जबरन थोपी जाने वाली कोई मॉडेलिटी अधिकारियों को स्वीकार्य नहीं

टीएडीके मामला: जो भी प्रक्रिया सुझाई जाए, उसका प्रयोग पहले एक साल तक मंत्री, सीआरबी और बोर्ड मेंबर्स खुद करें!

रेलवे के सभी अधिकारी टीएडीके के मामले में कोई अन्य मॉडेलिटी बनाए जाने अथवा स्वीकार करने से साफ इंकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर सीआरबी या मंत्री द्वारा कोई अन्य मॉडेलिटी जबरन थोपी जाती है, तो इस पर विद्रोह ही होगा।

उनका यह भी कहना है किसी भी अन्य चयन प्रक्रिया से जो भी आएगा वह यूनियन का सदस्य बनकर ही आएगा और कुछ यूनियन पदाधिकारी भी यही चाहते हैं कि उनकी घुसपैठ अधिकारी के घर के अंदरखाने तक हो जाए।

इससे अधिकारियों की निजी और परिवारिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा होना निश्चित है। अतः अन्य कोई कथित मॉडेलिटी मान्य नहीं हो सकती।

अधिकांश अधिकारियों का मानना है कि चूंकि सीआरबी ने फील्ड और रेलवे में न के बराबर काम किया है और एडीआरएम, डीआरएम, जीएम इत्यादि ज्यादा सुरक्षित (प्रोटेक्टेड) माहौल में रहते/काम करते हैं और उस स्तर पर काम को लेकर उनका कुछ भी दांव पर नहीं लगा रहता है, इसीलिए वे टीएडीके पर अपने मातहत जूनियर अधिकारियों की मजबूरी और बौखलाहट को समझ नहीं पा रहे हैं, जबकि वह भी इस दौर से गुजर कर ही वहां तक पहुंचे हैं।

उनका कहना है कि फील्ड में और विभागीय पद (डिपार्टमेंटल पोस्ट) पर काम करने वाले अधिकारियों को रेल चलाने के लिए हर दिन कुछ न कुछ सख्त निर्णय लेने पड़ते हैं। इस तरह वे और उनका परिवार हर तरह से सिस्टम में मौजूद शरारती और आपराधिक तत्वों के लिए आसान टारगेट बने रहते हैं।

वह कहते हैं कि मंत्री और सीआरबी का यह निर्णय अधिकारी को परिवार सहित, सीधे इन तत्वों के ही मुँह में झोंक देने का प्रयास है। ये बात या तो वे समझ ही नहीं रहे हैं, या फिर जानबूझकर न समझने का दिखावा कर रहे हैं।

उन्होंने तल्ख लहजे में आगे कहा कि मंत्री को याद होना चाहिए कि लखनऊ के अधिवेशन में मंत्री और सुरक्षा के तमाम कवच होने के बावजूद वहां उनकी क्या गति हुई थी? कैसे लंगोट उठाकर उन्हें वहां से भागना पड़ा था? क्या मंत्री जी वह सब परिदृश्य भुला बैठे हैं! यदि ऐसा है तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि कोई पार्टी जनता के समर्थन से सत्ता हासिल करती है, यूनियनों की बदौलत नहीं।

वह कहते हैं कि यह पहले रेलमंत्री हैं, जो रेल से नहीं, बल्कि चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं, इसलिए इनको अंदाजा ही नहीं है कि घर से लेकर जहां तक रेल और रेल पटरी जाती है, वहां तक यह खतरा रेल हित में निर्णय लेकर ट्रेन चलाने वाले अधिकारियों और उनके परिवार का पीछा करता रहता है और इसमें सपोर्ट के नाम पर उनके साथ सिर्फ एक टीएडीके ही होता है, क्योंकि वह उसका जांचा-परखा होता है, उसके परिवार के विषय में भी उसको रखने से पहले संबंधित अधिकारी बखूबी आश्वस्त हो लेता है, इसलिए वह 24/48 घंटे बाहर रहकर भी घर-परिवार की सुरक्षा और जरूरतों के बारे में आश्वस्त रहता है।

लेकिन कल्पना करें कि जब यह टीएडीके दूसरे का आदमी होगा, या यूनियन का सदस्य होगा, तो अधिकारी के हर मूवमेंट से लेकर उसके बच्चों, पत्नी आदि सबकी पूर्व सूचना देकर अधिकारी को निजी या ऑफीसियल मूवमेंट के दौरान खतरे में डाल सकता है, बच्चों का अपहरण करवा सकता है।

इससे अधिकारी और उसके परिवार की गोपनीयता तो खत्म होगी ही, जबकि टीएडीके होने के कारण वह जो भी बोलेगा, कहेगा, उसे ही बाहर वाले “ऑथेंटिक” मानेंगे। इसके अलावा इसका उपयोग गलत और आपराधिक किस्म के जो लोग सिस्टम में हैं, खूब करेंगें, क्योंकि बाकी किसी भी तरह से चयनित टीएडीके की निष्ठा कतई उस अधिकारी के साथ नहीं होगी, जिसके साथ वह लगेगा।

इन रेल अधिकारियों ने सीआरबी और रेलमंत्री से अनुरोध करते हुए कहा कि जो भी प्रक्रिया उनके दिमाग में हो, उसका प्रयोग पहले अपने ऊपर एक साल कर लें, उसके बाद भी यदि उन्हें लगे कि वह ठीक है/सही है, तो फिर सबके ऊपर उसे लागू कर दें, तब उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी।

इन अधिकारियों ने इस मौके पर अदम गोंडवी की एक नज्म भी रेलमंत्री को समर्पित किया-

आंख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे,

अपने शाहे वक्त का यूं मर्तबा आला रहे ।

तालिबे शोहरत है कैसे भी मिले मिलती रहे,

आये दिन अखबार में प्रतिभूति घोटाला रहे।

एक नेता को दुनिया में अदम क्या चाहिए,

चार छह चमचे रहें माइक रहे माला रहे ।

हालांकि यह अंतिम पंक्ति तब के लिए सही थी, जब अदम गोंडवी ने इसे लिखा था, और तब “चार्टर्ड प्लेन” वाले कॉर्पोरेट स्टाइल के मंत्री नहीं हुआ करते थे, जो अपने लिए तो कॉर्पोरेट स्टाइल में हर चीज चाहते हैं, लेकिन जब कर्मचारियों/अधिकारियों की बारी आती है, तो कॉर्पोरेट की तरह सुविधा देने की जगह उन्हें ठीक मध्यकालीन सामंतों की तरह हिकारत से गुलामों जैसा ट्रीट करते हैं अथवा ट्रीट करने लगते हैं।

यह बात भी उभरकर सामने आ रही है कि यूनियनें भले ही खुलेआम जाहिर न कर रही हों, मगर उनकी भी यह अंदरूनी ख्वाहिश अवश्य है कि “लारजेस” जैसी अवैधानिक व्यवस्था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, को किसी अन्य स्वरूप में पुनर्स्थापित कराने की उनकी पुरजोर कोशिशों के आड़े आ रहे अधिकारियों को इस टीएडीके के बहाने ब्लैकमेल किया जाए।

इसका एक उदाहरण तब सामने आया जब कल 12 अगस्त को “कानाफूसी.कॉम पर “रेलवे को बदनाम करने के पीछे क्या है रेलमंत्री और सीआरबी की मंशा? शीर्षक से प्रकाशित खबर पर सत्ताधारी पार्टी से जुड़े एक अनाम संगठन के तथाकथित राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय ने फोन करके ज्ञान देने का प्रयास किया। हालांकि उनका यह विषय भी नहीं था।

इससे जाहिर होता है कि यूनियनों की इस विषय पर न सिर्फ भारी दिलचस्पी है, बल्कि पर्दे के पीछे से वह मंत्री और सीआरबी पर इसके खिलाफ दबाव भी बना रही हैं। इस अनाम यूनियन, जिसकी भारतीय रेल में दस प्रतिशत सदस्यता भी नहीं है, ने तो इस विषय पर मंत्री को दो पत्र भी लिखे हैं। क्रमशः