स्टाफ बेनिफिट फंड: अमानत में खयानत!

पत्नी के शौक पूरे करने के लिए लुक-ऑफ्टर जीएम ने हड़पे सीएसबीएफ से ₹8 लाख!

Minutes – para-14: CSBF Committee was informed of GM instructions for grant of Rs. 8,00,000/- to CRWWO from the SBF under the head of Women Empowerment.

मध्य रेलवे में तथाकथित वूमेन एम्पावरमेंट के नाम पर सेंट्रल स्टाफ बेनिफिट फंड (सीएसबीएफ) से ₹8 लाख हड़पे जाने का एक गंभीर मामला प्रकाश में आया है। कर्मचारी कल्याण के काम आने वाले इस रिजर्व फंड से उक्त राशि मध्य रेलवे महिला कल्याण संगठन (सीआरडब्ल्यूडब्ल्यूओ) के खाते में ट्रांसफर की गई। यह काम तत्कालीन लुक-ऑफ्टर जीएम के आदेश पर किया गया। तथापि इस अमानत में खयानत के लिए इसके सभी स्टेक होल्डर और को-चेयरपर्सन भी जिम्मेदार हैं।

यह काम 7 जुलाई 2021 को सीएसबीएफ की एक स्पेशल मीटिंग बुलाकर किया गया। मेंबर सेक्रेटरी, सीएसबीएफ एवं एसपीओ/आईआर/मुख्यालय, मध्य रेलवे द्वारा 12 जुलाई 2021 को जारी उक्त मीटिंग की मिनिट्स “रेलव्हिश्पर्स” के पास उपलब्ध हैं। इसके पैरा-14 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि जीएम के निर्देश पर ₹8 लाख की राशि वूमेन एम्पावरमेंट के लिए सीआरडब्ल्यूडब्ल्यूओ को एसबीएफ से स्वीकृति देनी है। अर्थात उक्त राशि एसबीएफ से सीआरडब्ल्यूडब्ल्यूओ के खाते में ट्रांसफर करनी है।

उक्त स्पेशल मीटिंग में मध्य रेलवे के मान्यताप्राप्त संगठनों के सभी नामांकित प्रतिनिधि (स्टेकहोल्डर्स) उपस्थित थे। बताते हैं कि सर्वप्रथम सभी प्रतिनिधियों ने इस प्रस्ताव का खुलकर विरोध किया। समुदाय विशेष पर मान्यताप्राप्त दो संगठनों का तो वैसे भी ऐसे मामलों में बहुत ज्यादा दखल नहीं होता, परंतु जो सर्वसामान्य मान्यताप्राप्त दोनों संगठनों में से एक ने न केवल दूसरों के साथ फोरम में विरोध किया, बल्कि लिखित में भी अपना विरोध दर्ज कराया था।

तथापि बाद में उन्हें जीएम की तरफ से क्या कहा गया, यह तो पता नहीं, परंतु दोनों ने बाद में इस पर अपनी सहमति दे दी! अब उनका इसमें क्या स्वार्थ था? या फिर उन्होंने कोई अपना हितसाधन किया अथवा उन्हें जीएम की तरफ से कोई धमकी मिली? यह वह स्पष्ट नहीं बता रहे हैं। पर यह अवश्य मान रहे हैं कि यह जो भी हुआ है, वह गलत हुआ है। यह बात सही है।

एक तरफ सभी अधिकारी इस कृत्य को अनुचित बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ यह भी कह रहे हैं कि जब घर का मुखिया ही लूट करने का निर्देश/आदेश दे रहा हो, तब कोई क्या कर सकता है! वहीं कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि “बीवी के शौक पूरे करने के लिए उसके सामने एक मजबूर पति (जीएम) आखिर अपने अधिकार का दुरुपयोग करने के अलावा और क्या कर सकता है!”

तथापि इन अधिकारियों का यह भी मानना है कि रेलवे बोर्ड द्वारा इस पूरे मामले की जांच की जाए और सभी संबंधितों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने अपने दायित्व का उचित निर्वाह नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि, “इसके साथ ही जीएम के दौरों की भी जांच होनी चाहिए और इन दौरों का औचित्य भी साबित किया जाना चाहिए कि इन दौरों से रेल व्यवस्था में कितना सुधार हुआ और व्यवस्था के हित में यह दौरे कितने आवश्यक एवं लाभकारी थे!”

इसके अलावा लुक-ऑफ्टर पीरियड में इस कथित अवैध महिला कल्याण संगठन द्वारा किए गए कार्यों की भी विस्तृत छानबीन होनी चाहिए कि उन कार्यों का औचित्य क्या था और रेल व्यवस्था के लिए वह किस तरह लाभकारी साबित हुए? यह जांच मध्य एवं पश्चिम, दोनों रेलों में होनी चाहिए। अन्यथा मुंहजोर पत्नी के खब्ती शौक पूरे करने के लिए जीएम द्वारा अपने समस्त सबॉर्डिनेट अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अनावश्यक रूप से परेशान करने तथा अनुत्पादक कार्यों में उनका दुरुपयोग करने की एक गलत परंपरा बन जाएगी। …क्रमशः

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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