एक विभाग प्रमुख ने रिटायरमेंट पर अपने मातहतों से मांगे महंगे गिफ्ट्स

बताते हैं कि रवींद्र गुप्ता जब जीएम/साउथ सेंट्रल रेलवे थे, तब उन्होंने तो सबको यह ताकीद करा रखी थी कि उन्हें हर मौके, जैसे निरीक्षण आदि अन्य किसी भी समारोह या अवसर पर केवल गिफ्ट वाउचर दिए जाएं। उनके विदाई समारोह में भी गिफ्ट वाउचरों की बहार रही। जिन अफसरों की एसीआर बोर्ड में साथ ले आए थे, उन्हें कहला दिया गया था, अतः उन्होंने सबसे ज्यादा रकम के गिफ्ट वाउचर भेंट किए। यही हाल अरुणेंद्र कुमार का भी था।

कुछ अधिकारी अपने अस्वाभाविक और असामाजिक स्वभाव या व्यवहार से न सिर्फ पूरी अधिकारी बिरादरी को शर्मसार करते हैं, बल्कि खुद के प्रति भी सेवा में रहते और सेवानिवृत्त होते-होते अपने मातहतों के मन में एक गहरी वितृष्णा पैदा कर देते हैं। यह सच है कि भविष्य में ऐसे अधिकारियों को उनके मातहत ऐसा कोई संदर्भ आने पर भद्दी शब्दावली से संबोधित करके याद करते हैं।

ऐसा ही वातावरण आजकल एक जोनल रेलवे में बना हुआ है और मुख्यालय एवं मंडलों के तमाम मातहत बुरी तरह इसलिए उद्विग्न हैं कि इस महीने की अंतिम तारीख (31 अक्टूबर) को रिटायर हो रहे उनके विभाग प्रमुख ने अपने रिटायरमेंट पर उनसे महंगे-महंगे गिफ्ट आइटम्स की डिमांड की है।

जोनल रेलवे अथवा संबंधित अधिकारी का नाम देना इसलिए जरूरी नहीं है, क्योंकि यहां रेलवे को बदनाम करने या किसी अधिकारी को बेइज्जत करने का कोई उद्देश्य निहित नहीं है। उद्देश्य सिर्फ जूनियर्स की समस्या और सीनियर्स की प्रवृत्ति की ओर व्यवस्था एवं प्रशासन का ध्यान आकर्षित करते हुए उस पर यथासंभव अंकुश लगाने का है।

संबंधित जोनल मुख्यालय और उसके सभी पांचों मंडलों के एसएंडटी अधिकारी ये कहते हुए बुरी तरह कुढ़ रहे हैं कि “रिटायर होते-होते भी ऐसे लोग अपना घर भरने और लूट मचाने से बाज नहीं आते, बल्कि रिटायरमेंट नजदीक आते-आते इनकी यह कु-प्रवृत्ति और ज्यादा जोर पकड़ लेती है!”

वह बड़े कटु शब्दों में यह भी कहते हैं कि “हालांकि सभी अधिकारी एक जैसे नहीं होते, पर कुछ तो जरूर होते हैं, जो जीते-जी (सेवा में रहते हुए) तो अपने मातहतों का जीना दूभर करते ही रहते हैं, बल्कि जाते-जाते (रिटायर होने से पहले) मातहतों को किसी न किसी बहाने नोचने-खसोटने से भी बाज नहीं आते!”

उनका कहना है कि “हम सब जूनियर्स अपने सभी सीनियर्स का उचित सम्मान करते हैं। यह हमारे पारिवारिक संस्कारों और कार्यालयीन शिष्टाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। परंतु जब कोई सीनियर मुंह फाड़कर ऐसा बर्ताव करता है, तो उसके प्रति हमारे मन में हमेशा के लिए एक घृणा पैदा हो जाती है।”

ऐसे में वह मंडल संकेत एवं दूरसंचार अभियंता भी बहुत खिन्न हो रहा है जो अब तक विभाग प्रमुख के किचन की हर जरूरत को संभाल रहा था, उसे भी नहीं बख्शा गया है। जबकि वह दूर-दराज से अच्छी-अच्छी देसी अदरक, धनिया, लहसुन, प्याज सहित समस्त राशनिंग आइटम्स की आपूर्ति में पूरे तन-मन-धन से लगा रहता था।

उपरोक्त कथनों से जाहिर है कि संबंधित जोन के सभी एसएंडटी अधिकारी भारी पशोपेश में हैं। ऐसे में जोनल रेल प्रशासन सहित रेलवे बोर्ड स्तर पर भी ऐसे मामलों पर न सिर्फ गहरी नजर रखनी चाहिए, बल्कि अविलंब ध्यान भी देना चाहिए, जिससे मातहतों को ऐसे किसी भी असमंजस से बचाया जा सके।

दरअसल, सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार और मैनपावर के दुरुपयोग का प्रमुख कारण सीनियर्स का जूनियर्स के साथ किया जाने वाला व्यवहार तथा उनका व्यक्तिगत आचरण है। विभाग प्रमुख के पद पर रहते हुए ये लगभग हर एक ट्रांसफर/पोस्टिंग के लिए कुछ न कुछ चाहते हैं, बल्कि वसूलते भी हैं। यही सिलसिला जूनियर्स भी शुरू करते हैं, जो कि फिर सबसे नीचे के कर्मचारी तक चला जाता है।

मैनपावर का दुरुपयोग जब खुद सीनियर्स करते हैं, तो जूनियर्स को रोकने का उनका मुंह नहीं रह जाता। यदि वह एक-दो का दुरुपयोग करते हैं, तो उनके जूनियर्स चार-पांच का करते हैं और फिर यह सिलसिला लगातार लंबा होता जाता है, जिसका कोई अंत नहीं होता। इसका ताजा उदाहरण लखनऊ के उत्तर रेलवे एवं पूर्वोत्तर रेलवे के दोनों मंडलों के सीनियर डीपीओ ने अभी-अभी प्रस्तुत किया है।

बंगला प्यून उर्फ टीएडीके होने के बाद भी कुछ अधिकारियों द्वारा स्किल्ड मैनपावर का घरेलू/व्यक्तिगत कार्यों में दुरुपयोग किए जाने का खामियाजा अब उन सभी अधिकारियों को भुगतना पड़ रहा है, जिनका कोई दोष नहीं था और जो सिर्फ उसी पर निर्भर थे। हालांकि इसमें भी दोष सर्वथा उच्च प्रशासन एवं स्थापित निगरानी व्यवस्था का ही है, जो ऐसी तमाम गतिविधियों को समय रहते रोकने में असफल हो रही है!

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