हर ट्रेन की यही कहानी, टूटे फ्लश – बेसिन में पानी!

खड़गपुर : हम भारतीयों की किस्मत में ही शायद सही – सलामत यात्रा का योग ही नहीं लिखा है। किसी सफर में सब कुछ सामान्य नजर आए तो हैरानी होती है। कोरोना काल में उत्तर प्रदेश से मेरी वापसी यात्रा का अनुभव कुछ ऐसा ही रहा।

कई मामलों में नए अनुभव के बावजूद चिर – परिचित असुविधाओं के स्थाई तौर पर नजर आने से मुझे यही लगा कि अपने देश में “हर ट्रेन की यही कहानी, टूटे फ्लश – बेसिन में पानी” वाली सूरत शायद निकट भविष्य में भी बदलने वाली नहीं है।

प्रतापगढ़ से हिजली तक की अपनी यात्रा शुरू करने जब मैं स्टेशन पहुंचा तब स्टेशन के सारे प्लेटफार्म सूने नजर आ रहे थे। ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। अलबत्ता कुछ बंदर धमाचौकड़ी जरूर मचाए हुए थे। कोरोना काल में खाने की कमी से शायद वे भी परेशान थे।

ट्रेन नं. 02876 आनंदविहार – पुरी स्पेशल ट्रेन के लिए स्टेशन पर मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। लेकिन यह क्या, जैसे ही ट्रेन प्लेटफार्म पर प्लेस लगने लगी, पूरे स्टेशन की बिजली गुल हो गई।

अपनी-अपनी सीट तक पहुंचने के लिए यात्री बदहवास इधर-उधर भागने लगे। डिब्बे में पहुंचकर सबसे पहले मैंने पानी चेक किया, जो सही-सलामत मिला। लेकिन बेसिन में उफनता पानी देख मायूसी हुई।

आस-पास का जायजा लेने पर तकरीबन सारे बेसिन इसी हाल में मिले। किसी-किसी में टूटी बोतलें पड़ी थीं। ऐसे में तत्काल एक और तकलीफदेह यात्रा का मुझे अहसास हो गया।

ट्रेन का रूपांतरण एलएचबी कोच में हो जाने से सारी सुविधाएं अत्याधुनिक थीं, लेकिन टॉयलट के भीतर कोई भी फ्लश काम नहीं कर रहा था।

इस बीच ट्रेन भदोही में काफी देर रुकी रही, तो मेरा माथा ठनका। पता लगा ट्रेन करीब आधे घंटे पहले चल रही है। यात्रियों का कहना था कि 75 फीसदी ट्रेनें चल ही नहीं रही हैं। इसी से गाड़ियों को लाइन क्लियर मिल रहा है।

टूटे फ्लश और उफनते बेसिन के मद्देनजर मुझे लगा शायद किसी बड़े स्टेशन पर इसका संज्ञान लिया जाएगा, आखिर कोरोना काल जो है। लेकिन मंजिल पर पहुंचने तक समस्या जस की तस कायम रही।

हिजली पहुंचने में ट्रेन को करीब एक घंटे का विलंब हो गया। तिस पर आउटर पर ट्रेन करीब 25 मिनट तक खड़ी रहकर प्लेटफॉर्म खाली होने का इंतजार ही करती रही। डिब्बों में यात्री और बाहर राहगीर अकुलाते रहे।

मुझे लगा कि समस्या ज्यों की त्यों ही रहनी थी, तो फिर ट्रेनों का ठहराव खड़गपुर ही क्या बुरा था।

बहरहाल ट्रेन हिजली पहुंची और मैं यही सोचता हुआ डिब्बे से उतरकर घर की ओर चल पड़ा कि –

हे भारतीय रेल तेरी यही कहानी, टूटे फ्लश, बेसिन में पानी!

यात्रा वृत्तांत: तारकेश कुमार ओझा, वरिष्ठ पत्रकार