रेल निर्माण संगठनों को है गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य से परहेज!
भारतीय रेल की लगातार बदहाल होती जा रही आर्थिक स्थिति को यदि संभालना है तो एडवांस टेंडर, एडवांस स्टेशन स्थापनाओं, एडवांस खरीद और गुणवत्ताविहीन कार्यों जैसी तमाम भारी भ्रष्टाचारपूर्ण गतिविधियों को अविलंब रोका जाना आवश्यक है!
रेलवे के निर्माण संगठनों द्वारा कब गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य किया जाएगा, यह सवाल इन निर्माण संगठनों के ही फील्ड में कार्यरत अब लगभग सभी कर्मचारियों द्वारा उठाया जाने लगा है। उनका कहना है कि निर्माण संगठन के अधीन गुणवत्तापूर्ण तरीके से निर्माणाधीन नई लाइनों का निर्माण कब देखने को मिलेगा?
आखिर कब वह दिन आएंगे कि सीना ठोंक कर कहा जा सकेगा कि सीआरएस के निरीक्षणों के लिए नई लाइनें प्रस्तुत हैं। आखिर ऐसी गुणवत्तापूर्ण कार्यपद्धति को भौतिक रूप में कौन सीएओ अपने आउटपुट में दर्ज करवाएगा? और कौन महाप्रबंधक या मेंबर इंजीनियरिंग रेलवे बोर्ड इन्हेें ऐसे कार्यों के लिए विवश कर सकेंगे? यह सब देखने के लिए हम फीलड कर्मचारियों को बड़ी बेसब्री से इंतजार है। यह उद्गार हैं रेलकर्मियों के!
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उनका बार-बार यही सवाल है कि आखिर निर्धारित मानक के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य क्यों नहीं किया जा रहा है! नई लाइनों में रिवर्स कर्व डालने का आखिर क्या औचित्य है? आधा-अधूरा निर्माण कार्य करके “पेड सीआरएस निरीक्षण और अनुमोदन” से आखिर किसका हितसाधन पूरा हो रहा है। यह गंभीर जांच का विषय है।
आखिर लाइन बिछाने के लिए बनाए गए फार्मेशन में मिट्टी की क्वालिटी के साथ ही ब्लैंकेटिंग की क्वालिटी और उसके कम्पैक्शन की जांच और साथ ही वास्तविक एलाइनमेंट, जो ‘एल’ सेक्शन में प्रस्तावित होता है, उसके अनुरूप कार्य क्यों नहीं किया जाता है। इसकी जबाबदेही आखिर कब तय की जाएगी?
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जहां सीधी लाइन या सर्कुलर कर्व प्रस्तावित होता है, वहां उक्त लोकेशन पर रिवर्स कर्व डालने का आखिर औचित्य क्यों नहीं पूछा जाता है? आखिर क्यों लूट की छूट देकर रखी गई है कि जैसे-तैसे छोटे-बड़े पुलों के फार्मेशन का निर्माण करते हुए लाइन बिछाकर सीआरएस अनुमोदन करवा लिया जाए?
सीएओ/कंस्ट्रक्शन, महाप्रबंधक और सीआरएस द्वारा नई लाइनों में रिवर्स कर्व का औचित्य कयों नहीं पूछा जा रहा है। इतनी बड़ी गड़बड़ी को आखिर जानबूझकर क्यों नजरंदाज किया जा रहा है? इन उच्चाधिकारियों द्वारा अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाने का आखिर क्या अर्थ लगाया जाए?
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रेलवे की जमीन उपलब्ध नहीं होने के नाम पर रिटेनिंग वॉल के निर्माण पर करोड़ों रुपए आखिर क्यों खर्च किए जा रहे हैं। जमीन का अधिग्रहण जिसने करवाया, उससे इसका औचित्य क्यों नहीं पूछा जाता? यदि जमीन के अधिग्रहण में किसी प्रकार की कोई त्रुटि हुई है तो उसके तुरंत संज्ञान में आने पर आवश्यक दूरी में पुनः जमीन का अधिग्रहण क्यों नहीं सुनिश्चित किया जाता?
इस प्रकार की गंभीर लापरवाहियों के लिए संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध अब तक कोई उचित कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की जा सकी है?
आखिर इस तरह रेलवे राजस्व के अनावश्यक खर्च को रोकने के लिए सीएओ/कंस्ट्रक्शन, महाप्रबंधक और रेलवे बोर्ड ने अब तक क्या कारवाई सुनिश्चत की? यदि नहीं, तो आखिर किन प्रयोजनों से संबंधित अधिकारियों को यह छूट देकर रखी गई है?
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इस तरह के ऐसे बहुत से सवाल जिम्मेदार रेलकर्मियों द्वारा अक्सर उठाए जा रहे हैं, परंतु ऐसा लगता है कि रेल प्रशासन को इस सब के बारे में कोई चिंता नहीं है।
ऐसे तमाम कार्य खासतौर पर उत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, पूर्व मध्य रेलवे, दक्षिण पूर्व रेलवे और उत्तर मध्य रेलवे सहित लगभग सभी जोनल रेलों में बड़े पैमाने पर किए गए हैं और अभी भी किए जा रहे हैं।
यही नहीं, ऐसे गुणवत्ताविहीन कार्यों का ‘पेड’ सीआरएस निरीक्षण और अनुमोदन भी कराया गया है। प्रमाण के लिए पिछले कुछ महीनों के दौरान हुए ऐसे सीआरएस निरीक्षणों और अनुमोदनों की वस्तुस्थिति देखी जा सकती है।
एडवांस टेंडर, एडवांस स्टेशन स्थापनाओं और एडवांस खरीद तथा गुणवत्ताविहीन कार्यों जैसी तमाम भारी भ्रष्टाचारपूर्ण गतिविधियों को यदि नहीं रोका गया और इनकी भौतिक निगरानी सुनिश्चित नहीं की जाती है, तो निश्चित रूप से जल्दी ही रेलवे का दीवाला निकल जाएगा, क्योंकि यही वह गतिविधियां हैं जिनके माध्यम से अधिकांश सरकारी राजस्व संबंधित अधिकारियों की जेब में जा रहा है। और यह भी सही है कि कमोबेश इस सब में नीचे से लेकर ऊपर तक सभी शामिल हैं।