सक्षम डॉक्टरों को ही एक्सटेंशन मिले, डॉ खोरवाल जैसे “मेंटल्स” को नहीं!
“रेलवे का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि यहां शीर्ष पर जो भी आता है, वह पिछले से भी ज्यादा अक्षम और ना-लायक साबित होता है!”
रेल प्रशासन की तमाम कोशिशों के बाद भी कुछ डॉक्टर्स द्वारा व्यवस्था को सुधारने में अपेक्षित सहयोग नहीं किया जा रहा है। इस मामले में खासतौर पर बतौर सीनियर कंसल्टेंट लगे डॉ खोरवाल जैसे सीनियर डॉक्टर अपनी ड्यूटी और कर्तव्य का यथोचित पालन नहीं कर रहे हैं।
कल ऐसा ही एक मामला सामने आया, जिसमें एक रिटायर्ड जीएम, जो अपने अपार्टमेंट में केवल पति-पत्नी ही हैं, ने डॉ खोरवाल को संपर्क करना चाहा। वह सुबह से शाम तक एसएमएस और व्हाट्सएप पर लगातार डॉ खोरवाल से गुहार लगाते रहे कि “उनकी पत्नी कोरोना संक्रमित हो गई है और उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा है। उन्हें कृपया ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मुहैया कराया जाए, अथवा उनको गाइड करें कि क्या करना है!”
उनका एक व्हाट्सएप मैसेज प्राप्त हुआ है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि सीएमडी को निवेदन करने पर उन्हें बताया गया कि डॉ खोरवाल को संपर्क करें। वह लिखते हैं कि मैंने सुबह से शाम तक लगातार डॉ खोरवाल को एसएमएस, व्हाट्सएप मैसेज और फोन करके संपर्क करने की बहुत कोशिश की, परंतु डॉ खोरवाल ने न तो फोन उठाया, और न ही उनके किसी मैसेज का उत्तर दिया। यहां तक कि परिचय देने के बाद भी नहीं!
वह लिखते हैं, अंततः काफी प्रयासों के बाद डॉ खोरवाल ने व्हाट्सएप पर रेस्पांड किया और कहा कि “वह उनकी (मेरी) कॉल रिसीव नहीं करेंगे।”
वह आगे लिखते हैं, क्या कोई इसका अनुमान लगा सकता है कि मेरे जैसे वरिष्ठ नागरिक, जो घर में सिर्फ दो ही पति-पत्नी अकेले रहते हैं और इस महामारी के समय में एक-दूसरे का सहारा हैं, उनकी बात एक रेलवे डॉक्टर सुनने से भी मना कर देता है। ऐसे में हम रेलवे में 40 साल की सेवा करने के बाद आखिर कहां जाएं!
उन्होंने लिखा है कि उन्हें बताया गया कि यह डॉक्टर (डॉ खोरवाल) बतौर सीनियर कंसल्टेंट एक्सटेंशन पर है। यदि एक रिटायर्ड व्यक्ति में एक रिटायर्ड जीएम के लिए भी कोई संवेदना नहीं है, तब हम कहां जाएं!
उन्होंने आगे लिखा है, “मेरा सुझाव है कि एक्सटेंशन सिर्फ सक्षम लोगों को ही दिया जाना चाहिए, डॉ खोरवाल जैसे दिमागी रूप से बीमार लोगों को इस तरह का फेवर नहीं दिया जाना चाहिए।”
वह लिखते हैं कि इस महामारी के दौर में हममें से कोई भी किसी भी समय इसका शिकार हो सकता है। परंतु कोई भी पागल डॉक्टर को यह अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वह समय से पहले हमारी जीवन लीला समाप्त कर दे।
वह लिखते हैं कि, “डॉ खोरवाल ने न सिर्फ बात करने से इंकार कर दिया, बल्कि जब मैंने सुबह से शाम तक लगातार उन्हें फॉलो करते हुए उनसे बहुत विनती की कि मेरी पत्नी की हालत बहुत गंभीर होती जा रही है, तो उन्होंने कहा कि अगर इतनी ही जरूरत है तो स्वयं से ऑक्सीजन सिलेंडर का बंदोबस्त करो। क्या कोई भी व्यक्ति डॉ खोरवाल के इस अमानवीय व्यवहार का समर्थन कर सकता है?”
वह कहते हैं, “इतने वर्षों तक रेलवे में व्यतीत करने के बाद क्या कोई 67 साल की उम्र में, वह भी अपनी कोरोना संक्रमित पत्नी को घर में अकेला बीमार हालत में छोड़कर ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए शहर भर में भटकता फिरेगा? डॉ खोरवाल सिर्फ दिमागी रूप से पागल ही नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक रोगी होने का मामला है।”
देखें, पूर्व जीएम ए.के.वर्मा ने क्या लिखा – उन्हीं के शब्दों में –
My wife is corona positive. I requested CMD as to which doctor I should consult. He said Dr khorwal. I tried to call him from morning to evening but he did not take my call despite introducing my self through SMS and whatsapp.
Finally he said on whatsapp he will not take my call.
Can you imagine senior citizen like us, only two in a house, trying to cure each other in pandemic and Railway doctor refuse to listen to us. Where do we go after spending 40 yrs in Railways.
I am told this doctor is on extension as senior consultant. If a retired person has no feelings for a retired GM where do we go?
We request you to give favour of extension only for deserving people and not for mental reck like khorwal. Please look into it.
Anyone of us can be victim if pandemic any moment but a mental doctor should not be allowed to kill us before time.
Not only he refused to talk though I insisted from morning till evening pleading him to take my call as condition of Mrs Verma was deteriorating but he told me to arrange oxygen cylinder if required. Do you support his stand?
After spending 38 years in Railway we are expected to run around the city at age of 67 years leaving my wife infected by Corina at home alone. Chamcha under you may give a very rosy picture about this mental reck.. Kharwal but he is a psychiatric case.
उपरोक्त मामले में पीसीएमडी/उ.रे. डॉ यादव से बात करने पर उनका कहना था कि असल में मिस्टर वर्मा और डॉ खोरवाल के बीच कुछ गलतफहमी हो गई थी, पर अब सब ठीक हो गया है। उन्होंने यह भी कहा कि तथापि जो हुआ, वह उचित नहीं था। वह तमाम चीजों को ठीक करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कंसल्टिंग कमेटी में कुछ बदलाव किया गया है। उम्मीद है कि अब आगे ऐसा कुछ नहीं होगा और सम्मानित रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारियों-कर्मचारियों सहित किसी भी कार्यरत अधिकारी-कर्मचारी को शिकायत का मौका नहीं मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि फिर भी यदि ऐसा कुछ होता है तो कोई भी कर्मचारी-अधिकारी उन्हें सीधे संपर्क कर सकता है।
उपरोक्त पूरे संदर्भ के मद्देनजर यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि एनआरसीएच में डॉ रुष्मा टंडन के मातहत उनकी ये चांडाल चौकड़ी यथोचित काम नहीं कर रही है। जब जीएम स्तर के अधिकारी की यह दुर्दशा है, तब गैंगमैन या फील्ड स्तर के छोटे कर्मचारियों का तो कोई माई-बाप ही नहीं हो सकता। जानकारों का कहना है कि चीजें तभी ठीक हो सकती हैं जब डॉ रुष्मा टंडन को एनआरसीएच के प्रशासनिक पद से तुरंत हटाया जाए और उनके सहित उनकी पूरी टोली को शीर्ष स्तर से संरक्षण देना बंद किया जाए।
उनका कहना है कि होना तो यह चाहिए था कि इस प्रकरण के सामने आने के तत्काल बाद डॉ खोरवाल को तुरंत बर्खास्त कर दिया जाता अथवा उन्हें फिलहाल तुरंत जबरन छुट्टी पर भेजकर बाकी प्रक्रिया बाद में की जा सकती थी। इससे एक गहरा संदेश सभी संबंधितों को जाता और वे अपनी ड्यूटी एवं कर्तव्य के प्रति लापरवाही बरतने से बाज आते।
उन्होंने कहा कि एक तो सरकार ने डॉक्टरों के रिटायरमेंट की उम्र 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का जो नियम बनाया, वह बिना सोचे-समझे बनाया गया। उसमें भी खाज में कोढ़ यह कर दिया गया कि 62 वर्ष की आयु पार करके डॉक्टरों को क्लीनिकल सेवा में लगाया जाए। माना कि सरकार के उद्देश्य में कोई खोट नहीं थी, परंतु सरकार ने यह कैसे मान लिया कि जो लोग एसएजी मिलने के बाद डॉक्टरी नहीं, सिर्फ अफसरी करने लगते हैं, वह शीर्ष पद से धकियाए जाने के बाद क्लीनिक में बैठकर सर्वसामान्य मरीजों को देखेंगे?
रेलवे में ऐसे ढ़ेरों सीनियर डॉक्टर हैं, जो तथाकथित सीनियर कंसल्टेंट के रूप में लाखों का माहवार वेतन और समस्त सरकारी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं, मगर उनका आउटपुट शून्य है। लगभग यही स्थिति कांट्रैक्ट एवं री-एंगेज्ड वरिष्ठ डॉक्टरों की भी है। वह भी कथित एक-दो घंटे की ड्यूटी बजाकर मुफ्त की तोड़ रहे हैं।
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जहां छह जोनल जीएम के पद खाली पड़े हैं, वहीं रेलवे बोर्ड में डीजी/रेल स्वास्थ्य सेवा सहित डीजी/पर्सनल, डीजी/एसएंडटी, डीजी/स्टोर्स और कुछ एडीशनल मेंबर्स के भी पद खाली पड़े हैं। जानकारों का कहना है कि इस महामारी के समय में भी उपरोक्त पदों का महीनों खाली पड़ा रहना यह दर्शाता है कि वर्तमान सीआरबी सीईओ रेलवे बोर्ड कोई भी निर्णय सही समय पर लेने में सक्षम नहीं हैं। उनका कहना है कि रेलवे का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य ही है कि यहां शीर्ष पर जो भी आता है, वह पिछले से भी ज्यादा अक्षम और ना-लायक साबित होता है।
रेलवे बोर्ड ने 4 जनवरी 2021 को जो आर्डर निकाला था, उस पर यथा-निर्देशित अमल किया जा रहा है या नहीं, यह अवश्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके अलावा रेल प्रशासन को एक बार पुनः वर्तमान में कार्यरत ऐसे सभी कथित सीनियर कंसल्टेंट्स की वर्किंग की समीक्षा करवानी चाहिए कि क्लीनिकल पोस्टिंग में आने के बाद से अब तक उन्होंने कितने मरीजों को अपनी सेवाएं दीं? नया क्या किया? इसकी फीडबैक वहां कार्यरत पैरामेडिकल स्टाफ से ली जानी चाहिए। इसके बाद यदि वे सक्षम पाए जाते हैं, तो ही उनकी सेवाएं जारी रखी जाएं, अन्यथा उन्हें तुरंत घर भेजा जाए!
A good decision taken by MR with the advice of new Ch/CEO/RB
— KANAFOOSI.COM (@kanafoosi) January 8, 2021
Salary of Drs who hv opted to serve on clinical posts will b charged against existing vacancies in lower grade & also that there shall b vertical floating of posts which however shall be Ltd upto 5% of total cadre posts pic.twitter.com/M6FB2cCiVE
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