दो लाख करोड़ का पैकेज और कोरोना

भारत में आदमी बीमार कम है, उसका दिमाग ज्यादा बीमार है। जी हां, कोरोना नामक यह बीमारी मौका देखकर आई है, यकीन नहीं आता, तो देखिए जब से कोरोना आया है, तब से दूसरी बीमारियां गायब हो गई हैं। घबराहट में डॉक्टरों ने अपने नर्सिंग होम बंद कर दिए, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा, आदमी जिंदा रहा, क्या इतना काफी नहीं इस सत्यापन के लिए कि बीमारी आदमी के दिमाग में होती है।

भारत का सबसे सुसंगठित लुटेरा तंत्र प्राइवेट अस्पतालों का है। जिन अस्पतालों में बीमारों की भीड़ लगी रहती थी, उनके महीनों बंद होने पर भी आदमी जिंदा रहा। यानि जबरदस्ती बीमार बनाने का जरिया हैं प्राइवेट हॉस्पिटल।

डॉक्टरों ने अपने अस्पताल बंद क्यों कर दिए? कोरोना से डरकर? बिल्कुल नहीं? वे इस बात से डरे थे कि इस वैश्विक बीमारी का इलाज बिल्कुल संभव है, और सरकार हम से मुफ्त में इसका इलाज करने को कहेगी। इसीलिए सभी प्राइवेट अस्पताल संचालक खुद से अंडर ग्राउंड उर्फ सेल्फ क्वॉरंटाइन हो गए थे। 14 दिन? नहीं, 21 दिन? नहीं, फिर..

वे सभी तब तक क्वॉरंटाइन रहे, जब तक कि सरकारी मशीनरी ने उनको आश्वस्त नहीं कर दिया कि “भाई हम खुद दो लाख करोड़ लूटने के प्लान में लगे हैं, तो तुमको परोपकार करने को कैसे कह सकते हैं!

पहले तो यह समझ लो कि यह दुनिया की सबसे सस्ते में ठीक होने वाली बीमारी है, जो गर्म पानी पीने, उसके गरारे करने, हल्दी का दूध पीने, अदरक-लहसुन की चटनी खाने, आयुष के द्वारा सुझाया गया काढ़ा पीने से ठीक हो जाती है। इसमें इलाज करने जैसा कुछ नहीं है।

हमको तो पेशेंट को अपना मेहमान बना कर रखना है। वह अपने आप ठीक हो जाएगा तो उसे छोड़ दो और उससे ₹200000 से ₹300000 वसूल लो। इसके लिए लैब, स्कैनिंग सेंटर सभी को अपना हिस्सेदार बनाना लो।

अभी तक स्कैनिंग सेंटर एवं लैब से तुम्हारे पास 40 परसेंट का हिस्सा आता था, अब उल्टा तुमको उन्हें हिस्सा देना होगा। सर्दी, जुखाम, सिरदर्द, बुखार या अन्य किसी भी बीमारी से आए मरीज को कोरोना पॉजिटिव बताओ और उनसे मरीज की हैसियत से भी ज्यादा वसूली करो।”

इतना आश्वासन मिलते ही धड़ाधड़ सारे प्राइवेट अस्पताल खुल गए, जो कल तक कोरोना पेशेंट नहीं ले रहे थे, वे आज केवल और केवल कोरोना पेशेंट ही भर्ती कर रहे हैं। बिना मेहनत बिना इलाज किए 5 से 8 दिन बिस्तर पर सुलाने की 2-3 लाख यानी सेवन स्टार फीस किसे बुरी लगेगी?

अब स्थिति यह बन गई है कि अन्य बीमारी से ग्रसित पेशेंट को कोई भी अस्पताल भर्ती नहीं कर रहा है। बीमार लोग दर-दर भटक रहे हैं। लोग कोविड से नहीं बल्कि डॉक्टर की लापरवाही के चलते इलाज न मिलने के कारण अन्य बीमारियों से मर रहे हैं। और मृत्यु की गिनती कोविड के नाम पर की जा रही है। यह कितना बड़ा अमानवीय कृत्य है?

यह सिलसिला तब तक चलेगा जब तक कि दो लाख करोड़ सभी में नहीं बंट जाएंगे। आज सामान्य आदमी की जान तमाशा बनकर रह गई है। इस नौटंकी का कब अंत होगा, होगा भी कि नहीं, ईश्वर ही जानें!

भारतीय जनमानस बड़ी उम्मीद लगाए बैठा था कि उसको हमारे जैसे आम आदमी का नेतृत्व मिला है। शाही खानदानी लोग शायद जनमानस की वास्तविक स्थिति को नहीं समझ पा रहे थे। इनके आते ही जनसामान्य ने सोचा अब तो हमारे प्रधानमंत्री हमें समझेंगे भी और हमारा उद्धार भी करेंगे।

परंतु स्थिति विपरीत निकली, “न खाउंगा, न खाने दूंगा” की बात ऐसी सच हो रही है कि लोग दाने-दाने को मोहताज हो रहे हैं। उद्योग धंधे चौपट हो गए हैं, घरों में खाने के लाले पड़े हैं। ऊपर से थोड़ा भी बीमार हो गए, तो कोविड पेशेंट बताकर लाखों की लुटाई। आखिर आम आदमी करे तो क्या करे?

कोविड-१९ भारत के लुटेरों के लिए वरदान साबित हो रहा है। सैनिटाइजर, मास्क के नाम पर बाजार में खुली लूट मची हुई है। इस लूट तंत्र द्वारा सच में कोरोना को अवसर में बदल दिया गया है।

आम आदमी अब से त्राहि माम् कर रहा है और अपेक्षा कर रहा है कि भगवान के लिए अब तो आंखें खोलिए सरकार, कसाई से भी बदतर इन प्राइवेट अस्पतालों, नर्सिंग होम्स तथा दुकानदारों की लूट पर केवल काबू पाने से काम नहीं चलेगा, अपितु इनको ऐसा सबक दिया जाए, जो सभी के लिए एक सबक बन जाए!