कसौटी पर है रेलमंत्री की प्रशासनिक क्षमता

रेलमंत्री को रेलवे में प्रशासनिक पकड़ बनानी है, तो कड़े फैसले लेने होंगे!

रेलवे में सुधार और विकास के लिए व्यवस्था पर पकड़ बनाना और चीजों को अपने नियंत्रण में लाना रेलमंत्री के लिए आवश्यक है। हालांकि रेलमंत्री काफी कुछ करते दिखाई दे रहे हैं। तथापि रेलमंत्री को इसमें परिणामी प्रशासनिक सफलता तब तक हासिल नहीं होगी, जब तक कि वह तमाम चीजों को अपने नियंत्रण में नहीं ले आते हैं।

रेलमंत्री की यह तत्परता देखकर ही बहुत सी चीजें स्वयं सुधरने लगेंगी, तथापि लंबे समय तक एक ही जगह जमे हुए अधिकारियों-कर्मचारियों को दर-बदर किए जाने के प्रति कोई भी छूट नहीं दी जानी चाहिए!

यानि रेल व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए रेलमंत्री को परिणामी अर्थात रिजल्ट ओरियंटेड कड़े फैसले लेने होंगे। अब इसमें और ज्यादा देर नहीं होनी चाहिए, क्योंकि रेलमंत्री को रेल मंत्रालय का पदभार संभाले लगभग दो महीने हो रहे हैं और उनके हनीमून का समय अब बीत चुका है।

इसके लिए रेलमंत्री को चाहिए कि सर्वप्रथम जो लोग लंबे समय से एक ही जगह, एक ही शहर, एक ही रेलवे में डेरा जमाए हुए हैं, उन्हें अविलंब दर-बदर किया जाए। इसमें महिला और पुरुष का लिहाज भी नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उन अधिकारियों का कोई दोष नहीं है जिनके पति या पत्नी सर्विस में नहीं हैं।

पहले उनका स्थानांतरण किया जाए, फिर उनके पति या पत्नी को उनके साथ वहीं स्थानांतरित किया जाए। अगर उनमें से एक किसी दूसरे विभाग में कार्यरत है, तो उन्हें अपने पति या पत्नी को अपने साथ उस शहर में स्थानांतरित कराने की जिम्मेदारी उन पर ही छोड़ दी जाए। परंतु किसी को भी अपने पति या पत्नी की आड़ में लंबे समय तक एक ही स्थान पर टिके रहने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।

पिछले काफी समय से हो यह रहा है कि कोई महिला या पुरुष अधिकारी अपने पति या पत्नी के आयकर, सीबीआई, ईडी इत्यादि विभागों में होने की धौंस दिखाकर लंबे समय से ही नहीं, बल्कि रेलवे में जॉइन करने से लेकर एसएजी में पदोन्नति तक एक ही शहर में डेरा डाले हुए है।

तो कोई महिला या पुरुष अधिकारी ने किसी केस के चलते उसकी आड़ में एक ही स्थान पर बने रहने को अपना अधिकार मान लिया है। इसके चलते रेलवे नामक तालाब का पानी भ्रष्टाचार और मनमानी की गंदगी से लबालब हो चुका है। अतः इसकी सफाई अब आवश्यक हो गई है।

अधिकारियों को दर-बदर किए जाने की शुरुआत मेडिकल विभाग यानि डॉक्टरों से की जाए, क्योंकि रेल के डॉक्टर अब डॉक्टर नहीं रह गए हैं, बल्कि वह ऑफीसर हो गए हैं। वह अब डॉक्टरी नहीं, अफसरी करने लगे हैं। जहां जॉइन किए थे, 20-25-30 सालों से वहीं जमे हुए हैं। इसके साथ ही 62 के बाद उन्हें स्थाई रूप से रिटायर किया जाए, क्योंकि इसके बाद वह कोई काम नहीं कर रहे हैं। मरीज देखने में उन्हें शर्म आ रही है। सबसे ज्यादा मनमानी, निरंकुशता और भ्रष्टाचार भी इन्हीं में व्याप्त है।

अधिकारियों के आवधिक स्थानांतरण – पीरियोडिकल ट्रांसफर – की नीति पर अमल करते समय यह भी अवश्य ध्यान में रखा जाए कि ग्रुप ‘बी’ के जिन अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ मिल चुका है, उनका इंटर जोनल ट्रांसफर तुरंत सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, ग्रुप ‘सी’ से ग्रुप ‘बी’ में सेलेक्ट होने पर किसी भी पदोन्नत अधिकारी की पोस्टिंग उस डिवीजन में नहीं होनी चाहिए, जहां वह रेल में जॉइन करने से लेकर अब तक पदस्थ रहा है।

इसके साथ ही ग्रुप ‘बी’ सेलेक्शन की संपूर्ण प्रक्रिया को या तो पुनः रेलवे बोर्ड स्तर पर केंद्रीयकृत किया जाए, या फिर यह समस्त प्रक्रिया यूपीएससी को सौंपी जाए, क्योंकि इसमें बहुत बड़ा भ्रष्टाचार सन्निहित है।

भ्रष्टाचार के इस तालाब में यूनियन पदाधिकारियों द्वारा पैदा की गई गंदगी भी शामिल है। इसके लिए सबसे पहले उनके तथाकथित शाखा क्षेत्र (जूरिस्डिक्शन) को समाप्त किया जाए। अगर यह संभव न हो, तो इसे पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी आड़ में यह पदाधिकारी लंबे समय तक एक ही जगह जमे रहकर न तो रेल का कोई काम करते हैं, और न ही दूसरों को करने देते हैं।

इसके अलावा इन अकर्मण्य यूनियन पदाधिकारियों के लंबे समय तक एक ही जगह बने रहने के चलते रेल में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो रहा है। सभी यूनियन पदाधिकारियों के लिए सर्वप्रथम रेल कार्य अनिवार्य होना चाहिए, और ड्यूटी के बाद ही उन्हें यूनियन गतिविधि करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

इसके साथ-साथ रेलमंत्री को चाहिए कि उनके पदभार संभालने से एक-दो महीने पहले जिन अधिकारियों ने भुवन सोरेन के माध्यम से कमाऊ पोस्टिंग हासिल की थी, उन सबकी योग्यता, निष्ठा और पृष्ठभूमि की समीक्षा की जाए। इसके साथ यह भी देखा जाए कि वहां उनके द्वारा पोस्टिंग लिए जाने का असली उद्देश्य क्या रहा है?

अगर रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव यह सब करने के लिए तत्पर होते हैं, तभी वह रेल व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बना सकते हैं। तभी उनका और प्रधानमंत्री का रेल के विकास का सपना पूरा हो सकता है। उनकी यह तत्परता देखकर ही बहुत सी चीजें स्वयं सुधरने लगेंगी। तथापि लंबे समय तक एक ही जगह जमे हुए लोगों को दर-बदर किए जाने के प्रति कोई छूट नहीं दी जानी चाहिए। रेलमंत्री की प्रशासनिक क्षमता अब कसौटी पर है! क्रमशः

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