‘कोरोना’ का संदेश: “प्रकृति के कायदे में रहोगे, तो हमेशा फायदे में रहोगे!” एक संवेदनशील रेल अधिकारी का अनुभव

“आज पहली बार मुझे अपनी कालोनी में सभी मुझसे बड़े देशभक्त, जिम्मेदार, जज्बाती और मानवीय संवेदनाओं की कद्र करने वाले लोग नजर आए”

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“आज रविवार, 22 मार्च को 5 बजे शाम को 5 मिनट का दृश्य अत्यंत अभिभूत करने वाला था। जहां मोबाइल और सोशल मीडिया ने हमें एक-दूसरे के प्रति धरातल पर पूरी तरह असंवेदनशील बना दिया है, वहां आभार व्यक्त करने की इस अभिव्यक्ति में जिस तरह से हर घर, हर झरोखे से लोगों ने अपनी सहभगिता दिखाई; वह बताता है कि हमारी भावनाओं का, संवेदनाओं का, संस्कारों का श्रोत अभी भी अंदर जीवन्त है, स्पंदित है।”

दिल्ली की पंचकुईंयां रोड उर्फ पी. के. रोड स्थित रेलवे ऑफिसर्स कॉलोनी, जहां उत्तर रेलवे और रेलवे बोर्ड के तमाम बड़े अफसर रहते हैं, में निवास करने वाले एक बड़े रेल अधिकारी ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “आज पहली बार मुझे अपनी कालोनी में सभी मुझसे बड़े देशभक्त, जिम्मेदार, जज्बाती और मानवीय संवेदनाओं की कद्र करने वाले लोग नजर आए।”

उन्होंने कहा, “आज पहली बार मुझे महसूस हुआ कि मैं सिर्फ मोटी-मोटी कंक्रीट की दीवारों और दड़बों के अंदर नहीं रहता हूं, जहां हम अपने-अपने स्वरचित अहंकार और दम्भ में एक-दूसरे को देखकर भी नहीं देख पाते हैं। एक-दूसरे की भावनाओं, दुःख-सुख को समझना तो बहुत दूर की बात थी। अब ये सारे लोग सचमुच अपने लगने लगे हैं। सबके लिए कुछ करने का मन करता है।भावविह्वलता में खुलकर रुदन करने का मन करता है।”

वह कहते हैं, “शायद मेरे ही ऐसे भाव नहीं है, मैंने देखा कि जब हमारे यहां घण्टा-घड़ियाल, तालियां, शंख आदि की आवाज बंद हुई, तो कोयल की कूक ने उसकी जगह ले ली। इस मौसम में दिल्ली के दिल ‘कनॉट प्लेस’ के इस कंक्रीट के जंगल में पहली बार कोयल की आवाज मैंने सुनी। मानो वह भी हमारी इस भावनात्मक और आत्मिक एकजुटता पर आह्लाद से भर गई हो।”

उसी तन्मयता से वह आगे कहते हैं, “क्योकि मनुष्य की एक-दूसरे के प्रति और प्रकृति के प्रति घोर उपेक्षा का दुष्परिणाम मनुष्य बाद में भुगतता है, निरीह जीव-जंतु पहले भुगतते हैं। क्योंकि हम पर होने वाले किसी भी नुकसान को अपने ऊपर पहली पंक्ति के तौर पर यही मूक और निरीह जीव-जंतु झेलते हैं।”

“शायद इसीलिए कोयल अपने लिए कम, हम सबके लिए ज्यादा खुश होकर कूक रही थी। अपने अंडे कौव्वों के घोंसलों में रखने वाली कोयल शायद आज हमारे बच्चों के लिए खुश हो रही थी, क्योंकि आज पहली बार हमने अपनी इस एकजुटता से उसे यह भरोसा दिलाया कि हम किसी भी विषम परिस्थिति से लड़ सकते हैं और निश्चित तौर पर जीत भी सकते हैं।”

वह कहते हैं, “बाद में उड़ते-उड़ते वह यह भी भरोसा दिला गई कि इसी एकजुट भाव से रहोगे, तो कोई भी समस्या कभी तुम्हारा बाल-बांका नहीं कर सकती है, और यदि रहा-सहा कुछ कष्ट बचेगा भी, तो अगले हफ्ते मातारानी तो नवरात्रा में आ ही रहीं हैं सारे कष्टों के मूल का सर्वनाश करने के लिए! इसलिए प्रकृति के कायदे में रहोगे तो हमेशा फायदे में रहोगे!!”


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