-20 लाख में एक रेक अलॉटमेंट होता था। आलीशान होटलों और रिसॉर्ट्स में कंपनियों द्वारा आयोजित पार्टियों में बतौर डीआरएम सिरकत होती थी। परंतु परफॉर्मेंस के नाम पर हमेशा शून्य रहे हैं।

इस सबके अलावा सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि सीआरबी से सच्चा-झूठा नोट बनवाकर बजट बनाने के नाम पर जिन्होंने दस महीने का एक्सटेंशन प्राप्त किया है, वह भी सीआरबी बनने की होड़ में शामिल हैं! अब यह सरकार और रेलमंत्री को देखना चाहिए कि जो अपना निर्धारित कर्म सही ढ़ंग से नहीं कर रहा है, जो जीएम न बनते हुए भी एकाउंट्स के कथित एलीट दर्जे के नाम पर बोर्ड मेंबर बना दिया जाता है, उसकी परफॉर्मेंस क्या है और वह सीआरबी बनकर क्या करेगा? इसी से रेलवे की नौकरशाही का चरित्र भी समझा जा सकता है कि यहां हरेक अदना अधिकारी डीआरएम, जीएम, बोर्ड मेंबर और सीआरबी बनना चाहता है, मगर करना कुछ नहीं चाहता! जानकारों का कहना है कि इन महोदय की चल-अचल संपत्ति और निवेश संबंधी गतिविधियों की जांच कराने की भी आवश्यकता है।

उनका कहना है कि ऐसे में सरकार को तय करना है कि उसे परफॉर्मर चाहिए या फिर केवल जी-हजूरी और यस सर-यस सर करने वाला! क्योंकि उपरोक्त चारों अधिकारी या तो “गुड फॉर नथिंग” हैं या नॉन-परफॉर्मर रहे हैं, जबकि इनमें से एक की तो कोई एथिक्स भी नहीं है। उन्होंने कहा कि 2019-20 के बाद एक सीआरबी, एक मेंबर रोलिंग स्टॉक, दो मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक रिटायर होकर चले गए, एक जीएम/आरसीएफ पूरा कार्यकाल बिताकर बोर्ड में पहले डीजी/सेफ्टी, फिर एमटीआरएस बन गया, मगर उसकी अकर्मण्यता और हठधर्मिता के कारण उसे जबरन छुट्टी पर भेजना पड़ा है, परंतु इस दरम्यान एक भी वंदेभारत रेक बाहर नहीं आ पाया। इसी तरह अब वर्तमान सीआरबी भी जा रहे हैं, मगर 44 रेक के टेंडर में से एक भी रेक अब तक बाहर नहीं आया है। और न ही वर्तमान स्थितियों को देखते हुए निकट भविष्य में आने की कोई संभावना दिख रही है।

उनका कहना है कि इस सब में कम से कम तीन साल निकल जाएंगे। तथापि 58 रेक का एक और नया टेंडर किया गया है, जो 5 जनवरी 2022 को खुलने वाला है। यह कितनी बड़ी विसंगति है कि पहले जिसका रिजल्ट अभी तक आया नहीं, परिणाम शून्य है, और जिसमें अनसर्टेनिटी बनी हुई है, इसके बावजूद उससे ज्यादा की संख्या का टेंडर करके केवल नंबर बढ़ाने का काम किया जा रहा है! जबकि विगत इस बात का गवाह है कि पूर्व मंत्री वह सब टेंडर करके निकल गए हैं, अब वे सारे काम वास्तविक धरातल पर हों, या न हों, उनकी बला से, कौन पूछने वाला है! टेंडर जारी कर देने का अर्थ भी अब सबको बखूबी पता है।

ऐसे में अब रेलमंत्री को तय करना है कि उन्हें परफॉर्मर चाहिए या जी-हजूरी और टाइम पास करके निकल जाने वाले विनोद यादव और सुनीत शर्मा जैसे अकर्मण्य अधिकारी! रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव को भी अब तक यह बखूबी समझ में आ गया होगा कि रेलवे के नौकरशाह कितने घाघ हैं, जो सामने “सब कुछ ठीक है और सब हो जाएगा” कहकर चापलूसी करते हैं, मगर वास्तव में करते कुछ नहीं हैं। अतः अब परफॉर्मेंस आधारित सिस्टम लागू करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचा है, क्योंकि प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार 2024 में जनता को जवाब तो प्रधानमंत्री और रेलमंत्री दोनों को ही देना पड़ेगा।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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