सचिव, बैद, गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस!

पीएमओ अथवा अन्य केंद्रीय मंत्रालयों के जिन मंत्रियों/अफसरों ने निजी स्वार्थवश सेवा विस्तार की सलाह दी है, उसे उन पर ही लागू करना उचित होगा, क्योंकि कोरोना महामारी से निपटने में उनका कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं है

भारत सहित पूरा विश्व कोरोनावायरस (कोविद-19) की महामारी से पिछले कुछ महीनों से लगातार जूझ रहा है। हर देश अपने-अपने तरीकों से इससे निपटने में और अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने में लगा हुआ है। भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस मुहिम को संभाल रहे हैं। वह लगातार सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से संपर्क कर रहे हैं और मीडिया के विभिन्न मंचों से नागरिकों को भी जरूरी एहतियात बरतने की अपील कर रहे हैं। उनके अब तक के प्रयासों का ही नतीजा है कि भारत में यह महामारी विकराल रूप धारण नहीं कर सकी है।

ऐसे समय में उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से खबर मिली है कि सरकार को अगले तीन महीने अथवा इस महामारी के खत्म होने तक कुछ सचिवों को सेवा विस्तार देने की सलाह कुछ सरकारी बाबुओं ने दी है।

यदि यह खबर सही है, तो सबसे पहली बात यह है कि सलाह काफी हद तक उचित है और इसके अनुसार उन सरकारी कर्मियों को सेवा विस्तार अवश्य दिया जाना चाहिए, जो इस महामारी की रोकथाम, मरीजों की देखभाल, कानून-व्यवस्था को संभालने और जीवन आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में लगातार जी-जान से जुटे हुए हैं।

दूसरी बात यह कि उन सरकारी बाबुओं को सेवा विस्तार देने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो सिर्फ पीएमओ या मंत्रियों के इर्द-गिर्द घूमकर अथवा उनसे चिपके रहकर इस आपत्ति काल में भी समस्त सुख-सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं। और ऐसा समझा जाता है कि ऐसे ही सरकारी बाबुओं द्वारा अपने निजी स्वार्थवश सरकार को उपरोक्त सलाह सरकाई गई है।

वर्तमान में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तीन सरकारी सेवाएं हैं – रेलवे, मेडिकल और पुलिस। इन्हीं तीनों सेवाओं के अधिकारी और कर्मचारी तमाम असुविधाजनक स्थिति का सामना करते हुए भी फील्ड में अपनी वास्तविक ड्यूटी पर डटे हुए हैं। यदि किसी को न्यूनतम सेवा विस्तार देने की जरूरत है, तो वह इन्हीं तीनों सेवाओं के कर्मियों को दिया जाना चाहिए।

रेल अधिकारी और कर्मचारी रात-दिन मालगाड़ियों और पार्सल स्पेशल ट्रेनों का संचालन करके देश भर में जीवन आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाए रखने में लगे हैं। पावर हाउसों को कोयला पहुंचा रहे हैं, जिससे घरों में बंद देश के नागरिकों को बिजली मिल पा रही है। पानी की आपूर्ति हो रही है। दवाईयां और खाद्यान्न मिल पा रहा है।

रेलवे के फील्ड कर्मचारी लगातार ट्रैक, ब्रिज, सिग्नल, ओएचई दुरुस्त करने में लगे हैं। लॉकडाउन में भी रेल संपत्तियों और कारखानों की सुरक्षा में तैनात हैं, जहां रोलिंग स्टॉक की मरम्मत हो पा रही है। अपनी जान की परवाह न करते हुए वेंटीलेटर, मास्क और सेनिटाइजर बनाकर मेडिकल स्टाफ सहित सर्वसामान्य नागरिकों तथा रेलकर्मियों की मदद करने में लगे हैं। इसी क्रम में पीसीएमई/उ.रे. ने रेलवे में इन सब जरूरी वस्तुओं के निर्माण/उत्पादन का लाइसेंस भी सक्षम विभागों से प्राप्त किया है।

कुछ खास वर्ग के मरीजों के भयावह असहयोग और इस पर हो रही राजनीति तथा कुछ शिकवा-शिकायतों के बावजूद मेडिकल फील्ड में डॉक्टर, नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ लगातार कोरोनावायरस की रोकथाम हेतु लोगों की सेवा में लगा हुआ है।

इसी तरह पुलिस के जवान और अफसर भीषण गर्मी तथा कई असुविधाजनक स्थितियों के होते हुए भी अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद हैं। उन्हें भी कुछ उद्दंड टाइप नागरिकों के असहयोग से मजबूर होकर कई बार कड़े कदम उठाने पड़ रहे हैं। पर कुल मिलाकर उन्होंने स्थिति को नियंत्रण में रखा हुआ है।

इनमें नगरपालिकाओं और नगरपरिषदों के सफाई कर्मचारियों को भी गिना जाना चाहिए, क्योंकि उनकी बदौलत अस्पतालों और कोरंटीन सेंटरों की साफ-सफाई सुनिश्चित हो पा रही है। यह आवश्यक सेवाओं में भी है।

ऐसे में पीएमओ और कुछ मंत्रालयों के जिन मंत्रियों और अफसरों ने निजी स्वार्थवश यह सलाह दी है, उसे उन पर ही लागू किया जाना उचित होगा, क्योंकि इस महामारी से निपटने में उनका कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं है। इनमें से रेलवे बोर्ड अध्यक्ष (सीआरबी) और रेलमंत्री प्रमुख हैं। सीआरबी वैसे भी प्रशासनिक निर्णय लेने और रेल संचालन-व्यवस्थापन में अपने एक साल के असली कार्यकाल में फेल साबित हुए थे और यही तथ्य उनकी पुनर्नियुक्ति के पिछले चार महीनों में भी सही साबित हुआ है। उन्हें खामखां एक साल की पुनर्नियुक्ति देकर पीएमओ को भी अब पछतावा ही हो रहा होगा।

जबकि रेलमंत्री को प्रधानमंत्री की चापलूसी करने से ही फुर्सत नहीं है। ऐसा लगता है कि उनको इसके सिवा और कुछ आता ही नहीं। उन्होंने जब से यह पद संभाला है तब से अब तक उनका प्रत्येक निर्णय विवादग्रस्त ही रहा है। वह न सिर्फ रेलमंत्री के तौर पर फेल हुए हैं, बल्कि उन्होंने अब तक जो भी मंत्री पद संभाला, उसमें भी फेल रहे हैं। रेकार्ड्स इस बात के गवाह हैं। सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री की वाहवाही में सबसे आगे रेलमंत्री हैं, जैसे कि इससे ज्यादा जरूरी उनके पास अन्य कोई काम ही नहीं है। इतिहास में भारतीय रेल का सबसे अधिक बंटाधार करने वाले और सर्वाधिक अलोकप्रिय रेलमंत्रियों में उनकी गिनती होने वाली है।

इस संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस – सुंदर कांड – में एक सर्वकालिक सीख देते हुए कहते हैं-

सचिव, बैद, गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज, धर्म, तनु तीनि कर होइ बेगिहिं नास।।37।।

अर्थात – “मंत्री, वैद्य और गुरु यदि ये तीन भय, लाभ या स्वार्थवश मीठा बोलते हैं, राज (शासन) हित की बात न कहकर चापलूसी करते हैं (ठकुरसुहाती कहने लगते हैं), तो राज्य, शरीर और धर्म, इन तीनों का शीघ्र ही नाश हो जाता है।”

अब यह प्रधानमंत्री पर निर्भर करता है कि वह गोस्वामी तुलसीदास जी की सीख पर अमल करते हैं अथवा वर्तमान सीआरबी जैसे चापलूसी और जी-हजूरी करने वाले मंत्रियों-सचिवों की बात मानकर एक बार फिर देश के प्रबुद्ध नागरिकों को निराश करते हैं! तथापि वह जो भी निर्णय लें, वह सेलेक्टिव न हो, यानि कुछ मुंहलगे नियर-डियर अफसरों तक सीमित न रहकर उपरोक्त सेवाओं से जुड़े सभी सरकारी कर्मियों-अधिकारियों तक व्यापक रूप से होना चाहिए।

हालांकि ऐसा होने पर कुछेक कमर्शियल एवं इंजीनियरिंग अधिकारियों का बड़ा भला हो सकता है, जो कि इस लॉकडाउन पीरियड में भी इंजीनियरिंग कार्यों और गुड्स एवं पार्सल ट्रेनों के चलते बड़े पैमाने पर अवैध कमाई कर रहे हैं (जरूरत पड़ने पर पीएमओ को उनके नाम भी बताए जा सकते हैं), मगर ऐसे कुछेक भ्रष्ट अफसरों के कारण व्यापक हितों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसा न सिर्फ प्रबुद्धजनों का मानना है, बल्कि कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों का भी यही सुझाव है।

इति शुभम्