कुछ रेल अधिकारी ही नहीं चाहते कि रेलवे का रिजर्वेशन सिस्टम फुल प्रूफ हो?

हाल ही में आरपीएफ द्वारा ई-टिकटिंग का एक बड़ा रैकेट उजागर किया गया और उसमें एक सॉफ्टवेयर डेवलपर हामिद अशरफ नाम के मास्टरमाइंड की कारगुजारियां पकड़ में आई हैं। बताया गया कि हामिद अशरफ द्वारा आईआरसीटीसी के आरक्षित टिकट बुकिंग सिस्टम के सिक्योरिटी फीचर की बहुत सारी खामियों का फायदा उठाकर नया सॉफ्टवेयर डेवलप करके रेलवे की आरक्षित टिकटों की बुकिंग मिनटों में कर दी जाती थी।

मास्टरमाइंड अशरफ ने पूछताछ में आरपीएफ को यह भी बताया कि आईआरसीटीसी के सिक्योरिटी सिस्टम में बहुत सारी खामियां हैं और उन्हीं खामियों का फायदा उठाकर उसके जैसे लोग मिनटों में कई आरक्षित टिकटों की बुकिंग एक साथ कर लेते थे।

ज्ञात हो कि आईआरसीटीसी रेल टिकटों की आरक्षण प्रणाली के लिए सेंटर फॉर रेलवे इंफॉर्मेशन सिस्टम (क्रिस) पर निर्भर है और जैसा कि हामिद अशरफ द्वारा दावा किया जा रहा है कि आईआरसीटीसी के सिक्योरिटी फीचर में बहुत सी खामियां हैं और प्रतिमाह दो लाख रुपये के भुगतान पर यदि रेलवे उसे रख ले, तो उक्त खामियों को वह दूर कर देगा।

ऐसे में यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति भारतीय रेल की होगी। देश की लाइफलाइन कही जाने वाली भारतीय रेल ने बिना आईआरसीटीसी की कैपेबिलिटी को परखे ही उसे कैसे पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम (पीआरएस) के लिए अधिकृत कर दिया?

इससे पहले भी अनेकों बार ऐसी खबर आती रही हैं, जिनमें दलालों द्वारा नया सॉफ्टवेयर डेवलप करके आरक्षित टिकटों की कालाबाजारी की जा रही है। यदि यह खबरें सही हैं, तो यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है।

इसके लिए आईआरसीटीसी के जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए और तुरंत प्रभाव से उससे टिकट बुकिंग (पीआरएस) की सुविधा तब तक के लिए वापस ले ली जानी चाहिए और जब तक कि वह इसके उचित सिक्योरिटी फीचर न हासिल कर ले, तब तक उस पर इस तरह का प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि आरक्षित टिकट बुकिंग का इसी तरह का एक बड़ा रैकेट अहमदाबाद में भी चल रहा है। कुछ समय पहले एक अधिकृत एजेंट द्वारा की गई कई लिखित शिकायतों के बाद अहमदाबाद आरपीएफ ने उक्त मामले में कुछ कार्रवाई की थी।

बाद में यह पूरा मामला पश्चिम रेलवे मुख्यालय के एक विशेष आरपीएफ अधिकारी को जांच के लिए सौंपा गया था, जो कि ऐसे मामलों में खास अनुभव रखता था। परंतु जैसे ही उसकी जांच के लपेटे में कुछ आरपीएफ अधिकारी ही आने लगे, वैसे ही उक्त अधिकारी का तबादला गोरखपुर कर दिया गया और उक्त जांच का निष्कर्ष आजतक अज्ञात है।

यहां यह भी ज्ञातव्य है कि पुणे की एक सॉफ्टवेयर डेवलपर फर्म के लोग पिछले करीब एक साल से क्रिस और आईआरसीटीसी सहित रेल मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं और उन्हें यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि वह रेलवे के रिजर्वेशन सिस्टम के लिए एक ऐसा फुल प्रूफ सॉफ्टवेयर देने को तैयार हैं कि जिससे आरक्षित रेल टिकटों की अवैध बुकिंग सहित ऐसे सभी अनधिकृत एजेंटों या दलालों पर पूरी तरह से लगाम लग जाएगी। परंतु उन्हें कोई भी अधिकारी घास डालने तक को तैयार नहीं है।

फर्म के जिम्मेदार लोगों ने यह भी बताया कि वह रेलमंत्री को भी मिलने का कई बार प्रयास कर चुके हैं, परंतु उन्हें किसी न किसी बहाने टरका दिया जाता है। इसका अर्थ क्या यह लगाया जाए कि रेल प्रशासन और संबंधित रेल अधिकारी ही नहीं चाहते हैं कि रेलवे का रिजर्वेशन सिस्टम फुल प्रूफ हो?