बीमार रेलकर्मियों के परिवारों के भूखों मरने से रेलवे के डॉक्टरों को कोई फर्क नहीं पड़ता!

शारीरिक रूप से अक्षम हो चुके रेल कर्मचारियों को रेलवे अस्पतालों में लंबे समय तक बीमार सूची में रखकर उनकी एलएपी और एलएचएपी, यानि सारी छुट्टियां खत्म करा दी जाती हैं और परिवार के सामने भूखों मरने की स्थिति आ जाती है।

ऐसे में रेलकर्मियों का कहना है कि क्या रेलवे के डॉक्टर इतने निर्मम और असंवेदनशील हैं कि उन्हें किसी रेलकर्मी के परिवार के भूखों मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता है?

वह कहते हैं कि क्या रेलवे के डॉक्टर इतने नाकारा हैं कि उन्हें मेडिकल बोर्ड बनाने में महीनों का समय लगता है?

उनका कहना है कि मेडिकल बोर्ड बन जाने के बाद भी सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर कर जारी करने में भी महीनों का समय लगाया जाता है?

उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा भी होता है कि जिस कैटेगरी में कोई हल्का कार्य (लाइट वर्क) नहीं है, उसके लिए भी “फिट फॉर लाइट वर्क” कुछ महीनों के लिए लिखकर जारी कर दिया जाता है। क्या यह कृत्य रेलवे के डॉक्टरों की योग्यता और सोच पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता है? जारी…

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