रेलवे के लिए घातक साबित हो रहे हैं अलग-अलग संगठन
रेलमंत्री ने वरिष्ठ अधिकारी के सुझाव लागू करना जरूरी नहीं समझा
अधिकांश प्रबुद्ध रेलकर्मियों और अधिकारियों का मानना है कि भारतीय रेल के लिए अलग-अलग कैडर संगठनों का होना घातक साबित हो रहा है। उनका कहना है कि जिन-जिन कैडर्स के अपने संगठन नहीं थे, उनका निजीकरण कर दिया गया। इसके अलावा वह यह भी मानते हैं कि मान्यताप्राप्त रेल संगठन अपनी भूमिका को सही साबित नहीं कर पा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीय रेल में लोको पायलट का अलग संगठन है, गार्ड्स का अपना अलग संगठन, स्टेशन मास्टर्स का अलग, टिकट चेकिंग स्टाफ का अलग, अलग से मजदूर युनियन, अलग से मजदूर कांग्रेस, अलग से आरपीएफ एसोसिएशन आदि हैं। इसके अलावा न जाने और कितने अलग-अलग संगठन हैं। अगर ये सभी संगठन एकसाथ होकर एक-दूसरे के दुख में साथ देते, सरकार और प्रशासन की नाइंसाफी के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रकट करते, तो आज रेलवे और इसकी सभी उत्पादन इकाईयों का निजीकरण नहीं होता।
उन्होंने कहा कि जिस-जिस विभाग या कैडर का संगठन नहीं था उसको पहले प्राइवेट हाथों में सौंप दिया गया, जैसे सफाई विभाग, कोच अटेंडेंट , गैंगमैन, बुकिंग क्लर्क इत्यादि। जब एक विभाग के कार्य को प्राइवेट हाथों में सौंपा जाता है, तब दूसरे विभाग/कैडर का संगठन मौन रहता है। यही हमारी सबसे बड़ी भूल है।
उनका कहना है कि आज अगर हम सभी निजीकरण को रोकना चाहते हैं, तो बचे हुए सभी विभागों के संगठनों को आपसी गुटबाजी एवं अहं की भावना को त्यागकर एक अद्वितीय शक्तिशाली संगठन बनाकर सुनियोजित तरीके से कुटनीतिपूर्वक प्रशासन का विरोध करना चाहिए।
उनका मानना है कि इसके साथ ही प्रशासन को इस बात से पुनः अवगत कराया जाए कि किस प्रकार प्राइवेट सफाई कर्मचारियों, प्राइवेट अटेंडेट और प्राइवेट ऑन बोर्ड हाउसकीपिंग स्टाफ सहित विभिन्न विभागीय कार्यालयों में लगाए गए ठेका कर्मियों का आर्थिक एवं मानसिक शोषण हो रहा है, जिसकी पूरी जानकारी प्रशासन को है, परंतु फिर भी सब मौन हैं।
रेलमंत्री ने उचित सुझाव पर ध्यान नहीं दिया
यहां यह उल्लेखनीय है कि एक प्रबुद्ध और वरिष्ठ रे अधिकारी ने रेलमंत्री पीयूष गोयल को उनके भोपाल दौर के समय ट्रेनों की पंक्चुअलिटी सुधारने के बारे में उनके द्वारा मांगी गई सलाह पर उन्हें निजी साफ-सफाई कर्मी, निजी अटेंडेंट्स, निजी खानपान आपूर्ति सहित चेन पुलिंग इत्यादि को लेकर यह सुझाव दिया था कि यदि वे यह सब सुधारना चाहते हैं तो सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतनमान पर ऐसे सभी कर्मचारियों को विभागीय तौर पर नियुक्त कर दिया जाए, वे सब खुशी-खुशी उतने ही वेतन पर काम करेंगे।
इससे उनका शोषण भी रुकेगा और रेलवे द्वारा उन पर नियंत्रण भी रखा जा सकता है। अभी तो हाल यह है कि निजी ठेकेदार द्वारा न तो उन्हें न्यूनतम वेतन दिया जा रहा है और न ही किसी बात की कोई गारंटी या सुरक्षा है। कोचों में चोरियां अलग बढ़ गई हैं। उक्त अधिकारी ने पंक्चुअलिटी सुधारने के लिए कोच के हर कूपे (आठ बर्थों के बीच) लगी चेनें हटाकर एक कोच में सिर्फ एक चेन लगाए जाने का भी सुझाव दिया था। ठेकेदारों द्वारा जब मर्जी तब कोच अटेंडेंट और ओबीएचएस कर्मियों को निकाल दिया जाता है। अधिकांश रेल अधिकारियों का ज्यादातर समय उनके कागजात चेक करने में जाया हो रहा है। इसके अलावा इसमें सबके अपने-अपने हित जुड़े रहते हैं।
इस सबसे बचने और रेलसेवा में पर्याप्त सुधार एवं सुरक्षा के लिए उक्त सुझाव अत्यंत महत्वपूर्ण थे। परंतु रेलमंत्री ने इन सुझावों पर अमल करना जरूरी नहीं समझा। यही वजह है कि लगभग सभी अधिकारी और कर्मचारी यह मानते हैं कि सरकार पर जब पुश्तैनी संपत्ति बेचकर ही विकास दर्शाने का भूत सवार हो, तब उचित परामर्श किसी की समझ में नहीं आता। तथापि यदि मान्यताप्राप्त रेल संगठन अब भी जागरूक नहीं होते हैं, तो इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।