दिल्ली का प्रदूषण: क्यों न पूरा देश इसके लिए मातम मनाए!

जब सारे बकलोल दिल्ली में इकट्ठे होकर अपनी गंदी सोच, गंदी राजनीति और छद्म प्रलाप करें!

और इस सब के लिए किसानों को जिम्मेदार ठहराएं!

तब मरेंगे तो दोनों ही..

दिल्ली वाले मरेंगे इन बकलोलों की बकलोली से.. और किसान मरेगा इनके कुकर्मों की बदौलत भुखमरी से!

होली-दीवाली के समय किया जाने वाला मिथ्या प्रलाप यह नेता खुद के कुकर्मों से फैलाए गए प्रदूषण का ठीकरा हर साल उन किसानों के मत्थे फोड़ते हैं जो मानव स्वास्थ्य और वातावरण के लिए हानिकर कीड़ों-मकोड़ों को मारने और राख रूपी असली पोटाश खाद के लिए पराली जलाकर भूमि के उपजाऊपन को पुनर्स्थापित करते हैं।

इससे प्रदूषण नहीं फैलता, अपितु वातावरण में मौजूद विषैले और नुकसानदेह तत्व नष्ट होते हैं। वातावरण साफ होता है।

सदियों से जांची-परखी यह पद्धति किसानों और ग्रामीण समाज द्वारा अपनाई जाती रही है तथा इसके शास्त्र-संगत वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।

यदि देश की जनता अब भी सावधान नहीं हुई, तो ये छद्म, स्वार्थी नेता इस देश और समस्त मानव सभ्यता को शीघ्र ही नेस्तनाबूद कर देंगे!

तथाकथित पढ़े-लिखे दिल्ली के बुद्धिजीवियों को देश के तमाम लोग सोशल मीडिया पर हार्दिक बधाई दे रहे हैं, क्योंकि उनके बकलोल मुख्यमंत्री ने देश की पहली #रोहिंग्या बस्ती दिल्ली में बसा दी है।

वह यह भी कह रहे हैं कि दिल्ली के इन कथित महान बुद्धिजीवियों के वोटों के सहयोग से ही अभी और अनेकों ऐसी बस्तियां दिल्ली में बसेंगी।

वह यह भी कह रहे हैं कि दिल्ली को कश्मीर बनाने का श्रेय दिल्ली के वोटरों को ही जाता है।

उनका ज्वलंत प्रश्न यह है कि ये सब क्या किसी भीषण प्रदूषण और भविष्य के आसन्न खतरे से कम है?

उनका कहना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री सहित कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों द्वारा टीवी न्यूज चैनलों पर आधे-आधे, एक-एक घंटे के प्रयोजित फीचर चलवाए जा रहे हैं, जिनका करोड़ों में भुगतान जनता के टैक्स से करके जनता को ही छद्म विकास के आसमानी ख्वाब दिखाकर दिग्भ्रमित किया जा रहा है, किसानों और इस देश को सनातन परंपरा से विगलित करके सबके मनों में जहर घोला जा रहा है, ऐसे में यदि समझदार लोग सामने आकर अपनी आवाज बुलंद नहीं करेंगे, तो देश को, इसकी परंपराओं को, सामाजिक संस्कृति और सभ्यता को शीघ्र नष्ट होने से बचा पाना बहुत दुरूह हो जाएगा!