यूनियन नेता का दिमागी दिवालियापन

जो लोग समाज में जनप्रतिनिधि होने का ढोंग रचते हैं, वे इस तरह की ओछी मानसिकता का प्रदर्शन करें, यह किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है!

उत्तर रेलवे की #बीसीयूनियन अर्थात उत्तरीय रेलवे मजदूर यूनियन (यूआरएमयू) के मंडल सचिव, दिल्ली मंडल के द्वारा गुरुवार, 5 अगस्त 2021 को उत्तर रेलवे, दिल्ली डिवीजन के मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) को लिखा गया पत्र या तो समझ से परे है या फिर मंडल सचिव महोदय ने अपने दिमाग के दिवालियापन का खुला प्रदर्शन किया है।

कोई व्यक्ति थोड़ी सी प्रसिद्धि अथवा खोखली वाहवाही पाने के लिए कितना नीचे गिर सकता है, इस पत्र से स्पष्ट होता है। मजदूर नेताओं का लगातार पतित होते जाना, मजदूर संगठनों का लगातार पतन और मजदूर हितों के मुख्य उद्देश्य से भटकाते हुए अनैतिकता के गर्त में समाते जाना, इनके नेताओं की इसी तरह की कुचेष्टापूर्ण खुराफातों का परिणाम है।

आज वैश्वीकरण के युग में जब सारी दुनिया एक हो रही है, केवल मानव मात्र के लिए सारे कार्य और सारे प्रयास किए जा रहे हैं, दुनिया भर से जाति-वर्ग के भेद की मानसिकता को समाप्त करने पर जोर दिया जा रहा है, तब यूआरएमयू के यह मूढ़धन्य मंडल सचिव महोदय अपनी ओछी मानसिकता और झूठी वाहवाही के लिए मंडल रेल प्रबंधक को पत्र लिखकर क्या बताना चाहते हैं? क्या मंडल रेल प्रबंधक के अधिकार क्षेत्र में कोई राष्ट्रीय छुट्टी घोषित करने का अधिकार है?

वैसे ही #भारत में इतने मुख्य-मुख्य और बड़े त्योहार हैं कि उनकी छुट्टी मैनेज करना ही सरकार के लिए बड़ी मुश्किल हो रही है, तब ये महाशय एक नया पुछल्ला छोड़कर जातीय पक्षपात, सामाजिक भेदभाव और आपसी मनमुटाव को बढ़ावा देने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।

रेलकर्मियों का कहना है कि “ऐसी मूढ़तापूर्ण, ओछी और गिरी हुई मानसिकता वाले नेतृत्व को रेलकर्मियों द्वारा अविलंब सिरे से नकार देना चाहिए। जो लोग समाज में जनप्रतिनिधि होने का ढोंग रचते हैं, वे इस तरह की ओछी मानसिकता का प्रदर्शन करें, यह किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है।”

उनका कहना है कि, “वैसे ही यूनियनों की दुकानें बंद होने के कगार पर हैं और ये महाशय उसमें न केवल आहुति डालने का दुष्टतापूर्ण कार्य कर रहे हैं, बल्कि तिलांजलि देने की तैयारी में भी हैं।”

उत्तर रेलवे के कई रेलकर्मियों का कहना है, “इस अक्ल के दुश्मन को कौन समझाएगा कि यूनियन के पास इतने कार्य हैं, जो कि दिन-रात करोगे, तो भी निपटना संभव नहीं है। या तो यह महाशय यूनियन के प्रति बिल्कुल उदासीन हो चुके हैं, इसीलिए इनके खाली दिमाग में इस तरह की खुराफात सूझ रही है, या फिर यह किसी दूषित मानसिकता के चलते रेलकर्मियों के आपसी सौहार्द्र में पलीता लगाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।”

एक अन्य रेलकर्मी का कहना था कि “दरअसल यूनियनों की स्थापना का उद्देश्य तो लगभग लुप्त हो गया है, क्योंकि अधिकांश यूनियन नेता, श्रमिक हितों के बजाय अपनी स्वार्थसिद्धि में लगे हैं। नतीजा यह है कि मालिक/सरकारें धीरे-धीरे श्रमिक हितों पर कैंची चलाती गईं और ऐसे दुष्ट, ओछे तथाकथित श्रमिक नेता लोग उनके दरबार में झुककर जी-हुजूरी करते हुए निर्णयों पर सहमति की मुहर लगाते रहे। अब जबकि इन नेताओं की किसी बात को लोग मानते ही नहीं, तो समाज में कुछ और नहीं तो यही वैमनस्यता और मूर्खतापूर्ण बातें, जिनका कोई न ओर है, न छोर, रखकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। धिक्कार है ऐसे कपटी लोगों पर!”

बहरहाल, जो भी हो, इन महाशय का यह कु-कृत्य किसी भी स्थिति में रेलकर्मियों सहित जनसामान्य को भी स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यह रेल कर्मचारियों के मनोबल को गिराने वाला कृत्य तो है ही, व्यवस्थागत एवं सामाजिक विखंडन पैदा करने वाला कृत्य भी है। इसके अलावा यह काम यूनियनों के कार्यक्षेत्र में भी नहीं आता है।

#NorthernRailway #URMU #BCUnion