ट्रांसफर के नाम पर रेलवे बोर्ड द्वारा व्यवस्था के साथ किया गया भद्दा मजाक!

रेलवे बोर्ड से 11 अधिकारियों को निकालकर पोस्ट के साथ उत्तर रेलवे में की गई पोस्टिंग

पोस्टिंग का अप्रूवल मंत्री ने दिया पर रेलवे बोर्ड में क्या चल रहा है, क्या रेलमंत्री को पता नहीं?

क्या इसी तरह नौकरशाही की कार्यशैली बदलने और भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में सफल होगी मोदी सरकार?

रेलवे बोर्ड ने सोमवार, 18 नवंबर को 9 एसएजी और एक एचएजी तथा एक एनएफ-एचएजी, कुल 11 वरिष्ठ अधिकारियों को उत्तर रेलवे में भेजकर तथाकथित ट्रांसफर के नाम पर व्यवस्था के साथ बहुत भद्दा मजाक किया है, क्योंकि इन सभी अधिकारियों को उनकी पोस्ट के साथ उत्तर रेलवे यानि दिल्ली में पोस्टिंग दे दी गई है। इनमें पांच अधकारी इंजीनियरिंग से, दो ट्रैफिक से, एक मैकेनिकल से, एक कार्मिक से, एक एसएंडटी और एक आरपीएफ अधिकारी शामिल है।

उल्लेखनीय है कि रेलमंत्री ने रेलवे बोर्ड से अधिकतर अधिकारियों को हटाकर रेल भवन में अधिकारियों का बोझ कम करके उन्हें अन्य जोनल रेलों में पदस्थ करने का आदेश दिया था। परंतु जिस तरह रेल भवन से हटाए गए सभी अधिकारियों को दिल्ली में ही पोस्ट के साथ पदस्थ करके रेलमंत्री के आदेश को रेलवे बोर्ड द्वारा इस तरह धता बताई गई है, इसका अंदाजा शायद किसी को भी नहीं था।

जानकारों का स्पष्ट कहना है कि यह एक तरह की ‘ब्यूरोक्रैटिक जग्लरी’ है, जिससे मंत्री कतई अनजान हैं। हालांकि उनका यह भी कहना था कि इस स्तर के सभी ट्रांसफर मंत्री की अप्रूवल से ही किए जाते हैं, ऐसे में मंत्री को कौन सी ‘ब्यूरोक्रैटिक पट्टी’ पढ़ाई गई है, यह या तो मंत्री जी ही बता सकते हैं, या फिर संबंधित निर्णय लेने वाले बोर्ड के अधिकारी बता सकते हैं।

जबकि कुछ अधिकारियों का कहना है कि रेलवे बोर्ड में ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ और ‘अंधा बांटे रेवड़ी, पुनि-पुनि अपनौ को देय’ जैसी कहावतों पर बखूबी अमल किया जा रहा है। यही वजह है कि उक्त सभी अधिकारियों की सिर्फ कुर्सी बदली गई है, स्थान नहीं! उनका यह भी कहना है कि इस तरह ट्रांसफर के नाम पर न सिर्फ पूरी व्यवस्था की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास किया गया है, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर खुद व्यवस्था (पढ़ें- मंत्री) का ही मजाक बना दिया गया है।

ज्ञातव्य है कि उत्तर रेलवे में पहले से ही लगभग हर कैडर में अतिरिक्त अधिकारी हैं, जिन्हें कथित ट्रेनिंग के नाम पर भेजकर समायोजन किया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार ट्रैफिक/कमर्शियल में पांच, कार्मिक में दो अधिकारी पहले से ही एक्सेस चल रहे हैं, जबकि अन्य विभागों में भी एक-एक, दो-दो अधिकारी एक्सेस हैं। इसके अलावा हाल ही में इलेक्ट्रिकल में एक तथा ट्रैफिक में दो अन्य अधिकारियों की पोस्टिंग और की गई है। अब बोर्ड द्वारा दो ट्रैफिक अधिकारी और भेज दिए गए हैं। ऐसे में इन अधिकारियों को और ऊपर से डंप करके रेलवे बोर्ड ने वास्तव में पूरी व्यवस्था के साथ एक दुष्कर्म जैसे कृत्य को अंजाम दिया है।

बताते हैं कि रेलवे बोर्ड में करीब 15-20 एडीशनल मेंबर्स की पोस्ट्स लंबे समय से रिक्त पड़ी हुई हैं, तथापि उन्हें भरे जाने की कोई चिंता रेलवे बोर्ड अथवा रेलमंत्री को नहीं है। जबकि कैडर रिस्ट्रक्चरिंग होकर अब तक लगभग 8-10 महीने बीत चुके हैं। इसके अलावा विभिन्न कैडर बैचेज की पदोन्नति भी लंबे समय से लंबित है। जहां अन्य कैडर में वर्ष 2001 तक के बैचेज की एसएजी में पदोन्नति हो चुकी है, वहीं ट्रैफिक कैडर के 1999 बैच की एसएजी में पदोन्नति काफी समय से प्रतीक्षित है, जबकि 50 से अधिक पोस्टें ट्रैफिक कैडर में रिक्त पड़ी हुई हैं।

यही नहीं, ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों की पिछले करीब चार-पांच वर्षों से डीपीसी नहीं होने से उनकी भी पदोन्नतियां रुकी पड़ी हैं। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण जनसंपर्क विभाग में कई अधिकारी पिछले 18-19 वर्षों से एक ही पद पर कार्यरत हैं, उन्हें आगे की पदोन्नति नहीं मिल पा रही है, जबकि वे अब तक के लगभग सभी सीआरबी और रेलमंत्री से इसकी गुहार लगा चुके हैं, परंतु सिर्फ उनके प्रचार के बलबूते पिछले पांच-छह साल से रेलवे को हांकने वाले रेलमंत्री और सीआरबी में से किसी ने भी जनसंपर्क अधिकारियों की समस्या का समाधान नहीं किया है।

आखिर रेलवे में यह हो क्या रहा है? पूरी व्यवस्था का मजाक बना दिया गया है! क्या मोदी सरकार इसी तरह व्यवस्था का मजाक बनाकर ब्यूरोक्रैसी की दक्षता एवं कार्यक्षमता बढ़ाने और पीयूष गोयल जैसे सिर्फ बातों के बतासे बनाने वाले मंत्रियों के भरोसे भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में सफल हो पाएगी?