नेता और नायक बनकर देश को नई दिशा देने की जिम्मेदारी सरकार और नेतृत्व की है!

किसान आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रकार की पोस्ट शेयर की जा रही हैं। किसी में किसानों को जिम्मेदार आंदोलन करने के लिए बधाई दी जा रही है, तो किसी में इस आंदोलन की आड़ में नये शाहीनबाग की शुरुआत कहकर देश में एक बार फिर अराजक वातावरण बनाने की बात कही जा रही है। ऐसी ही एक पोस्ट यहां हम अपने पाठकों के लिए शेयर कर रहे हैं, जिसमें देश हित के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से सक्षम नेतृत्व देने की अपील की गई है। -संपादक

यही समय था, जब दिल्ली में पिछले साल “शाहीनबाग” का उदय हुआ था। तब इस उम्मीद में शाहीनबाग से कथित अराजक तत्वों को हटाया नहीं गया था कि कुछ दिनों में ठंड-भूख इत्यादि से घबराकर घेरी गई सड़क छोड़कर कथित प्रदर्शनकारी हट जाएंगे।

परंतु बाद में यह साबित हुआ कि शाहीनबाग वह दास्तां है, जिसे मानव इतिहास में नेतृत्व की अक्षमता, भविष्य के निहितार्थ होने वाली घटनाओं को न आंक पाने की कल्पनाहीनता, साहस की कमी और देशभक्तों के अपमान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।

कल जंतर-मंतर और बुराड़ी में, इन कथित किसानों को जो खालिस्तान जिंदाबाद और प्रधानमंत्री के सीने में गोली मारने के नारे लगा रहे हैं, को स्थान देकर फिर से एक हिमालय सी बड़ी भूल की गई है। टीवी में देखा, पत्थर मारते प्रदर्शनकारी पर बेंत मारने तक की अनुमति नहीं है, दिल्ली पुलिस को!

बुराड़ी में बकायदा दिल्ली की राज्य सरकार द्वारा पंजाब से, हरियाणा से बेहद गलत इरादों के साथ आए इन अराजक तत्वों के लिए रहने, खाने-पीने और रजाई-गद्दों की व्यवस्था की गई है।

केंद्रीय ग्रहमंत्रालय ने अस्थायी खुली जेल बनाने के लिए स्टेडियम को अधिग्रहित करने की कोशिश की, तो राज्य सरकार ने बाकायदा पत्र लिखकर केंद्र को अंगूठा दिखाते हुए मना कर दिया।

जो राज्य सरकार खुद आतंकी और देशद्रोही तत्वों को बढ़ावा देती हो, लगातार देश हितों के विरुद्ध षड्यंत्र करती हो, उन सरकारों के विरुद्ध धारा 356 का उपयोग बनता है, बेशक हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट बाद में राज्य सरकार को फिर से बहाल कर दें।

देश विरोध करते, भिंडरावाले और खालिस्तान का पोस्टर लिए इन फर्जी किसानों में वही सारे चेहरे मौजूद हैं, जो शाहीनबाग, जेएनयू और जामिया में हुल्लड़ के समय मौजूद थे।

जिन तथ्यों और प्रमाणों से पूरी सोशल मीडिया भरी पड़ी है, वह सब केंद्र और राज्य सरकारों को क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं?

दिलचस्प बात यह है कि कश्मीर घाटी के अनेक चेहरे भी इसमें दिख रहे हैं। मस्जिदों में लंगर चलाकर ऐसे तत्वों को खाना खिलाया जा रहा है। सड़क पर खड़े होकर फल बांटने सहित लस्सी भी पिलाई जा रही है।

कोरोना का कहीं किसी को कोई डर नहीं है। जिन्हें इस वक्त पर अपनी सत्ता का इकबाल बुलंद करना चाहिए, वह किंकर्तव्यविमूढ़ हैं, शाहीनबाग की तरह!

यह ध्यान रखिये, देश की देशभक्त जनता, पिछले सात साल से सरकार के पीछे साये की तरह उसकी शुभचिंतक के रूप में खड़ी है। मगर जब यही जनता बार-बार सरकार को आत्मसमर्पण करते देखती है, तब देश उदास होता है, और जनता हतोत्साहित होती है।

अतः देश की जनता सरकार से चाहती है कि वह बहुमत का सम्मान करे, चौकीदार तो बेशक बनी रहे, मगर नेता और नायक बनकर देश को नई दिशा, नई राह दिखाना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है।

एक अच्छी परम्परा शुरू करने का यह सही समय है, जो अब तक सिवाय जुमलेबाजी के कहीं नजर नहीं आई है।

साभार: सोशल मीडिया