अब तय है रेलवे के ट्रैक पर प्राइवेट ट्रेनों का संचालन
कभी “देश नहीं बिकने दूंगा” की बात कहने वाले आज वास्तव में देश बेचने पर उतर आए हैं
हम बीते 6 सालों से बुलेट ट्रेन चलाने और न जाने क्या-क्या बातें सुनते रहे हैं..
जिस तरह पहले रेल सेवाएं बंद की गईं, और सिर्फ गुड्स ट्रेनों का परिचालन जारी रखा गया, फिर अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए कथित जरूरी सामानों की आपूर्ति के नाम पर धीरे से स्पेशल पार्सल ट्रेनों की शुरुआत कर दी गई।
इसके बाद जब व्यवस्था की नाकामी के चलते बड़ी संख्या में मजदूरों, श्रमिकों का सड़कों पर निकलकर अपने गांव जाने के लिए पैदल मार्च शुरू हो गया, तब श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के नाम पर भी कुछ चुनिंदा रूटों पर ट्रेनें चलाई गईं।
इसमें भी व्यवस्था की नाकामी और नीति-नियंताओं का निकम्मापन उजागर हुआ तथा जानबूझकर इस श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को भटकाया गया, जिससे रेलवे की बदनामी हो और सरकार यह साबित करने के लिए कह सके कि रेलवे की वर्तमान व्यवस्था नाकाम हो चुकी है, अतः कुछ चुनिंदा मार्गों पर निजी क्षेत्र को रेल परिचालन का जिम्मा सौंपा जा रहा है।
कोरोना संकट के नाम पर भारतीय रेल की सामान्य सेवाएं बंद करके प्राइवेट पार्टियों को ट्रेन ऑपरेशन के लिए आमंत्रित करने का इससे बेहतर मौका सरकार को नहीं मिल सकता था।
सरकार कोरोना काल का भरपूर इस्तेमाल कर रही है, क्योंकि उसे पता है कि इस मौके पर कोई यूनियन अथवा संगठन विरोध के लिए मैदान में नहीं उतरेगा।
इसके अलावा, सभी विपक्षी राजनीतिक दल मरणासन्न पड़े हुए हैं, जिससे देश में एक बड़ा राजनीतिक शून्य पैदा हो गया है। सरकार इसका भरपूर लाभ उठा रही है।
इसके साथ ही राजनीतिक विपक्ष की अनुपस्थिति में विपक्षी दलों की भूमिका निभाने वाली मीडिया और देश के कुछ प्रमुख प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकारों को या तो डरा-धमकाकर स्वान बना दिया गया है, या फिर अपना जरखरीद गुलाम बना लिया गया है।
देश की वर्तमान स्थिति ऐसी है कि लोग अब अपनी इज्जत बचाए रखने और अनावश्यक बेइज्जती से बचने के लिए सच बोलने, कहने और लिखने में भारी संकोच कर रहे हैं।
सरकार के पक्षधर कुछ लोगों को छोड़कर बाकी ज्यादातर लोग सच लिखने और बोलने से बच रहे हैं। यह सही है कि लोग डरे हुए हैं।
जो कुछ लोग लिखने, बोलने और कहने का दुस्साहस कर भी रहे हैं, उन्हें बेवजह पुलिसिया कार्रवाई, कानूनी और अदालती पचड़ों में लपेटकर परेशान किया जा रहा है। इसीलिए उनमें एक तरह का भय समा गया है।
उपरोक्त तमाम स्थिति सरकार को पूरी तरह से सूट कर रही है। इसीलिए सरकार खुलकर खेल रही है और वह सब कुछ बेचने या लुटाने अथवा निजी क्षेत्र को सौंपकर लूटने पर उतारू है, जिसे उसने नहीं बनाया है।
हर दस-पंद्रह दिन में सरकार द्वारा एक नया जुमला देशवासियों को परोस दिया जाता है। कभी देश पांच ट्रिलियन इकोनॉमी की बात होती है, तो कभी कोरोना को एक अवसर के रूप में देखने की बात कही जाती है, तो कभी आत्मनिर्भर बनाया जाता है। कभी “देश नहीं बिकने दूंगा” की बात कहने वाले आज वास्तव में देश बेचने पर उतर आए हैं।
#ModiBJP की नीतियों का परिणाम
इतिहास में पहली बार भारत की नौ-रत्न कंपनी @ONGC_ घाटे में!🤔https://t.co/Zlw7bzTmxpक्या से क्या हो गया देखते-देखते
5 ट्रिलियन की बात करने वाले
5 किलो पर आ गए5 किलो गेंहू/चावल
1 किलो चना के लिए
राष्ट्र के नाम संबोधन करना पड़ रहा है!
जयहिंद🇮🇳— kanafoosi.com (@kanafoosi) July 1, 2020
सरकार के वादों, सरकार के जुमलों और सरकार के इवेंट मैनेजमेंट की दास्तान या फेहरिस्त “हरि अनंत हरि कथा अनंता” जैसी हो चुकी है, जिसमें पूरा देश कसमसा रहा है। एक नया जुमला ईजाद करके अथवा एक नई इवेंट खड़ी करके हर बड़े मुद्दे से पूरे देश का ध्यान भटका दिया जाता है।
अब जहां तक रेलवे के मान्यताप्राप्त संगठनों की बात है, तो वे तो पहले से ही मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुके हैं। उन्होंने सरकार के सामने पूरी तरह से घुटने टेक दिए हैं। चिट्ठी लिखने, ज्ञापन सौंपने और फोटो खिंचवाने से ज्यादा वह कुछ करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं।
“धिक्कार है मान्यताप्राप्त यूनियनों को, जिन्होंने पिछले कुछ सालों से रेलकर्मियों को न सिर्फ गुमराह करके रखा, बल्कि रेलवे में अपनों को भर्ती कराने के एवज में रेल परिवार को बंधक बनाकर सरकार के सामने घुटने टेक दिए हैं!” यह कहना है तमाम रेलकर्मियों का।
सरकार के इस कदम से अब रेलवे की सभी उत्पादन इकाइयों के भी हजारों कर्मचारी अपने भविष्य को असुरक्षित होते हुए देखकर बुरी तरह चिंतित हो गए हैं। उनका कहना है कि “जब मान्यताप्राप्त यूनियनें रेल परिचालन का निजीकरण नहीं रोक पा रही हैं, तो उत्पादन इकाईयों का निगमीकरण और निजीकरण होने से कैसे रोक पाएंगी!”
अब भी समय है, सभी सरकारी कर्मचारी संगठित होकर सरकार की वादाखिलाफी का विरोध और यूनियनों का संपूर्ण बहिष्कार करें!
अब #रेलवे के ट्रैक पर #प्राइवेट_ट्रेनों का संचालन तय है#कोरोना_संकट के नाम पर रेलवे की सामान्य सेवाएं बंद कर #प्राइवेटपार्टियों को #ट्रेन चलाने के लिए बुलाया जा रहा है#धिक्कार है #मान्यताप्राप्त_यूनियनों को जिन्होंने #रेलकर्मियों को गुमराह कर #सरकार के सामने घुटने टेक दिए हैं pic.twitter.com/tI2Que3daR
— kanafoosi.com (@kanafoosi) July 1, 2020
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