कोरोना संक्रमण से बचाव का इटली और दक्षिण कोरिया द्वारा अपनाया गया मॉडल

चीन के वुहान में जो कोरोना का संक्रमण फैला था उसके बाद पूरी दुनिया में कोरोना से लड़ने के दो मॉडल सामने आए – एक इटली का मॉडल और दूसरा दक्षिण कोरिया का मॉडल।

पहले इटली के मॉडल को समझ लेते हैं, क्योंकि भारत सरकार ने भी वही मॉडल अपनाया है। इटली में 20 फरवरी को पहला कोरोना पॉजिटिव केस आया था, लेकिन अचानक 23 फरवरी को एक साथ 130 लोग कोरोना पॉजिटिव मिले। इसके बाद देश के 11 शहरों को सील कर दिया गया। उसी रात इटली के पीएम ने जनता से कहा कि हम पहला देश हैं, जो इस हद तक नियंत्रण की कोशिश कर रहे हैं।

ठीक ऐसा ही एटीट्यूड भारत सरकार का भी था, जब आलोचकों को जवाब देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तारीफ किए जाने की दलील दी जा रही थी।

इटली सरकार वायरस के इस कदर फैल जाने के लिए तैयार नहीं थी। उन्होंने ऐक्शन तो लिया लेकिन ऐक्शन पर अमल नहीं किया। इटली के मिलान शहर में एक कैंपेन शुरू हो गया – “Milan Doesn’t Stop”। ठीक ऐसा ही भारत में देश की जनता, ‘जनता कर्फ्यू’ की शाम 5 बजे चौराहे पर आकर ‘कोरोना उत्सव’ मनाती देखी गई। उधर इटली के अस्पतालों में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही थी।

आखिरकार 8 मार्च को पीएम ने इटली के उत्तरी हिस्से में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की, तब तक 7,375 लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके थे। तब जाकर इसे नेशनल इमरजेंसी घोषित किया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और संक्रमण काफी फैल चुका था। अब रोज सैकड़ों मौतें इटली में हो रही हैं, जो जल्दी ही हजारों मौतें प्रतिदिन में बदल जाएंगी!

अब दक्षिण कोरिया ने इस समस्या का सामना कैसे किया, उसे भी समझते हैं – दक्षिण कोरिया ने #कोरोनावायरस से लड़ने के लिए शहर को लॉक डाउन करने के उपाय के बजाए एक अलग तरीका अपनाया।

दक्षिण कोरिया का कहना है कि पूरे शहर को बंद करना सही तरीका नहीं है। इसके बजाय ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच होनी चाहिए। दक्षिण कोरिया की सरकार का शुरू से इस बीमारी को लेकर अप्रोच थोड़ा अलग रहा। वहां पर वैज्ञानिकों ने बड़ी तेजी से टेस्ट की तैयारी की और सरकार ने बायोटेक कंपनियों को टेस्ट किट तैयार करने का टास्क दिया। उन्होंने कुछ ही दिनों में इसे पूरा कर दिया। जल्दी ही साउथ कोरिया ने प्रतिदिन 20 हजार आबादी का कोरोना वायरस टेस्ट करने की क्षमता विकसित कर ली।

दक्षिण कोरिया ने तय किया कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच करेंगे, ताकि यह साफ हो जाए कि कौन संक्रमित है और कौन नहीं। इसके लिए 50 ड्राइव थ्रू टेस्ट स्टेशन बनाए गए। जहां लोग अपनी कार ड्राइव करते हुए पहुंच सकते थे। जांच की पूरी प्रक्रिया मुफ्त रखी गई। वहां प्रति व्यक्ति इस प्रक्रिया में मात्र दस मिनट लगे और चंद घंटों में रिज़ल्ट दे दिए गए।

फोन-बूथ की तरह बनाए गए इन टेस्ट सेंटर्स में मेडिकल स्टाफ एक प्लास्टर पैनल की आड़ से संदिग्धों की जांच करता है। यहां पर निगेटिव एयर प्रेशर रखा गया, ताकि कमरे से बाहर हवा का कोई भी पार्टिकल न जा सके। इससे संक्रमण फैलने का डर बहुत कम हो गया।

अब यहां खास बात यह है कि दक्षिण कोरिया सरकार ने डाटा को एक प्रभावी टूल की तरह इस्तेमाल किया। फरवरी की शुरुआत में ही सरकार ने उन सभी लोगों की आईडी, क्रेडिट-डेबिट कार्ड की रसीद और दूसरे प्राइवेट डाटा निकाल लिया जो वायरस से संक्रमित पाए गए और उनके जरिए उनके संपर्क में आए सभी लोगों की पहचान की जाने लगी।

जिन लोगों का टेस्ट पॉजिटिव पाया गया उनके सेल फोन रिकार्ड और क्रेडिट कार्ड के रसीद से पता किया गया कि वह कहां कहां गये थे और साथ ही यह जानकारी ऑनलाइन कर दी गई, ताकि दूसरे भी देख सकें कि उस वक्त उस व्यक्ति के आसपास तो नहीं थे। जैसे अगर कोई सिनेमा देखने गया था, तो सीट नंबर के साथ जानकारी पब्लिक कर दी गई, ताकि अगल-बगल बैठे लोगों को पता चल जाए और वे अपना सैंपल दे सकें।

एक तरफ जहां इटली में दिनों-दिन कोरोना प्रभावितों और मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरे मॉडल का प्रयोग कर दक्षिण कोरिया ने इस रफ्तार को बेहद सीमित करने में सफलता पाई है। वहां पिछले चार सप्ताह में सबसे कम नए केस दर्ज किए गए हैं।

दक्षिण कोरिया का अनुभव बता रहा है कि ऐसी महामारी की स्थिति में आप तभी लड़ सकते हैं, जब आपके पास सैंपल जांच करने की मुकम्मल व्यवस्था हो। पॉजिटिव पाए गए मरीज के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने का सिस्टम मौजूद हो। इसमे डाटा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी बात को हमारे मित्र अपूर्व भारद्वाज, जो डाटा विशेषज्ञ हैं, बहुत दिनों से समझा रहे हैं, लेकिन भारत सरकार के कानों पर जूं तक नही रेंग रही है।

प्रस्तुति: #Girish_Malviya

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