#Railway: टेंडर्स में संगठित लूट की गहराई से जांच हो!
जोनल रेलों द्वारा विभिन्न प्रकार के टेंडर्स की शुरुआती लागत में 30 से 50% तक की प्रायोजित बढ़ोत्तरी की गई है, ताकि इस प्रक्रिया में शामिल सभी संबंधित अधिकारियों को कमीशन के रूप में अधिकतम राशि प्राप्त हो सके।
यह तथ्य कई बार “रेलसमाचार” द्वारा समय-समय पर उजागर किया जाता रहा है। इंजीनियरिंग, असेट्स मेंटीनेंस और साफ-सफाई (ईएनएचएम) के टेंडर्स में यह तथ्य साफ जाहिर होता है।
वर्ष 2011 से वर्ष 2021 के बीच किए गए ऐसे सभी टेंडर्स की प्रारम्भिक लागत और कार्य पूरा होने के बाद की फाइनल क्लोजिंग भुगतान राशि का भौतिक सत्यापन अगर सीवीसी अथवा अन्य केंद्रीय जाँच एजेंसियों से करवाया जाए, तो यह तथ्य बहुत स्पष्ट रूप से उजागर हो सकता है और इस तरह सार्वजनिक राजस्व की बकायदे लूट पर लगाम कसी जा सकती है।
इसी प्रकार एडवांस टेंडर और अधिकतम वेरिएशन किए जाने के औचित्य की भी जांच-परख आवश्यक है, क्योंकि एडवांस टेंडर करके और कमीशन खाकर संबंधित अधिकारी तो ट्रांसफर होकर अन्यत्र जाकर बैठ जाते हैं। उनकी जगह आने वाला अधिकारी अपना हिस्सा निकालने के लिए उन कार्यों में फिर से खुरपेंच करता है। इससे कार्य पूरा होने में देरी होती है और उसकी लागत बढ़ती है।
जब पर्याप्त समय होता है तब नए टेंडर के बदले हाई रेट पर सिंगल टेंडर क्यों किए जा रहे हैं? इस तरह स्वीकार किए जाने वाले सिंगल टेंडर्स में अधिकतम वेरिएशन फिर क्यों किया जा रहा है? और इसके साथ-साथ पीवीसी का भी भुगतान क्यों हो रहा है?
कुछ जोनल रेलों के ऐसे डिटेल प्राप्त हुए हैं। जोड़-तोड़ और संगठित लूट की जोनल रेलों और उनके निर्माण संगठनों में चल रही इस समस्त प्रक्रिया की गहराई से जांच होनी चाहिए।
अधिक कमीशन के लिए टेंडर्स की लागत में 30 से 50% तक की प्रायोजित वृद्धि हुई है
— RAILWHISPERS (@Railwhispers) September 18, 2021
2011-21 के बीच के सभी टेंडर की शुरुआती लागत और कार्य पूरा होने के बाद के क्लोजिंग भुगतान का भौतिक सत्यापन किया जाए
एडवांस टेंडर, वेरिएशन, पीवीसी का भी औचित्य पूछा जाए!@RailMinIndia@CVCIndia@PMOIndia
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