#DRM का #Power बढ़ाने का नतीजा

निरीक्षण के नाम पर डीआरएम/फिरोजपुर लाव-लश्कर के साथ कश्मीर में मनाने गए नए साल की छुट्टियां

सामान ढ़ोने और बच्चों को उठाने के लिए कुली के रूप में इस्तेमाल करने हेतु स्काउट एंड गाइड तथा टिकट चेकिंग कर्मियों को भी साथ लेकर गए

रिव्यू मीटिंग और निरीक्षण के नाम पर, लगभग सभी ब्रांच अफसरों और उनके बीवी-बच्चों सहित, सरकारी खर्च पर एयर ट्रेवल, और पूरे एक हफ्ते तक ऑन-ड्यूटी कश्मीर में पिकनिक तथा नए साल का जश्न मनाने 30 दिसंबर को गए डीआरएम/फिरोजपुर को 3 जनवरी को मुख्यालय फिरोजपुर वापस लौटना था, और 4 जनवरी को कार्यालय में होना था, परंतु कश्मीर में भारी बर्फबारी के चलते वह सबके साथ अब तक वहीं फंसे हुए हैं तथा डिवीजन का कामकाज भगवान भरोसे चल रहा है।

पता चला है कि इस कथित रिव्यू मीटिंग के नाम पर कश्मीर जाने से पहले अपने कार्यालय अथवा बंगले में ही बैठकर खुद का फिटनेस सर्टिफिकेट मांगने वाले डीआरएम/फिरोजपुर ने हाल ही में आए नए सीनियर डीपीओ को कोरंटीन करवाकर 28 दिसंबर को स्पेयर हो चुके पूर्व सीनियर डीपीओ को भी अनधिकृत रूप से इस मौज-मस्ती में शामिल किया है।

बताते हैं कि असल में इस पूरे तथाकथित निरीक्षण कार्यक्रम के पीछे इसी पूर्व सीनियर डीपीओ का तिकड़मी दिमाग था। अब वहां उत्तर रेलवे कन्स्ट्रक्शन के आफिसर्स रेस्ट हाउस में बैठकर बर्फ में सब ठिठुर रहे हैं।

जहां रेलमंत्री और चेयरमैन/सीईओ सहित सभी जोनल जीएम ऐसी तमाम रिव्यू मीटिंग्स ऑनलाइन कर रहे हैं, वहीं डीआरएम/फिरोजपुर यह कथित रिव्यू मीटिंग करने कश्मीर की ठंडी वादियों में गए हैं।

कमाल यह है कि सामान ढ़ोने और बच्चों को कंधों पर उठाने के लिए करीब 30-35 स्काउट्स एंड गाइड्स तथा टिकट चेकिंग कर्मियों को भी कुली के तौर पर इस्तेमाल करने हेतु एक बस में भरकर डीआरएम साहब पूरे नवाबी ठाठ एवं राजाशाही दर्शाते हुए अपने साथ ले गए हैैं

अतः उनसे इस बारे में अवश्य जवाब-तलब किया जाना चाहिए कि वहां यह मीटिंग करने से वास्तव में क्या हासिल होना था, जो मंडल मुख्यालय में बैठकर नहीं हासिल हो सकता था? जबकि इसका समय और अवसर दोनों से ही यह साफ साबित हो रहा है कि इस मीटिंग के बहाने उनका उद्देश्य सिर्फ मौज-मस्ती करने और करवाने का ही था।

एक तरफ रेलवे की आर्थिक स्थिति खराब होने का रोना रोया जा रहा है, तो दूसरी तरफ डीआरएम स्तर पर अनाप-शनाप अधिकार (पावर) बढ़ा दिए जाने से न सिर्फ उनका भारी दुरुपयोग किया जा रहा है, बल्कि बोगस निरीक्षण कार्यक्रमों के नाम पर कुछ अधिकारियों द्वारा रेल राजस्व को बड़े पैमाने पर चूना भी लगाया जा रहा है।

रेलवे में डीआरएम और ब्रांच अधिकारियों के स्तर पर भ्रष्टाचार पर कोई लगाम नहीं लग पा रही है। यदि बात सिर्फ डीआरएम/फिरोजपुर की ही की जाए, तो उनके कार्यकाल में फिरोजपुर मंडल के केवल सुल्तानपुर लोधी रेलवे स्टेशन के नव-निर्माण में हुए भयानक भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच करा ली जाए, तो इसकी सारी कलई खुल जाएगी।

बाकी उनके कार्यकाल में मंडल में हुए अन्य सिविल वर्क्स और विभागों के टेंडर्स की तो बात बाद में आएगी। इसके अलावा उगाही के एकमात्र उद्देश्य को ध्यान में रखकर संबंधित ब्रांच अफसरों को बायपास करके कर्मचारियों एवं सुपरवाइजरों के ट्रांसफर की गिनती भी बाद में कर ली जाए।

उनके साथ काम कर चुके कुछ कांट्रेक्टरों का कहना है कि वैसे तो यह अधिकारी हमेशा घटिया हरकतों के लिए जाना जाता रहा है, परंतु यह बात सही है कि जो उन्हें बारिश में टेंट लगाकर काम करने को कहता था, वह अपनी तनख़्वाह से अपने बीवी-बच्चों को पालने के बजाय हमेशा नंबर-2 की काली कमाई के लिए रेलवे की नौकरी कर रहा है।

इन कांट्रेक्टरों का तो यह भी कहना है कि ब्रांच अफसर से ऊपर के कमोबेस सभी रेल अधिकारियों की आय की विजिलेंस जांच होनी चाहिए और उसी डिवीजन के कम से कम दस ठेकेदारों से उनकी एपीएआर लिखवाने के साथ ही उनके पूरे चरित्र का ऑडिट करवाया जाना चाहिए।

अतः नए सीआरबी/सीईओ/रेलवे बोर्ड सुनीत शर्मा से जनता की यह अपेक्षा है कि उसकी गाढ़ी कमाई से प्रदत्त राजस्व का इस तरह हो रहा अपव्यय कड़ाई से रोका जाए।

श्री शर्मा से जनसामान्य की यह भी अपेक्षा है कि या तो डीआरएम्स के अधिकार कम की जाएं, या फिर उनके प्रत्येक कार्यक्रम अथवा मूवमेंट की पूर्व सेंक्शन पहले की ही भांति जीएम/मुख्यालय से लिए जाने की पूर्व व्यवस्था बहाल की जाए।

इसके साथ ही मंडलों में या तो एडीआरएम के पद कम/पूर्ववत किए जाएं, या फिर इन पदों की पूरी व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त करके सभी ब्रांच अफसरों के पद एसएजी में अपग्रेड कर दिए जाएं।

अपेक्षा यह भी है कि डीआरएम से सीधे जीएम के लिए इम्पैनल्मेंट किए जाने की व्यवस्था बनाई जाए तथा सबसे उत्कृष्ट कार्य करने वाले डीआरएम को सीधे जीएम बनाने की नई परम्परा स्थापित की जानी चाहिए।

इसके साथ ही सिर्फ कागजी सालाना कार्य संपादन रिपोर्ट (एपीएआर) पर ही नहीं, बल्कि इसके साथ ही जनसामान्य के बीच बनी और चर्चित संबंधित अधिकारी की छवि को ध्यान में रखकर उच्च पद पर उसकी पदोन्नति का आकलन किए जाने की नई प्रक्रिया तय की जाए। तभी शायद रेल का कुछ भला हो सकता है।

क्रमशः डीजी/एचआर : ऐसी धांधली सिर्फ रेलवे में ही हो सकती है!

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