अतुल कुमार, व्यवस्था और भ्रष्टाचार: राजनेताओं-नौकरशाहों का सामंजस्यपूर्ण गठजोड़
कैसे व्यवस्थागत भ्रष्टाचार द्वारा जनता के लाखों-करोड़ों रुपयों के टैक्स का एक बड़ा हिस्सा कुछ लोगों की जेबों में जाता है, और इसमें सुधार में किसी की कोई रुचि नहीं है; चाहे अपनी पीठ खुद ठोंकती विशाल नौकरशाही हो, रेलवे के बड़े अफसर हों या मोदी सरकार! किसी को कुछ नहीं पड़ी है!
प्रिय पाठकों, हम आपको लगातार बताते आ रहे हैं कि कैसे बड़े रेल अधिकारी और रेलमंत्री अपने ही हितसाधन में व्यस्त हैं, वे अपने पदों की खुमारी में डूबे हुए हैं, जबकि जमीनी स्तर पर रेल व्यवस्था चरमरा रही है और सामान्य रेलयात्री दिन-प्रतिदिन रेलयात्रा इस प्रकार करता है मानो कोई जंग लड़ रहा हो! आए दिन होने वाली अनावश्यक भीषण रेल दुर्घटनाएँ-हादसे अलग हैं! ऐसा तब है जब आपकी गाढ़े पसीने की कमाई के लगभग 17.5 लाख-करोड़ रुपये पिछले एक दशक में रेल व्यवस्था में मोदी सरकार द्वारा झोंके जा चुके हैं और झोंके जा रहे हैं।
आज हम आपको अतीत में हुए एक भूले-बिसरे उदाहरण द्वारा बताएँगे कि कैसे व्यवस्थागत भ्रष्टाचार द्वारा जनता के लाखों-करोड़ों रुपयों के टैक्स का एक बड़ा हिस्सा कुछ लोगों की जेबों में जाता है, और इसमें सुधार में किसी की कोई रुचि नहीं है; चाहे अपनी पीठ खुद ठोंकती विशाल नौकरशाही हो, रेलवे के बड़े अफसर हों या मोदी सरकार! किसी को कुछ नहीं पड़ी है!
रेलवे लगभग 70 हजार करोड़ रुपये का माल-मटीरियल हर साल खरीदती है। यह बात करीब 15 साल पहले रेलवे में ही कार्यरत एक वरिष्ठ क्लास-वन अधिकारी के अथक प्रयासों से पब्लिक में उजागर हुई थी कि कैसे इस खरीद का एक बड़ा हिस्सा अप्रूव्ड वेंडर्स से खरीदा जाता है, और ये अप्रूव्ड वेंडर्स आपस में कार्टेल बनाकर अधिक मूल्य (10 रुपये की चीज 100 रुपये में) पर माल बेचकर प्रति वर्ष रेलवे को हजारों करोड़ रुपये का चूना लगाते हैं।
कई आइटम्स के उदाहरण दिए गए थे और बताया गया था कि किस प्रकार अतिशय/हद से अधिक (#exorbitant) रेट्स पर उनकी सप्लाई हो रही थी। रेल को प्रति वर्ष 5000 करोड़ रुपये का नुकसान उस समय आँका गया था। उस समय विजिलेंस ने इन्वेस्टीगेशन शुरु किया था और इससे पहले कि विजिलेंस नतीजे पर पहुँचकर आवश्यक कार्यवाही कर पाता, तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी ने मामला सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई इस पर कुंडली मारकर बैठ गई, आज तक भी उसका कोई परिणाम सामने नहीं आया, और पूरा मामला डब्बा बंद हो गया।
लेकिन रेलवे बोर्ड और रेल मंत्रालय का कहर झेलते हुए भी इस अधिकारी ने अपने प्रयास जारी रखे। अंततः रेलवे को आवश्यक संस्थागत सुधारों के लिए एक कमेटी का गठन करना पड़ा, जिसमें इस अधिकारी – अतुल कुमार – को भी जगह दी गई। यह एक लम्बी कहानी है जिसे हम बहुत संक्षेप में बता रहे हैं। कमेटी के चेयरमैन और अतुल कुमार के सतत प्रयासों के फलस्वरूप कमेटी ने 6 महीने में ही अपनी विस्तृत रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को दे दी। इसके लिए सभी स्टेक होल्डर्स से आवश्यक डाटा और सुझाव लिए गए और उनका गहन अध्ययन किया गया। रेलवे की वृहत्तता देखते हुए यह एक बहुत बड़ा काम था, जबकि इस कमेटी को व्यवस्थित काम के लिए कोई ठीक-ठाक कार्यालय अथवा संसाधन भी नहीं दिए गए थे।
अतः अत्यंत परेशान होकर #अतुलकुमार ने अंततः स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (#VRS) ले ली, लेकिन रिपोर्ट देने के बाद। उसके बाद उस रिपोर्ट का क्या हुआ, कोई नहीं जानता। शायद तब तक रेलवे बोर्ड से वे प्रेशर हट गए थे, जिनसे मजबूर होकर उसे कमेटी बनानी पड़ी थी।
“अतुल कुमार और रेल रेवेन्यू की लीकेज” इस वीडियो को भी देखें-सुनें और अधिक से अधिक शेयर करें!👇
वर्ष 2011 के अंत में दी गई उस रिपोर्ट पर यदि उचित कार्यवाही हुई होती तो बहुत अधिक नहीं तो जनता की गाढ़ी कमाई के कम से कम लगभग 70,000 करोड़ रुपये (14 साल X 5000 करोड़) कुछ निजी जेबों में जाने से बच गए होते। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि अब तक कुल खरीद लगभग दोगुनी हो चुकी है, और विख्यात मेट्रोमैन ई. श्रीधरन ने इस रिपोर्ट के चंद वर्षों बाद ही 11 मार्च 2015 को रेलवे बोर्ड को सौंपी गई “Final Report of The One-Man Committee For Delegating Tendering And Commerical Powers To General Managers And Other Operating Levels” अपनी 143 पेज की इस रिपोर्ट में पहले उजागर भ्रष्ट व्यवस्था पर मोहर लगाते हुए कार्टेल्स द्वारा रेलवे को होने वाली हानि को प्रतिवर्ष 10,000 करोड़ रुपये आँका था। मोदी जी और उनकी सरकार के कथित जीरो टॉलरेंस के झूठे दावों के बावजूद यह भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्टाचार ज्यों का त्यों जारी है। इसके भी प्रमाण उपलब्ध हैं।
The following mail has been sent by one very senior retired #stores officer, aged about 80 years, to the Minister. Date: Thu, 11 Jul, 2024.
Dear Minister,
There are a lot of #complaints floating about #corruption in #Railways these days. In my view the biggest reason is the delegation of #purchase powers at various levels-presumably to expedite things.
The abolition of a separate #Railway-budget was a good move as a lot of #Tughlaki moves were being made. One #Minister even reopened a sick #PSU in Kolkata. Unfinished projects were many.
Funds have to be tied to physical output and delivery against #budget has to be physical output instead of #financial expenditure. This was never followed in IR. I am not sure if anyone monitors say the cost of maintaining 1 km of #track year to year or cost of maintaining a #coach etc. Is there any norm for comparison?
For a mammoth organization we need right checks and balances, which have been taken away by giving free rein to #Railway officers. The excessive delegation of powers especially in #procurement made in the recent past will be disastrous if not controlled/monitored.
The #tendency to classify #tenders as #Works instead of #Stores is increasing as the #Tender committee /#approval levels are lower (for obvious reasons).
Sadly the one man committee report of #Sridharan recommended massive #delegation of powers. He presumed easing of financial powers would lead to faster output which was belied.
Decentralisation of Purchase was aimed to improve delivery in the field.. #GMs and #DRMs all wanted such #decentralisation and delegation at the divisional level.
Though Railway did improve asset creation achieving unprecedented levels of additional New Lines, RE, Loco, coach productions, New Wagons, Zero UMLC etc, unfortunately such good performance on #Engineering side was not matched with similar #Operating Performance which resulted Railways Operating Ratio crossing over 100% and even 120% in 2018-19.
With merger with Central Budget all this remains unreported. I had written about this earlier too. Hope you are able to do something.
Regards
अतुल कुमार को उस समय उनके इन ईमानदार प्रयासों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक गैर-सरकारी संगठन एसआर जिंदल पुरस्कार-2011 से सम्मानित भी किया गया था। लेकिन हमें नहीं लगता कि इस पुरस्कार के कोई मायने हैं, क्योंकि वही #भ्रष्ट-व्यवस्था अब भी लगातार जारी है। यह केवल एक उदाहरण है। इससे आप सब बहुत अच्छी तरह समझ सकते हैं कि #भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के सरकारी दावे कितने खोखले हैं, और विभिन्न सरकारी योजनाओं में निवेशित आपके दसियों/सैंकड़ों लाखों करोड़ों रुपयों का क्या हश्र होता होगा! अगर यही पैसा जन-कल्याण में लगता, तो सबका जीवन स्तर कितना ऊपर उठता और कितना आनंदमय होता! देश की स्वतंत्रता के 75-76 सालों से राजनेताओें और नौकरशाहों की यह संगठित लूट चल रही है, वरना कोई अन्य कारण नहीं है कि अपना देश बहुत पहले ही विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो चुका होता!
यहाँ यह बताना शायद अप्रासंगिक नहीं होगा कि इन्हीं अतुल कुमार ने सेवानिवृत्ति के बाद इससे सैंकड़ों गुना बड़े पब्लिक घोटाले का पर्दाफाश किया। वह प्रेस कॉन्फ्रेंसों और अपनी पुस्तकों के माध्यम से दुनिया को पिछले एक दशक से लगातार अवगत कराते आ रहे हैं कि कैसे सब-लीग और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट गेंद-दर-गेंद पहले से ही फिक्स होता है। यह वह एक दशक पहले वैज्ञानिक रुप से भी सिद्ध कर चुके हैं और 2017 में एक #PIL के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को भी बता चुके हैं। यह बात हम पहले भी “रेलसमाचार” के माध्यम से आपके सामने ला चुके हैं। मजे की बात यह है कि 2020 में एक अंतरंगी संजीव चावला भी इस बात की अक्षरशः पुष्टि कर चुके है। लेकिन दुनिया अभी तक क्रिकेट के इस महाफ्रॉड से अनभिज्ञ है, क्योंकि पूरी व्यवस्था के साथ ही मीडिया भी इतनी बड़ी बात को आया-गया करता रहा है और सर्वसामान्य को लगातार नकली क्रिकेट बेचा जा रहा है।
जिन्हें आप महान क्रिकेटर, पत्रकार, एक्सपर्ट्स आदि समझते हैं, वे लगातार पूरी दुनिया को उल्लू बनाकर क्रिकेट में सट्टे के माध्यम से दसियों बिलियन डॉलर प्रतिदिन लूट को अंजाम देने में सहायता करते हैं। आप बुरी तरह चौंक जाएंगे, यह अकेली लूट इतनी बड़ी है कि जिससे पूरी दुनिया के लोगों का गुजर-बसर हो सकता है। यह अनुमान हवा-हवाई नहीं है, बल्कि यह अतुल कुमार द्वारा प्रमाणित तथ्यों पर आधारित है। और यह सार्वजनिक है, अब तक किसी ने भी इसे चैलेंज नहीं किया है।
अतुल कुमार द्वारा बार-बार उनके संज्ञान में लाने के बाबजूद #ICCI, #BCCI, #CBI, #ED, #सुप्रीमकोर्ट, #मोदी-सरकार और स्वयं मोदी जी इस महा-फ्रॉड पर क्यों चुप्पी साधे हुए हैं, इसका उत्तर तो वही दे सकते हैं. इस पर और रेलवे में हो रही लाखों-करोड़ों रुपये की लूट पर जवाब माँगना आप सबका, हम सबका, केवल अधिकार ही नहीं, बल्कि इस देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते कर्त्तव्य भी है, क्योंकि ये दोनों ही #scam धड़ल्ले से खुल्लमखुल्ला अब भी चल रहे हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह पिछले कुछ वर्षों से BCCI के सेक्रेटरी हैं, और फिर से उन्हीं पूर्व नौकरशाह अश्विनी वैष्णव को रेलमंत्री बना दिया गया है। हम सबके लिए राजनेताओं और नौकरशाहों के इस सामंजस्यपूर्ण गठजोड़ को समझना कतई कठिन नहीं होना चाहिए!
अतुल कुमार कहते हैं, यह सही है कि मोदी सरकार में कुछ बड़े काम हुए हैं, जैसे आर्टिकल 370, 35A का निरस्त होना; राम मंदिर का बनना, देश का पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था में छलाँग लगाना, परन्तु इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि भ्रष्टाचार के मामले में मोदी जी स्वयं और उनकी सरकारें केवल सफेद झूठ बोलती रही हैं, और लगातार बोल रही हैं। अतुल कुमार जी के लेखन-प्रकाशन के कुछ लिंक यहाँ दिए गए हैं, आप में से कोई भी इन्हें देख-पढ़ सकता है।
“Whistleblower exposes Rs. 5000 crore railway scam”