टिकट चेकिंग स्टाफ की अंधेरगर्दी, मुफ्त की सैलरी, प्रमोशन और टीए का खेल

रेल में लगभग सभी जगह चल रहा है यह खेल

लुधियाना के एक सीआईटी इंचार्ज के एक सोशल मीडिया ग्रुप में डाली गई ऑडियो “रेलसमाचार” को मिली है। इसे ध्यान से सुनने पर जो बात कही जा रही है उसका पूरा निष्कर्ष इस प्रकार है –

लुधियाना स्टेशन पर टिकट चेकिंग ब्रांच का ऐसा बहुत सा स्टाफ है, जो रेलवे में जॉइन करने से लेकर सीआईटी का प्रमोशन पाने तक कभी किसी गाड़ी में नहीं चढ़ा। स्टेशन पर ही खड़े-खड़े दो चार गलत तरीके से टिकट बनाई और घर भाग लिया। इसके साथ पूरे दिन का टीए भी क्लेम कर लिया।

अभी तक यही होता आया है, और अभी भी लगातार हो रहा है। अब कुछ फीमेल स्टाफ को दो गाड़ियों में काम करने के लिए लगाया गया है, मगर लेडीज स्टाफ ये कह रहा है कि उन्हें स्लीपर लिंक में काम करना नहीं आता है।

हैरानी की बात ये है कि ये वही स्टाफ है, जो चार-चार प्रमोशन लेकर बिना काम किए मजे से अब तक मुफ्त में सैलरी ले रहा था। अब जब इनको गाड़ियों में डयूटी पर लगाया गया है, तो उनके साथ एक जूनियर स्टाफ उनको काम सिखाने के लिए लगाया गया है, जिनको सीआईटी साहब बता रहे हैं कि आप किसी कोच में वर्क (काम) नहीं करेंगे, आप केवल लेडीज स्टाफ को काम सिखाएंगे।

सवाल ये है कि जब लेडीज स्टाफ को काम करना ही नहीं आता है, तो उनको मुफ्त में सैलरी क्यों दी जा रही थी, दी जा रही है? और उनको इतने सारे प्रमोशन अब तक क्यों और कैसे दिए गए?

क्या जोनल ट्रेनिंग सेंटर (जेडटीसी) का काम अब लोकल लेवल पर होने लगा है? और जो स्टाफ काम सिखाने के नाम पर गाड़ी में भेजा जा रहा है, वह टीए किस बात का क्लेम करेगा?

रेलवे में इतनी ही नहीं, बल्कि इससे भी ज्यादा अंधेरगर्दी लगभग सब जगह ही चल रही है। यह तो मात्र एक छोटा सा उदाहरण है।

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