पिछले साल के मुकाबले रेलवे को यात्री किराए में हुआ 71.03% का भारी घाटा, माल ढुलाई से घाटे की पूर्ति करने का दावा

कोरोना महामारी और रेल प्रशासन की कु-नीतियों के चलते हुआ रेलवे का बंटाधार, खर्च पर नहीं कोई अंकुश, अधिकारी निरंकुश, समय पर निर्णय क्षमता का अभाव, मंत्री को किया जा रहा दिग्भ्रमित

भारतीय रेल को कोविड-19 महामारी के चलते चालू वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान आय के मामले में भारी झटका लगा है। कोरोना संकट के दौरान ट्रेन परिचालन पर लगाई गई रोक के कारण यात्री किराये से होने वाली आय में रेलवे को 38,017 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। हालांकि, आम लोगों की परेशानियों को ध्‍यान में रखकर चलाई गईं श्रमिक विशेष रेलगाड़ियों से घाटे की कुछ भरपाई हुई है।

रेलवे ने कोरोना संकट के बीच माल ढुलाई के नए तरीकों को अपनाया। ऐसा बताया गया है कि इससे रेलवे का माल ढुलाई से राजस्व पिछले साल की अपेक्षा बढ़ा है। रेलवे ने नियमित पैसेंजर ट्रेनों का परिचालन अब तक पूर्ववत शुरू नहीं किया है, लेकिन अब उसका ध्यान माल ढुलाई से अपेक्षित राजस्व की पूर्ति करने पर है।

रेलवे माल ढुलाई से होने वाली आय में 22 मार्च 2021 तक वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले 1,868 करोड़ रुपये की वृद्धि हासिल की है। हालांकि यह मात्र 2% की वृद्धि है, लेकिन इससे कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन की समस्या से उबरने में रेलवे को काफी मदद मिली है।

रेलवे को यात्री आय में वित्त वर्ष 20019-20 के दौरान कोरोना महामारी के चलते भारी घाटा हुआ है। वित्त वर्ष 20019-20 में यात्री किराये से ₹53,525.57 करोड़ की आमदनी हुई, जो चालू वित्त वर्ष में घटकर ₹15,507.68 करोड़ रह गई है।

हालांकि रेलवे ने इस घाटे की कुछ हद तक भरपाई माल ढुलाई से होने वाली आय से कर लेने का दावा किया है। तथापि रेलवे की यात्री आय पिछले साल के मुकाबले 71.03% कम है।

रेलवे द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 के बीच यात्री किराए से 12,409.49 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ, जबकि इसके पिछले साल समान अवधि में यह राशि 48,809.40 करोड़ रुपये थी।

रेलवे ने प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की शुरुआत की थी। ज्ञातव्य है कि 1 मई से 30 अगस्त 2020 के बीच रेलवे ने 4000 श्रमिक विशेष ट्रेनों का परिचालन करके 23 राज्यों से करीब 63.15 लाख श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया था।

हालांकि जानकारों का मानना है कि रेलवे द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता है, मगर यह तो सर्वविदित है कि रेल प्रशासन और सरकार की उठल्लू नीतियों के चलते रेलवे जैसा एक संगठित क्षेत्र लगभग पूरी तरह से बरबादी के कगार पर पहुंच चुका है। इसके बावजूद सरकार अब तक पूर्ववत रेल परिचालन शुरू करने में न जाने क्यों हीलाहवाली कर रही है!

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